Thursday, July 21, 2011

प्रथम मानव शरीर धारी 'अघोर'' शिवपुत्र ..के बारे ....''विपरीत परिस्थितियों में ही एक ''साधक'' का ''जन्म'' होता है.''...

''श्री श्री अघोर शिवपुत्र श्री..
प्रथम मानव शरीर धारी '''अघोर''......शिवपुत्र..

श्री प्रसाद.. ....Kripaya thora prakash dalen ki aap kis prakar ke aghor hain ? Aghor se apka kyaa tatparya hai ? ...... Samanya janta Aghor se Kashi ke shav-bhakshakon ko samajhti hai. ................ Isliye hamlog apki vichardhara ke baare me jaan_ne ko utsuk hain. .... Pranam//


[ hindi...श्री प्रसाद जी ..............कृपया थोडा प्रकाश डाले कि आप किस प्रकार के अघोर हैं....?....अघोर से आपका क्या तात्पर्य है...?...सामान्य जनता अघोर से काशी के शव -भक्षण को समझता है.....इसीलिए हम लोग आपकी विचारधारा के बारे में जानने को उत्सुक हैं......प्रणाम....]


Shivputra Chaitanya

खुस रहे .'''प्रथम मानव शरीरधारी ''अघोर'''..अभी यह इस जगत के सामने नही आया है.अभी हम जगत को तैयार कर रहे हैं ...काशी का अघोर...एक पंथ है ....हम किसी संप्रदाय और पंथ के आधीन नही जन्मे हैं.हम बिधाता.''शिव ...और माँ सती (कामख्या..दसो माताओं ) के पुत्र हैं ......जो माँ सती ( कामख्या) के गर्भ में 'अजन्मे ' ही रह गये थे ...इस बार मानव शरीर धारण कंरने पर ''अघोर ''...अवस्था को प्राप्त हुए हैं .

.यह बाबा का एक अत्यंत प्रचंड क्रियाशील अवस्था है....'''अघोर'''

प्रथम बार कोई मानव शरीर धारी ब्यक्ति ''अघोर'' पद को प्राप्त किया है.ऐसे अवस्था में
आकर ही कोई चेतना प्राकृतिक शक्तियों का सञ्चालन और नियंत्रण कर सकती है

अगर आपको बहुत कुछ जानने कि इक्षा है तो हमे किसी ''अघोरी'' शब्द से ना जोडीये .....


Shivputra Chaitanya जहा तक भक्षण की बात है तो..''मै''.....धर्म के कलंको और स्वयम्भू ज्ञानियों के आसुरिक 'अहंकार' का भक्षण करता हूँ..असुरो का समूल नाश करना मेरा स्वभाव है..धर्म के भीतर विकृति की सफाई कर उसे यथार्थ और मूल रूप में स्थापना करना मेरे काम का एक हिस्सा है.इसीलिए मेरे बात को पचाना बड़ा ही कठिन होता है..क्योकि इस जगत में पहले से ही हर ब्यक्ति के पास अपना एक ज्ञान होता है.भले ही वह अपने उस ज्ञान का केंद्र ही न जानता हो.ज्यादा जानने के लिए...आप इस ब्लॉग पर एक नजर जरुर डाले....कुछ सन्देश मिलेगा....http://shivputraekmission.​blogspot.com.....आपकी जिज्ञाषा के लिए आपको धन्यवाद् ...और मेरा प्यार .अगर कुछ इक्षा ,जिज्ञाषा उठती हो तो जरुर लिखे .


अभी मै इस मानव जगत के प्राकृतिक सिस्टम को बाबा के आदेश पर देख समझ रहा हूँ..

धर्म और धार्मिको के सोच को और आम मनुष्यों के भीतर के भूख को जानना बहुत ही जरूरी है..

.किसी भी तरह के भोजन से कोई धर्म से सम्बंधित हो जाता तो इस जगत में कोई धर्म ही नही रहता..क्योकि सभी धर्मो में शाक और मांस का भक्षण होता है...

यह जगत क्या कभी अपने ही परमात्मा को ,अपने ही भगवान को आज तक स्थूल शरीर रहते पहचान सका है.?पूर्व से निर्मित धारणाये तथा जन्म से मिले स्थूल संस्कार ब्यक्ति को धार्मिक होने ही कहा देते हैं......?.....जीवन में प्रायोगिकता और अपने चेतना के विस्तार से अलग क्या सिर्फ पुस्तकों पर छपे हुए ज्ञान से भूख भर सकती है......?

हम उसी शुन्यता की पूर्ति करते हैं.तथा जगत की मांग के अनुसार हम इस जगत में परिवर्तन तथा प्रकृति में परिवर्तन करते हैं...
इसके लिए हमे किसी शब्द और किसी के सहारे की जरूरत नही होती.....धर्म और अध्यात्म मात्र थ्योरी है जीवन की, मानव जीवन एक यथार्थ है.,जिसमे प्रायोगिकता तथा अपनी साधना के बिना मात्र शब्दों से अहंकार ही बढ़ता है.और हमे मिला हुआ यह अतुल्य मानव 'जीवन' सिर्फ संबंधो ,विषयो,वासनाओ,और बदले की भावना तथा थोडा और भोग लेने की आदिम अतृप्तटा लिए अपने को पुजवाने के लिए, एक ज्ञानी की भांति वस्त्रो तथा शब्दों और भाषा का भिन्न -भिन्न रंग ओढ़ अनायास ही मर जाता है..और मिलता भी क्या है....? एक समूचा अतृप्त ज्ञान भरा जीवन../..?...जो पुन: एक बार अपनी शेष वासना पूर्ति के लिए किसी न किसी एक योनी प्राप्त करने की लालसा लिए भटकता ही रहता है....

प्रिय प्रसाद जी प्यार...

पहली बार इस जगत में किसी ने कोई मुझसे सार्थक बात किया है....अन्यथा तो लोग इतने ज्ञानी हैं की श्री कृष्ण के समय में भी जीवन भर उन्हें गालिया ही देते रहते थे की वह एक ग्वाला है...अब तो वही लोग जिसे ग्वाला कहते थे ,उन्हें भगवान कहते नही थकते .और मात्र उनके नाम पर ही गुरु जैसे पद पर बैठ कर ज्ञान का प्रचार करते हैं.किसे किस बात का ज्ञान है.?..अगर ज्ञानी के हाथ से पूर्व के मानवों के छोड़े गये शब्द शास्त्र ज्ञान को ले लिया जाये तो फिर कौन सा ज्ञान है.....?....वह जगत की प्रकृति में प्रमाणित करे.......!

जब ऐसी परिस्थितिया उत्पन्न हो जाये,की ज्ञान ही रह जाये शब्दों में सिमट कर कर,यथार्थ का अभाव हो जाये ....लोगो का इन सबसे दम घुटने लगे.धार्मिको की भीड़ के बावजूद भी भगवान के भक्तो का दम घुटने लगे .तब मुझे आना पड़ता है.
मेरा एक काम यह भी है की परमात्मा के प्रत्येक शक्तियों का प्रमाण इस सारी धरती पर इस जगत में सामूहिक रूप से प्रदर्शित करू...

.मुझे खुद को पुजवाने का कोई शौक नही है....जीवन के सारे भौतिक ऐश्वर्या मैंने अपने आज तक के अपने जीवन में देखा है.मै आम आदमी के 'तड़प' को जानता हूँ ....
.''''.मै '''''''कोई बाबा......या शब्द, नाम,वेश धारी ब्यापारी और उपदेशक नही.इन सबका जगत के सञ्चालन में और प्रकृति के परिवर्तन में क्या काम...?...

.कलयुग के अंतिम काल खंड में जब जगत अपने सद्कर्मो से इन धार्मिको की भीड़ के संग अपने अंत की तरफ ( सामूहिक आत्महत्या की तरफ) बढ़ चूका है.तब क्या ये मात्र ज्ञान भरे शब्द मानव जीवन की रक्षा करेंगे ..?....
कौन ज्ञानी जानता है, कि,उसका ही भगवान आज क्या कर रहा है....?..

.क्या ऐसा कोई इस जगत में है आज .जिससे बिना सामने मिले ही और सामने मिल कर ही ,आपको आपके भगवान के अस्तित्व से मुलाकात करवा सके या आपको अनुभूति करा सके.आपके अस्तित्व का ही....?

अगर ब्यक्ति अपने परमात्मा को अपने सामने पा ले तो क्या करेगा....? ईमानदारी से बतलाये ......सिर्फ मांगना और सिर्फ अपने लिए भौतिक ऐश्वर्यों कि मांग के अतिरिक क्या इमानदार भूख है ....?
आज कल भगवान क्या कर रहा है.....?....
''''''.मै'''''''''शिवपुत्र'''''...आज इस आपके माध्यम से और जगत उन सभी लोगो के आध्यात्मिक व् धार्मिक ग्रुप के मानव शरीर धारियों से पूछ रहा हूँ......?....

..हाँ ......''''मै''.....इस ''जगत के बिधाता 'शिव''का मूलाधार हूँ.

और प्रमाणित कर रहा हूँ.सभी पिछले कुछ वर्षो से जगत की प्रकृति में तथा अपनी ब्यक्तिगत प्रकृति में अचानक हो रहे परिवर्तन से..
इस जगत के भाग्य के लिए इस प्रश्न का उत्तर देने का मुझ पर कृपा करे......प्लीज कमेन्ट करे..जीवन आपका है और जीना आपको ही है इसी जगत में॥

कमेन्ट.E mail .shivputra_ekmission@yahoo.co.in.

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