Saturday, July 23, 2011

यथार्थ ...का कोई पूर्व में प्रमाण नही होता...


एक 'गृहस्थ'.. 'सांसारिक ',.. 'योगी जी' ....की अद्वितीय विलक्षण रहस्यमयी चित्र विचित्र आध्यात्मिक जिज्ञाषा...और उनकी जिज्ञाशाओं का ''प्रथम मानव शरीर धारी ''अघोर'' शिवपुत्र'''....... द्वारा ''समाधान'' .......



परमादरणीय अघोर शिव पुत्र जी !
सादर....सप्रेम हरिस्मरण....... आपके कथनानुसार .....यह बात जान कर किसी भी हिन्दु धर्म प्रेमी व्यक्ति के मन में अत्यन्त प्रसन्नता होगी... कि भगवान शिव के अंश स्वरुप, सती के गर्भ में ही उस समय अजन्मा रह गये....समस्त साधनाओं का सामर्थ्य लेकर, आप का अवतरण प्रथम बार मानव रुप में हिन्दु धर्म का उद्धार करने के लिये हुआ है..... अतएव गणनायक, करिवरवदन, गणेश जी एवं तारकोद्धारक, षटवदन, कार्तिकेय के भी अग्रज के रुप में सभी हिन्दु धर्मानुयायियों के लिये आप प्रणम्य हैं
आप के समक्ष एक विनम्र जिज्ञासा रखने की धृष्टता कर रहा हुँ.....कृपया आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे...
अहंकार, झूठ, असत्य, दम्भ, का आश्रय व आधार लेकर, सत्य को प्रकट रुप से नहीं व्यक्त कर पाने की भीरुता, कायरता, व प्रबल रुप से लोकेषणा के शिकार हुए व्यक्तित्व के द्वारा क्या किसी भी सत्कर्म की प्रतिष्ठा सम्भव है....? ???
क्यों कि शास्त्रावलोकन करने पर तपस्या, व ज्ञान की न्यूनता, कमी किन्हीं राक्षस, दैत्य, असुरों में भी दिखायी नहीं पड़ती है.......

शिवपुत्र द्वारा जिज्ञाषा ओं का समाधान....

''''अघोर''' कभी कायर नही होता.......बल्कि ............'''.योद्धा'''''..........होता है...........

....''
हे प्रिय..''योगी जी..'''....प्यार...
जैसा की आपने अपनी एक विनम्र जिज्ञाषा रखा...हमे बहुत ही अच्छा व जिज्ञाषाओं में अति उत्तम लगा ....जैसा की आपने लिखा ..इसके बारे में यही कहा जा सकता है की कभी नहीं.....कभी नही.........!......
.....
परन्तु जहा तक ''अघोर शिवपुत्र'' के संदर्श में अगर बात है तो संभवत: आपने ''अघोर शिवपुत्र'' से पहले प्रस्तुत किये गये उन वाक्यों पर अपने ज्ञान व् शब्द के रहस्यमय शास्त्रीय गहराई को लगभग अनदेखा कर दिया..अथवा वहा तक आपकी दृष्टी नही पहुंची.जहा पर यह भी कहा गया है की....
...'''प्रथम मानव शरीर धारी अघोर''''.....
जब बात प्रथम मानव शरीर धारी अघोर की आती है।
तो क्या आप यह भी बतलाने की कृपा करेंगे.कि। ...
..''प्रथम'' ... ''मानव'' .....का ''अर्थ'' आप क्या निकालते हैं ?जो ''अघोर'' हो....!
आप थोडा यह भी स्पस्ट करते तो आपकी जिज्ञाषा का समाधान करने में सरलता हो जाती. की ''माँ सती' के समय कालीन और उसके पूर्व के किस शास्त्र का आपने अवलोकन करके यह जिज्ञाषा अपने भीतर जन्मी...
...
प्रथम मानव शरीर धारी के पूर्व कौन था '''अघोर'''......मै उसी का पुत्र हूँ......''अघोर......
शास्त्र क्या अपने इस समूचे काल खंड की हर एक घटनाओ को अपने में वर्णित करते हैं....?... जब मेरी माँ सती के गर्भ में माँ के साथ ही मेरी मृत्यु हो गयी थी और मै ''अजन्मा'' ही रह गया था,,तब आप जैसे ज्ञानी और शास्त्र कहा थे...?क्या उस काल खंड की घटना का प्रत्यक्ष भी कुछ लिखा है.....?...
और हे प्रिय.... जहाँ तक सत्य और असत्य की बात है....मै क्या जानू सत्य ...जिस सत्य के सामने झूठ का प्रतिछाया सदा ही उपस्थित रहा करता है ॥मै उस कमजोर सत्य का साथी नही....

.... बल्कि 'मै' तो ''सत्य से मुक्त यथार्थ'' हूँ॥
जब सारे इतिहास ,सभ्यताए,शास्त्र और प्रमाण मिल कर भी ''सत्य और धर्म'' की स्थापना करने में असमर्थ हो जाते हैं ......तब मै यथार्थ रूप में सशरीर साकार उपस्थित होता हूँ....और उस परमात्मा के कार्य का संपादन करता हूँ.....प्रतिनिधि बन कर.... आप ने जिन--जिन मेरे ह्रदय प्रिय रूपों को नाम लेकर उदहारण देने का प्रयास किया ,उनमे से अनेको ने मानव शरीर धारण नही किया....जगत के कार्य के निमित्त जैसा बाबा की इक्षा होती है.हम सभी उनके आदेशानुसार बिना किसी तर्क के पालन करते हैं.शास्त्रों में और ज्ञानियों में उससे सम्बंधित प्रमाण नही खोजते ...
राम के समय में राम को बनवाश, अनेको असुरो का बध ,रावण का बध ,पूर्व में ही किस धर्म या शास्त्र में लिखा हुआ था...? महाभारत के पूर्व किस शास्त्र में महाभारत के युद्ध के विषय में वर्णित था.और कृष्ण का अर्जुन के पलायन की इक्षा और तर्क के प्रति उत्तर में किस शास्त्र को पढ़ कर भगवन श्री कृष्ण ने अध्ययन कर प्रमाण संगृहीत करके ''गीता'' का महान उपदेश देकर, एक नपुंसक बन रहे मानव को 'योद्धा' रूप में परिवर्तित किया था.....? यह तो कुछ उदहारण मात्र है...अनेको उदाहरण तो आपके शास्त्रों में ही भरे हुए हैं...
॥ ....तर्क,बहस ,कल्पित सत्य ,सिमित, क्षुद्र व् दुसरो के ज्ञान के अहंकार तथा स्व की अवस्था हीनता के आधार पर जिज्ञाषा
उत्पन्न कर ,अपने अन्दर की कटुता और कुंठा को तो बिद्वता पूर्ण शाब्दिक सभी रूप में ब्यक्त किया जा सकता है..कौन सी बड़ी बात है...? यहाँ तो भीड़ भरी पड़ी है.
जहा तक प्रमाण की बात है. तो, आप जैसे बिद्वान को इतना ब्यग्र होना शोभा नही देता...मानवीय स्वभाव है की अचानक ऐसी विलक्षण व् अद्वितीय घटनाए तुरंत नही पचती....
अगर कोई प्रथम मानव शरीर धारी होने का दावा करता है और अपने आपको बाबा तथा माँ सती ( कामख्या_ दसो शक्ति महा शक्ति रूपों ) के पुत्र होने की बाते करता है .तो स्वाभिक रूप से शास्त्रों पर आधारित ज्ञान तुरंत विश्वास नही कर पाता.क्योकि उसके पास तो ब्यतीत हो चुके घटनाओ का आंशिक वर्णन मात्र ही है.ना की वर्तमान और भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का कोई ज्ञान......और....बोध....और ..ना ही जानने का सामर्थ्य ही..
अभी मै भी आप लोगो की तरह एक मानव शरीर धारी मात्र ही हूँ...
वर्तमान में सारे संयोजन किये जा रहे हैं .प्राकृतिक और परमात्मिक जगत में अपनी ज्ञान चक्षु सदा खुले रखे जाये.तो जगत में होने वाली घटनाओ का प्रमाण भी मिल जायेगा.तथा आपको शास्त्र लिखने का मौक भी ...
। ''महाभारत'' और ''श्री गीता'' लिखने में तो महर्षि 'वेद ब्यास जी' ने भी जल्दीबाजी नही की थी.......

यथार्थ ...का कोई पूर्व में प्रमाण नही होता........
.घटनाये अपनी योजना अनुसार घटित होती हैं ,और प्रमाण उपलब्ध होते जाने से बुद्धिजीवी मानवों के हाथो से वही घटनाएँ शास्त्र बनते जाते हैं..
.अगर आपके शास्त्रों में कही प्रथम मानव शरीर धारी अघोर के बारे में वर्णन हो .तो हमे व समाज को भी जरुर सूचित कीजियेगा.....आपकी महती अनुकम्पा हम जैसे बच्चो पर होगी......
जब बाबा को राजा दक्ष ने इमानदार स्वीकार नही किया और अपने षडयन्त्रो से अपना ही सर्वनाश कर बैठे....जब मामा कंस ने ही कृष्ण को स्वीकार नही किया और अपना अंत कर बैठा..
....तो..............आज...........अभी तो हमने '''कलयुग की इक्षा अनुसार कलयुग के अंत'' की शुरुआत मात्र की है.आगे तो बहुत कुछ शेष है.....
जहा तक अहंकार की बात है,तो ''अ''...................से..........लेकर............'हं'''....................तक के ..............आकार............की भी बात आती है......कौन है जो इसके पूर्व भी है,इसके मध्य भी,और इसके अतिरिक्त भी.................''मै''.............तो.........मात्र अपने बाबा और माँ का पुत्र हूँ.....''शिवपुत्र''''''..............
॥ '' अघोर'''....
.......तो ''''अवस्था''' का प्रतिक है.........
..आपका शास्त्र ...........''अघोर'' के बारे में क्या कहता है..........???..........
बाबा के ......................''''अघोर'''.................'''रूप''.....के बारे में क्या कहता है.................?.........
.थोडा पता लगा कर हमे भी जरुर बतलाइएगा .........
......जहाँ तक संभव होगा.......
॥ इस जगत में प्रदर्शन कर हम आपकी सारी जिज्ञाशाओं की पूर्णाहुति करेंगे................
आप ने 'अ'...से ''अनार'''...पढ़ा है ना....!....
'''.मुझे'' .....''अपने पुत्र'' को .........''बाबा'' ने ,''बिधाता'' ने '''अ'' से '''अघोर'' पढाया है..
अनार बाहर से भले ही दीखता है , कि 'एक' है.पर अन्दर बहुत से दाने होते हैं........टुकड़ो -टुकडो में बंटा होता है.....
.''अघोर'''...........सिर्फ ''एक'' ही होता है........वह साकार स्थूल शरीर धारी मानव रूप में हो,तो, ''........पुत्र''..........या फिर निराकार शरीर धारी रूप में ...हो....''मेरे बाबा.......................'''''अघोर''''...................
...कह सकते हैं आप ..........अपने समझ के लिए..................''बिधाता''...............
और यह सदा स्मरण रखिये...''अघोर''' कभी कायर नही होता..............बल्कि ............'''.योद्धा'''''..........होता है...........
...देखिये ना बाबा के रूप को............ कैसे लगते हैं.....भला......
.''''समाधि''' और '''युद्ध''''''...................
.....यही प्रिय है....

..........किसी स्वयंभू ज्ञानी के द्वारा दी गयी ''स्थूल उपाधि'' नही....
हमे किसी के सम्मान का इंतजार नही .....बाबा के आदेश का इंतजार रहता है.....
आपकी जिज्ञाशाओं के लिए एक बार मेरा पुन: प्यार.....
वैसे मेरा मार्ग दर्शन करते रहिएगा .....आप सब लोगो के सामने बहुत जल्द ही सब कुछ परोस दिया जायेगा.......धैर्य रखिये...
जल्द बाजी से ''असमय'' जन्मता है.......
..........आगे भी जरुर पत्र लिखते रहियेगा.इससे मुझे जगत के बारे में तथा जगत की आवश्यकताओं व् सोच के बारे में समझने में सहायता होती है.आपके सहयोग व् जिज्ञाषा के लिए बारम्बार धन्यवाद्...विनम्रता से...हे मेरे प्रिय....

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नोट...आगे और जानने के लिए कृपया इस लिंक पर चलिए...
www.shivputraekmission.org
e-mai... shivputra_ekmission@yahoo।co।in

3 comments:

  1. "आप सब लोगो के सामने बहुत जल्द ही सब कुछ परोस दिया जायेगा.......धैर्य रखिये..."
    कृपया इस धैर्य की समय सीमा अवगत कराने की कृपा करे.
    बारम्बार नमन सहित,
    -डॉ. मंजुल कान्त द्विवेदी
    www.vastushastri.org

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  2. .धैर्य रखिये...
    जल्द बाजी से ''असमय'' जन्मता है.......

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  3. .प्रिय.Manjul Kant ji pyar..
    ''''समाधि''' और '''युद्ध''''''...
    ...में जल्दबाजी और समय सीमा का निर्धारण करने से असुर प्रवित्ति को मौका मिलता है.कार्यक्रम तो कभी का प्रारंभ है.अपने चारो तरफ सारे जगत व् देश में देख लीजिये.गति बढ़ती ही चली जाएगी.थाली इसी मानव जगत में लगा दी गयी है.और धीरे-धीरे एक-एक कर घटनाये परोसी जा रही हैं.धैर्य के साथ इंतजार करने से भूख बढ़ती है और परोसे गए पदार्थ ( घटना का) के महत्व का ठीक से पता चलता है.जो बहुत ही जरूरी होता है.अन्यथा सबका पाचन शक्ति एक जैसी नही होती.हमे भक्तो (यथार्थ भूखों)को बचाना भी होता है.

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