Friday, July 22, 2011

मै '''शिवपुत्र '' बोल रहा हूँ..


Vinod Tiwari
Shivputra Chaitanya ji pranaam...आप जिन लोगों के बारेमें कह रहे हैं वो मेरे लिए सम्मानीय हैं , लेकिन सनातन धर्मं को उच्चता की तरफ ले जाने में जो भी बाधक हो वो मेरी दृष्टि में सम्मान के योग्य नहीं हो सकता ... आप जो करने का प्रयत्न कर रहे हैं , उसकी शुरुआत मैंने काफी पहले कर दी थी ॥लेकिन यहाँ सब बातों के धनी हैं , कर्म कोई नहीं करना चाहते ॥ अभी कुछ महीनो पहले मैंने इसी ग्रुप में एक धार्मिक सोशल नेट्वर्किंग वेबसाइट जिसमें वो सभी सुबिधायें हो जो हमें फेसबुक पर मिलती हैं.. तो सबने प्रशंसा की ...और उससे जुड़ने का वादा किया ...लेकिन जब मैंने मेहनत करके और अपना पैसा खर्चा करके ऐसी साईट बनायीं और लांच की ..तो थोड़े से लोग जुड़े ..ल बाकि यहाँ बैठ कर मजे से गप्पे मार रहे हैं...यह सब विदेशी चीजों के इतने अभ्यस्त हो गए हैं की इन्हें भारतीय और हिन्दू धर्मं से सम्बंधित चीजें अपनाने में शर्म आती है ... वह चाहे संचालक हैं या ग्रुप से जुदा आम आदमी .... सब यहाँ नाम के साथ महान लगवाने के लिए आते हैं.. एक दिन जब युट्यूब ने जैसे विष्णु पुराण को प्रतिबंधित कर दिया है , उसी तरह फेसबुक भी हिन्दुओं के ग्रुप पर रोक लगाएगा तब इनकी आँखें खुलेंगी... अभी यहाँ हिन्दुत्त्व की बड़ी बड़ी बातें करने पर कोई चार्ज तो देना नहीं पड़ता है ... इसलिए करते हैं ...अगर कुछ लगने लगे तो यह भी बंद ..खैर कोई बात नहीं .. मैं आपकी भावनाओं को समझता हूँ और आपका साथ दूंगा ... कहिये कहाँ से शुरुआत की जाए.. ...
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प्रिय विनोद तिवारी जी.प्यार..(....)..कैसे हैं आप...?...आप कभी यह मत सोचिये की आप जिस धर्म के प्रति इतने इमानदार हैं,वह इतना कमजोर है, की, उसका कोई अहित कर सकता है.आपका उत्तर आया बहुत अच्छा लगा..जितना आपने इस जगत को इस समाज के अंदर रह कर जो कुछ भी अनुभूति किया.उसका मै आदर करता हूँ..मैंने आपके इस पोस्ट में आपके अन्दर का आक्रोश देखा है...कभी भी जब भी आपके तरह एक जीवन का दम घुटता है,तो वो दर्द मुझ तक पहुँचती है..
आज हमारा ही नही बल्कि इस मानव सभ्यता में ही प्रत्येक धर्म को धार्मिको ने अपने कर्मो तथा चरित्र से घृणा का पात्र बना दिया है...हिदू धर्म में चुकी हर ब्यक्ति गुरु है,ज्ञानी है.क्योकि सभी को यह मालूम है की भारत जगत का गुरु है. और अपना काम निकालने के लिए इतने नए -नए धार्मिक व् अध्यात्मिक पुस्तके हैं.. जो ब्यक्ति भगवान का भक्त है वो श्रद्धा में डूबा हुआ उन लोगो की बातो को अक्षरश: पालन करने के लिए अपने स्वभाव से मजबूर है.आज अधिकांशत: ब्यक्ति खुद अपने को गुरु बन कर साबित करने के लिए बेचैन है.यही इस ''धर्म का आधारभूत दुर्भाग्य''' भी है.
हिमालय की गुफाओं से बाहर निकाल इस धरती पर मानवों के बिच भेजते समय ''मेरे पिता ''श्री बाबा केदारनाथ "शिव"" ने जिन कामो को सम्पादित करने के लिए मुझे बोला .उससे सम्बंधित मैंने कार्य पिछले कुछ वर्सो से प्रारंभ कर दिए हैं..मुझे अपना काम प्राकृतिक व् सूक्ष्म जगत { पर्मत्मिक जगत} में करने के लिए किसी स्थूल शरीर धारी की जरूरत नही होती.आपने खुद महसूस किया होगा की एक स्थूल शरीर धारी मानव की अपनी एक सीमा होती है .तथा पहले से ही उपलब्ध ठेकेदार अपना जाल ऐसा बिछाए रहते हैं, अपने संपन्न साधनों से, की, एक आम आदमी के पास इतना समय ही नही होता. की, किसी नए ब्यक्ति को नए तरह से मूल रूप में ''यथार्थ'' में सुन भी पाए..
स्वीकार करने की बात तो अलग है..
मै आपको ऐसा इसलिए कह रहा हूँ.की मै जानता हूँ की आज कितना भी हिन्दू धर्म पतित हो जाये.तब भी कोई धर्माधिकारी इस भारत भूमि पर अपनी कमाई संपत्ति और गुरु तथा ज्ञान पद छोड़ कर राम तथा कृष्ण के नाम को सरकारी स्तर पर बार-बार अपमान करने पर भी आन्दोलन नही करेगा.आपने राम सेतु के समय तथा बिना शादी के स्त्री पुरुष का एक साथ रहने पर कानून बनाने के समय देखा होगा..माननीय सुप्रीम अदालत द्वारा कहा गया की ''श्री कृष्ण'' और ''राधा'' का ''आपसी शारीरिक सम्बन्ध'' था. इसलिए आज ऐसे कानूनों को मान्यता देने में कोई हर्ज नही है...सभी राधा के भक्त और श्री कृष्ण के धर्म भक्त तब भी मस्त थे आज भी मस्त हैं.. क्योकि भक्तो के सहयोग से धंधा (धर्म प्रचार का...?...) निर्बाध गति से चल रहा है..
जब मै हिमालय से निचे आता हूँ तो बाबा के कार्य से ही....मै हिमालय की गुफा में सब कुछ भूल गया था...निचे मनुष्यों की भीड़ में मनुष्यों को खोजने में बहुत कस्ट और अपमान से गुजरना पड़ा.अनेको बार भगवान के भक्तो ने मुझे बिष खिलाया .मै बार -बार मर कर भी आज जिन्दा हूँ.मैंने इस सभ्यता में हर उस ब्यक्ति के हरेक शब्दों को अपने लिए एक शिक्षा के रूप में लिया.
जब भी कोई मुझसे कुछ कहता है या कोई जब अपने आपको धर्म के चिन्तक और अधिकारी के रूप में बोलता है ,तब मै उसे इस जगत का एक जीवित प्रतिनिधि समझ कर सुनता हूँ और देखता हूँ की आज ब्यक्ति की मानसिक सोच तथा डिमांड क्या है.....?..कारण यह है की मै सारे जगत के सामूहिक मांग की आपूर्ति करने के लिए सृष्टी की रचना करता हूँ.मनुष्यों ने अपनी प्रार्थनाओ से इतना कोलाहल मचा रखा था .की हमारा समाधी टूट गया...बाबा का समाधि टूट गया..
मैंने धार्मिको के और साधारण कहे जाने वाले ब्यक्तियो से लेकर अनेको ज्ञानियों तथा भगवान के रिश्तेदारों व् अपने को खास समझने वालो को देखा है तथा सहा व सुना है...पिछले दो वर्ष के लगभग हो गया होगा ...बाबा ने मुझे एक पुस्तक लिखने के लिए बोला.....मेरे पास पुस्तक का मूल शीर्षक तो था पर पुस्तक विषय से सम्बंधित सभी पात्रो को इस जगत में जीवित साकार मानव शरीर धारी रूप में इस जगत के सामने प्रस्तुत करना चाहता था.और मैंने इस जगत में परिवर्तन करना प्रारम्भ कर दिया...मैंने सतयुग से लेकर अभी कलयुग तक के अनेकानेक उन मुख्य पात्रो को खोज लिया,जिन लोगो के सहयोग से इस जगत में अधिकांशत: धर्म स्थापित हुए हैं.उन सभी मुख्य नायक ,खलनायक ,सहनायक तथा सम्बंधित पात्रो को मैंने इस बार सशरीर खोज लिया है. और लगभग जो भी मेरे समीप आये.मै उन सभी को अनेक मौके दिए अपने को धार्मिक बना लेने के .पर वो अपने ''द्वितीय खंड'' में ही आज भी रह कर अपनी आसुरिक स्वभाव में ही जीना चाहते हैं.मै उनके सेकण्ड खंड और सेकण्ड शरीर के बारे में जानता हूँ.वो भी मुझे पहचानते हैं.ऐसा मैंने उन्हें दिखलाया.उनकी आँखों से ही ध्यान में..
.ऐसे ही बहुत सारे है जिन्होंने इस ''महान सनातन धर्म'' को,जिसे आज शेष बचे हुए रूप में ''हिन्दू धर्म'' के नाम से लोग जानते हैं.उसकी पतन शीलता से तथा अधार्मिक तत्वों के मजबूत पकड़ से दुखी व् पीड़ित है..
मै अपनी बातो से ब्यक्ति की सोच की खोज करता हूँ तथा उसे ब्यक्त करने का मौका देता हूँ..
आप लोगो के सहयोग के रूप में बस इतना ही मै चाहता हूँ की आप जैसे कर्म निष्ठ तथा धर्म के प्रति इमानदार चिंतन व् सुधार वाले लोग अब परमात्मा से क्या कहते हैं ..?..तथा कैसा चाहते हैं....?..क्या चाहते हैं...?...ओर क्यों चाहते हैं...?...यही जानने के लिए मै अपने द्वारा शब्दों को ब्यक्त कर उन सोचो को अपनी ओर खींचता हूँ.जब कोई मुझे या मुझसे कुछ भी कहता है तो वह मेरे कार्य में सक्रीय सहयोग करता है..आप समाज में हैं तथा सक्रिय हैं.आप लोगो से मेरा विनम्र निवेदन है की जो कुछ भी आप लोग परमात्मा से धर्म के सम्बन्ध में, प्रकृति तथा इस मानव जगत के लिए चाहते हैं .कृपया बिना संकोच के समाज और धर्म के प्रति अपनी इक्षा को ब्यक्त करते रहे...मुझे किसी का भौतिक सहयोग नही चाहिए ...जब जरूरत होगा तब बतला दूंगा..बस मै यह जानना चाहता हूँ की अगर भगवान इस जगत के भाग्य में कुछ नया लिखे तो क्या लिखे.....?..अब कहा समय ही है किसी को समझाने का और सुधरने का...?....आपही बतलाइए न जीवन होता ही कितना है ....अगला पल सदा मौत का हो सकता है यही संभावना सबसे ज्यादा सम्भावित होती है.
वैसे एक शुभ सुचना यह है इस जगत के लिए ,की, ''''''संसार की मांग और धरती की रक्षा के लिए ''बिधाता'' ने अपने 'बिधान' में कुछ संशोधन'' कर दिया है..और अब यह जगत तथा यह प्रकृति पिछले तिन चार वर्षो उसी संशोधित संबिधान के अनुरूप से चलने भी लगी है....
इस सम्मानित ग्रुप व् आप सभी धार्मिक व् अध्यात्मिक लोगो के माध्यम से मेरी बातो के सन्दर्भ में जितना ज्यादा हो सके.मुझे इस जगत के भाग्य के परिवर्तन में ''धर्म'' को अवस्थित तथा मूल रूप में स्थापित करने के लिए जो भी हो ,अपनी सुझावों को अवस्य दे..तथा अपने संपर्को के लोगो से भी सुझाव संगृहीत करके मुझ तक पहुचने की कृपा करे ...यह निहायत ही जरूरी है.
यह परमात्मा के वर्तमान कार्यक्रम में आप सभी का अपना सहयोग होगा..
भूले नही इस मानव जीवन का समय बहुत कीमती है..मै आप सभी का ऋणी रहूँगा...परमात्मा के शक्ति का परिचय देने का मेरा वादा है इस जगत से..
यह जरुर याद रखिये '''''''''''''मै'''''''''''............................''''''''''''शिवपुत्र'''''''''''''''...................हू .......
मै '''शिवपुत्र '' बोल रहा हूँ..
E
..MAIL..shivputra_ekmission@yahoo.co.in.

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