Friday, April 13, 2012

“माँ कामाख्या” की शंख ध्वनि न सुनने से “मूल प्राकृतिक शक्तियां” क्रुद्ध और उग्र होती जा रही हैं।





“माँ कामाख्या” (सती─भगवान् शिव की प्रथम अर्धनारी, शक्ति) की शंख ध्वनि न सुनने से “मूल प्राकृतिक शक्तियां” (दसों महाविद्द्याएं─माँ कामाख्या के दस रूप) क्रुद्ध और उग्र होती जा रही हैं।

सावधान ! सावधान !! सावधान !!!

हम पूर्व नियोजित कार्यक्रम अनुसार हैदराबाद (दक्षिण भारत) में अपना अल्प प्रवास पूरा कर 19 मार्च 2012 को ‘जाग्रत त्रिकोण’ के अपने केंद्र पर दिल्ली वापस आ गए।

जगत् में यह अलौकिक अवसर था, जब दूसरी बार जगत् के विधाता “बाबा” शिव अपनी प्रथम अर्धनारी शक्ति सती (कामाख्या) और अपने अघोर पुत्र के साथ धरती ऊपर जाग्रत त्रिकोण के बाहर हैदराबाद गए। इससे पूर्व जैसा कि मैंने हैदराबाद की पिछली यात्रा पर जाते समय मानव समाज को सूचित किया था, उसी प्रकार इस बार भी धरती के ध्रुवीय संतुलन पर झटका पड़ना ही था।

जाड़े के दिनों में कुछ समय के लिए की गई उस यात्रा से धरती पर काफी विशाल क्षेत्र बर्फ के आगोश में ढक कर सफेद चादर ओढ़े रहा। जो की आप सभी ने अपनी आँखों से देखा और स्वयं साक्षी भी बने। इसी तरह इस बार की यात्रा के उपरांत् भी कुछ विशेष प्राकृतिक घटनाक्रम अचानक घटित होने की संभावना बनने लगी थी।

वापस आने के दूसरे दिन 20 मार्च 2012 को अचानक ‘अघोर शिवपुत्र’ के स्थूल शरीर का स्वास्थ गंभीर रूप से बिगड़ने लगा।

अभी सम्हला भी नहीं था कि अगले दिन प्रात: काल से ही माँ कामाख्या ( सती के स्थूल मानव शरीर का.. ) का स्वास्थ्य भी बहुत गंभीर हो गया और निरंतर बिगड़ती दशा में उन्हें गहन चिकित्सा के लिए दिल्ली के एक प्रसिद्द प्राइवेट हास्पिटल में दाखिल करवाना पड़ा।

चिकित्सकों के समूह ने अत्यंत कठिन प्रयास से उन्हें सम्हालने में सफलता प्राप्त की, परन्तु लम्बे समय (लगभग 18 दिन) तक उन्हें अपने बिस्तर पर ही व्यतीत करना पड़ा। अभी भी उन्हें काफी कमजोरी है और औषधि चल रहा है।

इसी मध्य 23 मार्च 2012 से नवरात्र प्रारंभ हो गया, और हम लोग स्थूल कर्मकान्डिय पूजन से दूर रहे, कारण कि ‘अघोर शिवपुत्र’ पूरी तरह अपनी माँ कामाख्या की स्थूल शरीर की देख भालभाल में इतना मशगुल हो गए कि उन्हें बाहरी दुनिया की जरा सा भी होश नहीं रहा।

एक तरफ अघोर शिवपुत्र पहले से ही जहर के प्रभाव से जन्मे दुस्प्रभाव के कारण कुछ समय से शंख ध्वनि नहीं कर रहे थे, और अब स्थूल मानव शरीरधारी माँ सती (माँ कामाख्या) भी शंख ध्वनि करने में असमर्थ थीं, वहीँ दूसरी ओर पूरे नवरात्र “शिवपुत्र एक मिशन” ..अर्थात्…. “जाग्रत त्रिकोण के एक केंद्र दिल्ली” पर शंख ध्वनि नहीं हो सकी।

अपनी अस्वस्थता के कारण पहले शिवपुत्र ….और.. अब माँ कामाख्या के द्वारा मध्य दिन में की जा रही शंख ध्वनि अभी तक पूरी तरह बाधित है।

अचानक घटित इस अघटित घटना के बारे में अघोर शिवपुत्र रूचि दीदी के साथ वार्ता ही कर रहे थे कि एक दिन बोल पड़े—

“मैं प्रकृति में किसी बड़े घटना के घटित होने का इंतजार कर रहा हूँ। पूर्व दिशा से कुछ समाचार आना चाहिए।”

माँ के स्थूल शरीर के अस्वस्थ्य होने और जाग्रत त्रिकोण से शंख ध्वनि के निरंतर बाधित रहने से माँ की मूल प्राकृतिक शक्तियां निरंतर क्रुद्ध और आक्रोशित हो धरती के उपरी सतह पर भारत के पूर्वी क्षेत्र में प्राकृतिक तत्त्व अपनी रौद्रता निरंतर प्रकट कर रही थी, जिससे बंगाल क्षेत्र में असमय निरंतर आंधी, तूफान का आना बढ़ता ही जा रहा था कि माँ की मूल शक्तियां धरती के अन्दर की स्थिति को झकझोड़ने लगी और कल दिन में भारत के पूर्वी क्षेत्र इंडोनेशिया में 8 .7 तीव्रता का भयानक भूकंप आ गया।

यह स्मरण रहे कि पिछले वर्ष हिमालय से ”बाबा”… श्री केदारनाथ जी.. के मंदिर का कपाट खुलने के साथ ही जाग्रत त्रिकोण के अपने दिल्ली वाले केंद्र पर यहाँ आए हुए हैं और अभी यहीं हैं। जहाँ पर बाबा ने अपनी देखरेख में ”माँ सती-कामाख्या” को ठहरने के लिए एक छोटे से स्थान का निर्माण करवाया है और अपने पुत्र …….(प्रथम मानव शरीरधारी ‘अघोर’) को उनकी सुरक्षा व् देखभाल की अभेद्य जिम्मेदारी सौंपी है।

इस वर्ष 28 मार्च 2012 को हिमालय में बाबा केदारनाथ जी के मंदिर का कपाट हर वर्ष की माफिक परम्परागत् रूप से खुलेगा लेकिन बाबा केदारनाथ अपनी शक्ति सती माँ कामाख्या और शिवपुत्र के संग धरती पर हिमालय से नीचे ही रहेंगे।

अभी बाबा का आदेश धरती के बिगड़ते संतुलन को नियंत्रित करने के लिए है। इसके निमित्त हमें (अघोर शिवपुत्र और माँ कामाख्या को) शीघ्र ही भारत के पूर्वी क्षेत्र में जाने का आदेश मिला है।

पहले हम दिल्ली से आग्नेय दिशा में जाकर, फिर वहां से पूर्वी दिशा में स्थित बंगाल क्षेत्र में प्रवेश करेंगे।

इस योजना के तहत धरती पर एक अस्थाई त्रिकोण, दिल्ली केंद्र से निर्मित हुआ है, जो जमशेदपुर (टाटा नगर) होते हुए कोलकाता से जुड़ा है।

माँ कामाख्या और अघोर शिवपुत्र का स्थूल शरीर अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं है, पर जगत् की रक्षा और प्रकृति की संतुलन के लिए के लिए बाबा के आदेश पर हमें अपना यह मिशन किसी भी हद तक जाकर सफलता पूर्वक संपन्न करना ही है, क्योंकि माँ की मूल शक्तियां प्राकृतिक जगत् में प्रचंड रूप से उग्र होती जा रही हैं।

यह सूचना मानव कल्याण के लिए एक सन्देश मात्र है।

आगे अपनी निगाहे यदि खुली और ध्यान पूर्वक चौकन्नी रखी जाएँ, तो प्रकृति में हो रही रही हलचलों को सहजता से देखी-सुनी और समझी जा सकती हैं।

…..यह घटना क्रम …..

……...जगत के विधाता और आदि पुरुष शिव तथा आदि माता सती कामाख्या की अपने पुत्र के साथ इस धरती पर जीवित सशरीर उपस्थिति का प्रमाण है……कि….हम सब जाग्रत हैं और धरती पर चल फिर रहे हैं।

आप सबको प्यार और धन्यवाद् कि ”परमात्मा के इस अलौकिक उपस्थिति का साक्षी आप सभी मानव और जीव बन रहे हैं”।

”अघोर शिवपुत्र”

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Tuesday, December 20, 2011

''जाग्रत त्रिकोण'' के अस्थाई स्थान परिवर्तन से उत्पन्न दबाव को हमने सम्हाल लिया..



''जाग्रत त्रिकोण'' के अस्थाई स्थान परिवर्तन से उत्पन्न दबाव को हमने सम्हाल लिया..
कुछ दिनों के लिए हमारे दक्षिण भारत की तरफ जाने से धरती के जिस मूल त्रिकोण का स्थान परिवर्तन हुआ, उससे धरती के अन्दर स्थित अधोमुखी त्रिकोण पर दबाव बढ़ने लगा. बाबा के निर्देश पर इस यात्रा में मुझे धरती के 'विद्युत चुम्बकीय संतुलन' को नियंत्रित करने के लिए, उसके घर्षण के परिणाम से उत्पन्न ऊर्जा को नियंत्रित करने का अनुशंधान करना था.
हम लोगों के दिल्ली से भारत के दक्षिण क्षेत्र की तरफ जाने से कुछ समय के लिए धरती के भीतर स्थित अधोमुखी त्रिकोण पर दबाव बढ़ा जिससे भारत में तथा भारत के बाहर भूकंप के हलके झटके आए.
पिछले नवम्बर 2011 के तीसरे और चौथे सप्ताह तथा दिसंबर के प्रथम सप्ताह में जब आप धरती पर हो रही प्राकृतिक घटनाओं पर अपनी नजर डालेंगे तो देखेंगे कि इसी अन्तराल में भारत के पूर्वी दिशा में स्थित म्यामार, भारत के अन्दर आसाम, गुजरात, महारास्ट्र के नांदेड व तमिलनाडू में भूकंप के हलके झटके महसूस किये गए.
इस यात्रा में मुझे धरती और प्रकृति में स्थित अधोमुखी त्रिकोण व ऊर्ध्वमुखी त्रिकोण के आपसी घर्षण के परिणाम को नियंत्रित करने का अभ्यास करना था. इन हलके तीव्रता के भूकम्पों का भारत में प्रवेश मुझे सचेत करने के लिए काफी था. इस असंतुलन को देख कर मुझे ऐसा लगा की संभवत: कहीं मुझसे कोई चुक न हो जाए, क्योंकी मेरे अनाहत चक्र (ह्रदय) पर ऊर्जा के दबाव का प्रचंड वेग होने से मेरे ह्रदय में दर्द होना प्रारंभ हो गया था.
मानवीय स्वभाव के तहत मुझे आशंका हो उठी कि कहीं इस क्षेत्र में भयानक भूकंप न उत्पन्न हो जाये, फिर ऐसी स्थिति में कैसे इसे सम्हाल पाउँगा, लेकिन सब कुछ नियंत्रित हुआ.
साथ में बाबा केदारनाथ (शिव) जी अपनी सभी मूल शक्तियों ( माँ कामख्या और दसों महाविध्या रूप रूप शक्तियां) के साथ खुद उपस्थित जो थे.
भारत इससे उत्पन्न असमान्य प्राकृतिक आपदा से तो बच गया लेकिन धरती के अन्य देशों पर इसका प्रभाव स्पस्ट रूप से दिखने लगा है..
इन कठोर परिस्थितियों में अत्यधिक परिश्रम से मेरा स्वास्थ गड़बड़ा गया , लेकिन हम अपने भारत की भू-भाग में आने वाली प्रचंड आपदा से सुरक्षा करने में सफल रहे..
कल ही मैं समाचार माध्यम पर देख रहा था...
''फिलिपिन्स'' में प्रचंड बारिस से भयानक तबाही आ गयी है और हजारों नागरिकों की मौत हुई है.
''न्यूजीलैंड'' में भी भारी बारिस से बाढ़ आने के बाद तबाही फ़ैल गयी है..( वहां का पूरा समाचार नहीं मालूम...)
'ब्राजील' में भी बाढ़ से भयानक तबाही का मंजर है....( वहां का पूरा समाचार नहीं मालूम...)
और ''पोलैंड'' में भी जल प्रलय मचा हुआ था.....( वहां का पूरा समाचार नहीं मालूम...)
ऐसे ही न जाने धरती पर किन- किन देशों में प्रकृति अपनी प्रलय लीला खेल रही है ? ..इसका सटीक जानकारी हमें नहीं मिल पा रही है, कारण कि भारतीय संचार माध्यम अपना अधिकतर समय वाहियात समाचारों और कमाऊ प्रचार में ही लगाते हैं.
यहाँ वही समाचार पहुँचते हैं जो बासी हो चुके होते हैं...या तो फिर पहुँचते ही नहीं.
इससे हमें संसार में घटित होने वाले सही समाचार प्रकृति का नहीं मिल पाते.
वैसे दक्षिण भारत कि इस यात्रा से उत्पन्न दबाव का प्रभाव अभी अन्य अनेक देशों कि प्रकृति पर भी भयानक रूप से पड़ेगा...
''जल' तत्व अपने हर रूप से अपना विभत्स प्रदर्शन करेगा .....
और भूमि पर विनाशकारी दृश्य उपस्थित होगा....
सबके साथ हम भी इस 'यात्रा' से उत्पन्न परिणाम का धैर्य से प्रतीक्षा करेंगे...
दोनों त्रिकोणों के आपसी घर्षण से उत्पन्न ऊर्जा जो धरती के अन्दर उत्पन्न हुई है, वो यूँ ही बर्बाद तो होगी नहीं , कहीं न कहीं से मार्ग बना कर धरती के उपरी सतह पर अपना प्रदर्शन करेगी ही ...
जहाँ तक मै समझता हूँ ...और देख रहा हूँ.....
.......प्रकृति में हो रहा जल प्रलय इन्हीं घटनाकर्मो की एक श्रृंखला मात्र है......
..वैसे, मुझसे ज्यादा जानकारी तो आज का अत्याधुनिक वैज्ञानिक ही दे सकता है ,इस बारे में...
प्रकृति में उत्पन्न इस विक्षोभ का परिणाम अभी आगे भी यूँ ही निरंतर आता रहेगा..
बस हमें मनुष्य बन कर देखना है..
..उम्मीद है....बाबा केदारनाथ (शिव)जी के हिमालय से नीचे जाग्रत त्रिकोण के दिल्ली वाले कोण पर स्थित रहने से जाड़े के इस मौसम में पिछले अनेक वर्षों के मौसम के रिकार्ड टूटेंगे...
कुछ प्रमुख व्यक्तियों ( शख्शियतों) के आकस्मिक मृत्यु का समाचार भी मिल सकता.
कुछ ऐसी घटनाएँ घटित होंगी जिनसे मानव जगत और देशों के सिस्टम में अचानक परिवर्तन हो सकता है.
....शेष अनेक सन्देश ..मिशन की गोपनीयता के कारण यहाँ सार्वजनिक रूप से प्रकाशित नहीं किया जा रहा है.
आगे जब भी हम दिल्ली से बाहर यात्रा करेंगे और 'जाग्रत त्रिकोण' में अस्थाई परिवर्तन होगा ,सुचना और सन्देश आप तक इसी माध्यम से पहुचाते रहेंगे...तब तक..आप अपना कर्म करते हुए परमात्मा का ध्यान करें ....
.... आपका ही..
.....''अघोर शिवपुत्र''.....

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Tuesday, November 8, 2011

!!! सावधान...!!!...सावधान...!!!...सावधान...!!!.. मानव सभ्यता के इतिहास में यह प्रथम अवसर है.


Dt .08 .nov .2011

सतयुग में भगवान शिव की प्रथम अर्धनारी शक्ति (सती) के अपने पिता 'राजा दक्ष' के महायज्ञ में अपनी स्थूलशरीर की आहुति के पश्चात अब इस कलियुग में कामरूप (आसाम)से अपनी सभी दसों रूपों के साथ मुक्त हो चुकी माँ कामाख्या (सती-शक्ति) अपने 'परम पुरुष "भगवान शिव'' के संग एक साथ धरती पर भारत भूमि में अपने अस्थायी आसन -स्थान (दिल्ली वाले कोण-Aangle) से दक्षिण भारत की तरफ कुछ दिनों के लिए जा रही हैं.

यह यात्रा इस जगत के लिए अविश्मरणीय,अलौकिक,अतुलनीय और प्रथम दर्शनीय अवसर है.

जब ''बाबा और माँ '' अपने प्रथम मानव शरीरधारी अघोरपुत्र (शिवपुत्र) और अपनी 'अघोर पोती' के साथ इस धरती पर एक साथ चलेंगे.

मानव सभ्यता के इतिहास में यह प्रथम अवसर है.

धरती पर स्थिल 'जाग्रत त्रिकोण' जो ''केदारनाथ > काशी और दिल्ली' से जुड़कर अभी स्वतंत्र रूप से 'जीवित स्थित' है.तथा प्रकृति संतुलन का मूल केंद्र और कारण है .इनके चलने से धरती के अन्दर बिधाता 'शिव' द्वारा निर्मित 'अधोमुखी त्रिकोण' (अमेरिका-चीन और पाकिस्तान से जुडा उल्टा त्रिकोण )के Electromagnetic Field पर प्रचंड उर्जा का जन्म होने से प्रकृति पर दबाव बनेगा.

परमशक्तियों का अपने 'परमपुरुष' के साथ यह मूवमेंट ''विकृत प्रकृति" से 'मूलप्रकृति' में परिवर्तन के लिए और मानव जगत के रक्षा व् कल्याण के लिए निहायत जरूरी हो गया है.

यह 'विकृत प्रकृति' मानव सभ्यता में निरंतर हो रहे निम्नगति के जीवन ,सोच,आचरण,चारित्रिक पतन ,असामयिक जीव हत्या (भ्रूण हत्या),आसुरिक पूजापद्धति का व्यक्तिगत जीवन में कुटिलता व् चरमभोग से जन्मे तरंगो से निर्मित वातावरण का परिणाम है.

और इस 'विकृत प्रकृति' को निर्मित करने में आज इस वर्तमान कालखंड में अत्यंत विकसित मानव मस्तिष्क अत्याधुनिक बिज्ञान का बहुत बड़ा सक्रिय योगदान व् सहयोग है.

यह सभी मिलकर आज इस पवित्र धरती पर एक महाअसुर 'ग्लोबल वार्मिंग' का निर्माण कर चुके हैं.

'ग्लोबल वार्मिंग'....... के नाम से बहुप्रचारित यह सर्वभौमिक महान असुरदैत्य !

मानवों की अपनी व्यक्तिगत उपलब्धि है.जो इस धरती पर जीवन को निरंतर निगलता जा रहा है.

'भविष्यवक्ताओं व् बिज्ञान के पितामह 'नासा' द्वारा यह सुचना व् सन्देश पहले से ही संचार माध्यमो से सारी धरती पर प्रचारित किया जा रहा है की 2011 के बाद 2012 में बहुत कुछ भयानक होने वाला है.संभवत: 2012 के आखिरी दिनों में यह सृष्टी नस्ट होने की स्थिति में पहुँच रही है.
ग्लोबल वार्मिंग और ऐसे ही अन्य सभी स्थितियों को नजर में रखते हुए इस सृष्टी के 'बिधाता परमात्मा परम पुरुष 'शिव श्रीकेदारनाथ जी' ने अपने 'जाग्रत त्रिकोण' के एक सिरे दिल्ली से कुछ दिन के लिए दक्षिण दिशा में जाने का मन बनाया है.

ऐसी स्थिति में मुझे इस बात का गहरा अध्ययन करना है की 'जाग्रत त्रिकोण' के गतिमान होने से धरती के चुम्बकीय क्षेत्र व् प्रकृति परिस्थितियों पर कैसा असर पड़ता है.

जिससे जब यह धरती अपने अस्तित्व के आज तक के सबसे संकटकाल 2012 में से गुजरे तब 'अघोर शिवपुत्र' इस धरती और जीवन को बचाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर इस जगत की रक्षा कर सके.

धरती के अन्दर और धरती पर स्थित इन दोनों त्रिकोणों के घर्षण से उत्पन्न स्थितियों को अपने संतुलन से नियंत्रण करने का अभ्यास 'अघोर शिवपुत्र' इस यात्रा में करेंगे.ताकि भविष्य में सृष्टीरक्षा के लिए समय पर काम आ सके.इसमे जीवन की आहुति है.वो देना ही पड़ेगा.

इस यात्रा के परिणाम में...

जब परमात्मा 'शिव ' अपनी समाधि (अपने आसन ) से उठकर अपने मूलशक्ति (कामाख्या व् सभी दसरूपों ) के साथ धरती पर चलेंगे.तो,प्रकृति ! जो मूल माँ शक्ति (कामाख्या )की शक्तियों का विस्तार रूप है और दसो दिशाओं में इस जगत में व्याप्त होकर व्यक्त है.वो भी साथ-साथ चलेंगी.

यहाँ यह भूलने वाली बात नही है कि पिछले कई युगों से सेकण्डखंड में बंधी हुयी शिव की अर्धनारी शक्ति माँ कामख्या अब अपनी पूर्वबंधन अवस्था से पूर्णतया मुक्त व् स्वतंत्र है.

प्रकृति में मूल पाँच तत्व सदा ही व्याप्त हैं.

ये तत्व पृथ्वी(धरती), जल,अग्नि,वायु और आकाश सहित कुल संख्या में पाँच हैं.प्रकृति में इन मूल तत्वों का कभी भी अभाव नही होता.बल्कि परिस्थितिजन्य अवस्था में ये आपस में टकराहट से अपनी अवस्था में परिवर्तन करते हैं.

मूल तत्वों के इस अवस्था परिवर्तन व् आपसी सम्भोग से धरती पर भूकंपीय घटनाये(Earth quike ) घटित होने लगती हैं.

जलतत्व का प्रकोप अपने चरम की तरफ बढ़ते हुये बरसात ,बाढ़(flood ) और बर्फ़बारी के रूप में प्रदर्शित करने लगते हैं.

अचानक अग्नि,ज्वालामुखी भड़क उठता है.हवाए प्रचंड रूप धारण कर भयानक परिणाम देने लगती है.

आकाश वज्रपात करने लगता है.

मार्ग में आने वाली वो सारी बाधाएँ, जो कुछ भी मानव निर्मित निर्माण होता है.सबका बिध्वंस करते हुए अपना पुनरनिर्माण का कार्य निरंतर जारी रखती हैं.

अगर विकृत प्रकृति अपने मूल प्रकृति में परिवर्तन के निर्माण से नही गुजती है.तब प्रकृति में विक्षिप्तता उत्पन्न होने लगती है.

प्रकृति की विक्षिप्तता को महामारी,अज्ञात बीमारी,भयानक मारकाट,रक्तरंजित ,रक्तपात भरा महायुद्ध, अविश्वास,अश्रद्धा,चरम स्वार्थ,आपसी गृहयुद्ध,अराजकता,भ्रटाचार,अकाल,अतिवृस्टी,असामान्य मौसम और असुरत्व प्रधानता वाली घटना कर्मो आदि से चारो तरफ हाहाकार और त्राहि-त्राहि मचने लगता है. बचने का कोई मार्ग जीवन में नही दिखलाई पड़ता है.

धर्म का प्रचार तो खूब जमकर होता है.लेकिन धर्मो के आपसी,पारस्परिक व् आंतरिक कलह से तथा आचरण में धर्म का अभाव होने से जीवन असामान्य होकर आत्मघाती हो जाया करता है.यह आत्मघात कभी व्यक्तिगत,तो कभी सामूहिक होने के साथ ही सामाजिक भी हो जाया करता है.

अहन्कारित व् अब्यावहारिक सत्ताओं का सत्ता पलट और ब्यवस्था परिवर्तन के लिए यह सूक्ष्म जगत की मूलप्राकृतिक शक्तियां खुलेआम अपना प्रदर्शन करती रहती हैं।यह विराट परिवर्तन सारे जगत में प्रमाणित होने लगता है.
परमात्मा-बिधाता शिव केदारनाथ जी के अपनी सभी मूल शक्तियों के साथ इस धरती पर चलने से जब जाग्रत त्रिकोण में कोणीय परिवर्तन होगा तब मुझे इसके संतुलन और नियंत्रण का परीक्षण करना होगा
.

जब बाबा चलते हैं,तब उनकी शक्तिया (माताएं) नृत्य करती हैं
.ये माताएं साकार में तो शक्ति रूप हैं पर धरती की प्रकृति में तत्व रूप से अपनी भावनाए व्यक्त करती हैं.इसलिए ऐसे अवस्था में हमे प्रकृति की तरफ से दृश्य घटनाक्रम रूप में साकार निर्मित होकर सुचना व सन्देश मिलने लगते हैं. यह मनोहारी व् परिवर्तनकारी नृत्य बहुप्रतीक्षित रोमांचकारी प्रतीक्षा का परिणाम होता है.

आज का बिज्ञान अत्याधुनिक है.वो प्रकृति द्वारा धरती पर भेजी जा रही इन संकेतो को मानवों के सामने सुचना रूप में प्रसारित करता है.हमे इस संकेतो और संदेशो पर अपनी नजर रखनी ही होगी.

दक्षिण दिशा की यात्रा निश्चित होते ही .धरती के अनेक हिस्सों से प्राकृतिक जगत से सूचनाएं आने लगी हैं.

भारत के उत्तरपश्चिम सींमा (कश्मीर -पाकिस्तान और अफगानिस्तान सीमा)पर अभी कल ही शाम को 6 की तीव्रता वाला भूकंप आया है.

और आज सुबह ताइवान में 6 .9 की तीव्रता का भूकंप आया है.वैसे भी भारत की हिमालय क्षेत्र की सीमाओं पर पूर्व से उत्तर पश्चिम तक लेकर छोटे-छोटे भूकंप निरंतर आने लगे हैं.इसमे कुछ तो दैवीय रहस्य होना ही चाहिए.?

अगर बिज्ञान फेल हो चूका है.तो कोई जरूरी नही की एक 'मानव ' भी फेल कर जाये.

इसलिए हमे अपनी शक्ति सामर्थ्य का प्रदर्शन करना ही होगा.

चुकी हम प्रथम मानव शरीर धारी अघोर हैं इसलिए हमारी इस धरती के रक्षा के प्रति जिम्मेदारी ज्यादा बनती है.

सभी अपने -अपने ज्ञान के सामर्थ्य का प्रदर्शन कर ही रहे हैं.चुकी हम जाग्रत त्रिकोण के एक सक्रिय कोण होने से सबकी तरह बेहोश नही हो सकते.

बिधाता--परमात्मा प्रथम पुरुष शिव के अपने परिवार के साथ दक्षिण दिशा की इस यात्रा में भगवान बद्रीनाथ जी,भगवान जगन्नाथ जी.माँ गायत्री,माँ दुर्गा ,श्री हनुमान जी,श्री गणेश जी आदि अनेक मुक्त मूल शक्तियां सामिल हैं.

इस जगत में यह प्रथम बार घटित होने से उत्पन्न परिणाम इस धरती पर उपस्थित सभी स्थूल शरीरधारी व् अशरीरी जीवो व् देवी- देवताओं द्वारा दर्शनीय है.

क्या आज अपने -अपने वैभव,सम्पन्नता और धर्म का अहंकार लिए अत्याधुनिक 'ज्ञानी' हो चूका 'मानव' इस 'यात्रा का अनुसन्धान' और अध्ययन कर सकता है.?

लेकिन 'सत्य को जानने वाला अत्याधुनिक बैज्ञानिक मानव क्या युगों पूर्व,आदिमकाल से चले आ रहे इस वर्तमान के 'यथार्थ' को स्वीकार कर पायेगा..?

''अघोर शिवपुत्र''

( इस बारे में जानने के लिए इस लिंक पर चलें... www.shivputraekmission.org

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Sunday, November 6, 2011

धरती पर स्थित ''जाग्रत त्रिकोण'' में कुछ दिन के लिए अस्थायी परिवर्तन होने वाला है.


हम बहुत जल्द कुछ दिनों के लिए दिल्ली से बाहर जा रहे हैं.मेरे पिताश्री बाबा केदारनाथ जी ( परमात्मा 'शिव' जी ) ने मुझे दिल्ली से दक्षिण दिशा की ओर कुछ दिनों के लिए जाने के लिए बोला है।


दक्षिण भारत की यात्रा में मुझे धरती के ऊपर स्थित 'जाग्रत त्रिकोण' (उर्ध्वमुखी त्रिकोण) और धरती के अन्दर 'अधोमुखी त्रिकोण'(ब्लैक करेंट वाले त्रिकोण ) के बिच उत्पन्न आपसी 'इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तरंगो' के घर्षण से उत्पन्न परिस्थितियों का अध्ययन करना होगा.

इन उर्ध्वमुखी और अधोमुखी त्रिकोण के आपसी सम्बन्ध के आधार पर ही धरती का संतुलन "मूलबैलेंस" निर्भर करता है...
इन दोनों प्रकार के त्रिकोण के आपसी संतुलन के समानुपातिक अनुपात से ही धरती के अन्दर की प्रकृति और धरती के ऊपर की प्रकृति में प्राकृतिक संतुलन हो सकता है।


जब भी धरती के ऊपर स्थित त्रिकोण गतिमान होगा.तब धरती की प्रकृति में तीव्रता से परिवर्तन होगा ही होगा.

'बिधाता' के इस आदेश से 'बाबा'(परमात्मा) अपनी सभी 'मूलशक्तियों' के साथ दिल्ली के तरफ से दक्षिण दिशा में कुछ दिनों के लिए पहुचेंगे.जिससे धरती की प्रकृति में अचानक तीव्रता से दबाव बढेगा।

इसके परिणामस्वरुप सारी धरती पर प्रकृति में अचानक परिवर्तन साफ-साफ दिखलाई पड़ेगा.

स्पस्ट रूप से सका प्रभाव अमेरिका समेत सभी यूरोपीय देशो और भारत के उत्तर के देशो पर तेजी से अपना परिणाम देने लगेगा।

बैज्ञानिको द्वारा अनुमानित सभी गणनाओ के उलट अप्राकृतिक घटनाक्रम निरंतर होने लगेंगी और इसका कारण बैज्ञानिको के समझ से बाहर होगा. मौसम की अचानक मार से इन्हे गुजरना होगा.इनके द्वारा संसार पर थोपी गयी 'ग्लोबल वार्मिंग' इनके ऊपर ही सबसे पहले अपना असर दिखलाएगी.

यह अत्याधुनिक बैज्ञानिको के हरकतों द्वारा जन्मे गये 'ग्लोबल वार्मिग ' से 'विकृत' हो चुकी 'प्रकृति को मूल प्रकृति' में परिवर्तित करने के लिए निहायत ही जरूरी हो गया है.

बाबा के आदेश दिए जाने के बाद से ही प्रकृति से धरती के कुछ हिस्से से अचानक हल्के-फुल्के समाचार आने प्रारंभ हो गये हैं.

धरती के ऊपर भारत भूमि पर स्थित यह 'उर्ध्वमुखी जाग्रत त्रिकोण' (Live Triangle) का दिल्ली वाला कोण (Angle) अब दक्षिण की ओर अस्थायी रूप से मूव करेगा.

यह समाचार धरती के सभी मानवों के लिए है.क्योकि यह बिधाता द्वारा द्वारा नियोजित है.
इस बारे में ज्यादा जानने के लिए आप सभी का इस लिंक पर स्वागत है.....

www.shivputraekmission.org

(इसमे आपको 'जाग्रत त्रिकोण" से सम्बंधित जानकारी मिल जाएगी.)
(
अभी यह वेबसाइट अपने निर्माण प्रक्रिया में है.बहुत आवश्यक समझकर इसका लिंक आपको दिया जा रहा है.यह लिंक सेफ जरुर कर लीजिये. यह समय-समय पर सुचना और सन्देश के लिए काम आएगा.और आप भी वर्तमान घटनाक्रमों को इस धरती पर घटित हुए पा सकेंगे.यह साईट आपका ही है.आपके लिए ही है.किसी के कोई प्रचार के लिए नही है.)

जल्दबाजी न करे.जब 'प्रकृति से परिवर्तन की घटनाये' आने लगे तब इस लिंक पर जाकर जरुर से देख लिया करे.
कुछ -कुछ बिधाता के द्वारा वर्तमान कालखंड में घटित हो रहे सन्देश और सुचना प्राप्त होता रहेगा.

धरती के विकृतप्रकृति से मूलप्रकृति में परिवर्तन के अतिमहत्वपूर्ण कार्यब्यस्तता के कारण प्रकृति और धरती की रक्षा से समय जैसे ही मिलता रहेगा .

हम इस अत्याधुनिक मानव समाज तक प्रकृति में परिवर्तन से सम्बन्धित समाचार इस website link और अपने facebook के अपने wallpost के माध्यम से सारे जगत के सामने पहुचाते रहेंगे.
धरती के ऊपर और अन्दर की प्रकृति तथा देशो के रास्ट्रीय - अंतररास्ट्रीय घटनाओं पर अपनी तेज नजर जरुर बनाये रखें..
आप सभी को धन्यवाद्....
.......
''प्रथम मानव शरीरधारी 'अघोर शिवपुत्र''...

कृपया आगे का समाचार जानने के लिए इस लिंक का उपयोग करे.
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pl इ -मेल करे....... shivputra_ekmission@yahoo.co.in

Monday, October 24, 2011

.................''पुरुषार्थ के पूर्व.''..............


(इसी ब्लाग के पिछले लेख में से कुछ महत्वपूर्ण अंश संग्रह )

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भगवान पर लान्क्षन लगाना ,परमात्मा पर दोष का आरोपण करना सरल भी तो बहुत है.कोई प्रत्युत्तर देने वाला तथा प्रतिरोध करने वाला साकार में सामने नही है..
और इससे मिलता भी क्या है ब्यक्ति को .?
बस अपने मन की भड़ास निकालकर कुछ पलों के लिए अपने आप से भाग सकता है.
लेकिन अपना अब आगे का जीवन भी तो ब्यक्ति को खुद ही जीना होता है..
ब्यक्ति अपने से भाग कर कहाँ जायेगा.?
अगर अपना जीवन हमे खुद ही जीना है.अगर हमारा जीवन कोई अन्य नही जीने आने वाला है,तो,हमे अपने वर्तमान परिवेश में उत्पन्न परिस्थितियों की तरफ ध्यान पूर्वक एकाग्रता से होशपूर्वक देखना होगा...
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जो अन्दर और बाहर दोनों जगह 'विचरण' करता हो.वह 'विचार' है.स्वतंत्र व् मुक्त विचरण करने वाला 'तत्व' विचार है....

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जब सारे इतिहास ,सभ्यताए,शास्त्र और प्रमाण मिलकर भी ''सत्य और धर्म'' की स्थापना करने में असमर्थ हो जाते हैं ......तब 'वह' यथार्थ रूप में सशरीर साकार उपस्थित होता है ....और उस परमात्माके कार्य का संपादनकरता है .....प्रतिनिधि बन कर...

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..'प्रवचन' सदा ही दुसरे का वचन होता है,अपना नही.और' धर्म' सदा ही 'अपना' होता है.
....'
धर्म' में कोई 'दूसरा' नही होता.प्रवचन में कहीं-कही 'धर्मचर्चा' तो हो भी सकती है,इसमे धर्म 'चर्चा' की 'संभावना' है,पर 'धर्मप्राप्ति 'दुर्लभ है.इसीलिए लिखा हुआ मुख्य वाक्य
[
जीवन में प्रायोगिकता और अपने चेतना के विस्तार से अलग ,क्या सिर्फ पुस्तकों पर छपे हुए ज्ञान से भूख भर सकती है......?]
अत्यंत महत्वपूर्ण ,गंभीर,समझने में सरल और रहस्यपूर्ण है.शांति से व् बिना पूर्व ज्ञान के पढने से,'वह' मिलता है,जिसकी व्यक्ति को ' भूख' होती है....

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स्वभाव में जब कमियां ,कमजोरियां और दुराग्रह का निष्कासन जितना शीघ्र होगा.अपने इष्ट (परमात्मा ) की समीपता उतनी ही स्पस्ट अनुभूति होगी...

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हिमालय की दुर्गमता और प्रकृति की विपरीत असमान्य स्थितियां मुझे अत्यंत प्रिय हैं और मुझे अपनी ओर खींचती हैं.इससे मै यह महसूस करता हूँ की प्रकृति अपने साकार रूप से हमारे मेरे आसपास जीवंत उपस्थित और सक्रिय है.

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हे प्रिय..!.. जहाँ तक सत्य और असत्य की बात है....मै क्या जानू सत्य ...जिस सत्य के सामने झूठ का प्रतिछाया(डर) सदा ही उपस्थित रहा करता है ॥
मै उस कमजोर सत्य का साथी नही.... ॥
.... बल्कि...........॥ 'मै' तो ''सत्य से मुक्त यथार्थ'' हूँ॥.......

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''ज्ञानी'' के ज्ञान की तो एक निश्चित सीमा होती है.उसके आगे बढ़ने में वह भयभीत होता है.क्योकि अपना ज्ञान छोड़ना पड़ेगा ,अपने अभी तक के ज्ञान से आगे बढ़ने के लिए...अपने ज्ञान का अंत होने का एक भय जन्मता है.उसी भय से वह अपने ज्ञान में ही सिमित रह जाता है.अपने ज्ञान को सामने रखकर सारे जीवन भर ''तर्क व् बहस'' करता रहता है.और खुद अपने लिये ही अपने जीवन के सरल रास्ते बंद कर लेता है....
जबकि ''जीवन'' अपना ही ''बीत'' रहा होता है....

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भगवान पर लान्क्षन लगाना ,परमात्मा पर दोष का आरोपण करना सरल है.कोई प्रत्युत्तर,प्रतिरोध करने वाला 'साकार' सामने नही है.और मिलता भी क्या है ब्यक्ति को ?बस अपने मन की भड़ास निकालकर कुछ पलों के लिए अपने आप से भाग सकता है.लेकिन अपना अब आगे का जीवन भी तो ब्यक्ति को खुद ही जीना होता है.ब्यक्ति अपने से भाग कर कहाँ जायेगा?
अगर अपना जीवन हमे खुद ही जीना है.अगर हमारा जीवन कोई अन्य नही जीने आने वाला है तो हमे अपने वर्तमान परिवेश में उत्पन्न परिस्थितियों की तरफ ध्यान पूर्वक एकाग्रता से होश पूर्वक देखना होगा.

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''ज्ञानी'' के ज्ञान की तो एक निश्चित सीमा होती है.उसके आगे बढ़ने में वह भयभीत होता है.क्योकि अपना ज्ञान छोड़ना पड़ेगा ,अपने अभी तक के ज्ञान से आगे बढ़ने के लिए...
अपने ज्ञान का अंत होने का एक भय जन्मता है.उसी भय से वह अपने ज्ञान में ही सिमित रह जाता है.अपने ज्ञान को सामने रखकर सारे जीवन भर ''तर्क व् बहस'' करता रहता है.और खुद अपने लिये ही अपने जीवन के सरल रास्ते बंद कर लेता है....जबकि ''जीवन'' अपना ही ''बीत'' रहा होता है...

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एक ब्यक्ति बेचैन हो रहा है अपने कर्मो से.और मै मुस्करा रहा हूँ इस जगत को देख कर.तो क्या कोई गलती है..? नही ना...अगर मै उसकी बातो को सुन कर मुस्कराऊंगा नही, तो, उसकी घबराहट तो और बढ़ जाएगी ना...!..घबराने का काम तो वह ब्यक्ति खुद कर ही रहा है.मुस्कराना वह नही कर पा रहा है.......

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जब समाधान प्राप्त करने की तीव्र इक्षा अपने ही भीतर जन्मने लगती है. तभी बाहर से किसी का अपने अन्दर प्रवेश हो पाता है..

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''परमात्मा '' चाहता है कि उसके द्वारा निर्मित उसकी संतान उसको भी कम से कर इस बार कलियुग के अंतिम समय में उसको ईमानदारी से यादकर पुकार ले..
..सचमुच परमात्मा बढ़ा ही दयालु है.अपनी संतानों को कभी भी नही भूलता और कदम -कदम पर उसका ख्याल रखते हुए उसको समझाता रहता है.पर अभागा मानव इनसान ,मनुष्य हो .तब तो समझे......
'
गहरे देखो ! तुम्हारी प्रकृति में तेजी से परिवर्तन होता ही जा रहा है..'

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जो जैसा और जो विषय अपने लिए खोजता है ,उसके जीवन की प्रकृति में बिधाता के बिधान अनुसार वैसा ही उसे प्राप्त होता है...

हे प्रिय.... जहाँ तक सत्य और असत्य की बात है....मै क्या जानू सत्य ...जिस सत्य के सामने झूठ का प्रतिछाया सदा ही उपस्थित रहा करता है ॥

मै उस कमजोर सत्य का साथी नही....
.... बल्कि 'मै' तो ''सत्य से मुक्त यथार्थ'' हूँ
जब सारे इतिहास ,सभ्यताए,शास्त्र और प्रमाण मिल कर भी ''सत्य और धर्म'' की स्थापना करने में असमर्थ हो जाते हैं .....

.तब मै यथार्थ रूप में सशरीर साकार उपस्थित होता हूँ....

और उस परमात्मा के कार्य का संपादन करता हूँ.....

प्रतिनिधि बन कर...

यथार्थ ...का कोई पूर्व में प्रमाण नही होता........
.
घटनाये अपनी योजना अनुसार घटित होती हैं ,और प्रमाण उपलब्ध होते जाने से बुद्धिजीवी मानवों के हाथो से वही घटनाएँ शास्त्र बनते जाते हैं..
.
अगर आपके शास्त्रों में कही प्रथम मानव शरीरधारी अघोर के बारे में वर्णन हो .तो हमे व समाज को भी जरुर सूचित कीजियेगा.

जहा तक अहंकार की बात है,तो ''''...................से..........लेकर............'हं'''....................तक के ..............आकार............की भी बात आती है......कौन है जो इसके पूर्व भी है,इसके मध्य भी,और इसके अतिरिक्त भी.................''मै''.............तो.........मात्र अपने बाबा और माँ का पुत्र हूँ.....''शिवपुत्र''''''..............
'' अघोर'''...........तो ''''अवस्था''' का प्रतिक है.........
..आपका शास्त्र ...........''अघोर'' के बारे में क्या कहता है..........???..........
बाबा के ......................''''अघोर'''.................'''रूप''.....के बारे में क्या कहता है.................?.........
.
थोडा पता लगा कर हमे भी जरुर बतलाइएगा .........
......
जहाँ तक संभव होगा.......
इस जगत में प्रदर्शन कर हम आपकी सारी जिज्ञाशाओं की पूर्णाहुति करेंगे................
आप ने ''...से ''अनार'''...पढ़ा है ना....!....
'''.
मुझे'' .....''अपने पुत्र'' को .........''बाबा'' ने ,''बिधाता'' ने ''''' से '''अघोर'' पढाया है..
अनार बाहर से भले ही दीखता है , कि 'एक' है.पर अन्दर बहुत से दाने होते हैं........टुकड़ो -टुकडो में बंटा होता है.....
.''
अघोर'''...........सिर्फ ''एक'' ही होता है........वह साकार स्थूल शरीर धारी मानव रूप में हो,तो, ''........पुत्र''..........या फिर निराकार शरीर धारी रूप में ...हो....''मेरे बाबा.......................'''''अघोर''''...................
...
कह सकते हैं आप ..........अपने समझ के लिए..................''बिधाता''...............
और यह सदा स्मरण रखिये...''अघोर''' कभी कायर नही होता............

..बल्कि ............'''.योद्धा'''''..........होता है...........
...
देखिये ना बाबा के रूप को............ कैसे लगते हैं.....भला......
.''''
समाधि''' और '''युद्ध''''''...................
.....
यही प्रिय है....

एक आम आदमी के पास इतना समय ही नही होता. की, किसी नए ब्यक्ति को नए तरह से मूल रूप में ''यथार्थ'' में सुन भी पाए..
स्वीकार करने की बात तो अलग है..

जब भी कोई मुझसे कुछ कहता है या कोई जब अपने आपको धर्म के चिन्तक और अधिकारी के रूप में बोलता है ,तब मै उसे इस जगत का एक जीवित प्रतिनिधि समझ कर सुनता हूँ और देखता हूँ की आज ब्यक्ति की मानसिक सोच तथा डिमांड क्या है.....?..कारण यह है की मै सारे जगत के सामूहिक मांग की आपूर्ति करने के लिए सृष्टी की रचना करता हूँ.मनुष्यों ने अपनी प्रार्थनाओ से इतना कोलाहल मचा रखा था .की हमारा समाधी टूट गया...बाबा का समाधि टूट गया..

.बाबा ने मुझे एक पुस्तक लिखने के लिए बोला.....मेरे पास पुस्तक का मूल शीर्षक तो था पर पुस्तक विषय से सम्बंधित सभी पात्रो को इस जगत में जीवित साकार मानव शरीरधारी रूप में इस जगत के सामने प्रस्तुत करना चाहता था.और मैंने इस जगत में परिवर्तन करना प्रारम्भ कर दिया...मैंने सतयुग से लेकर अभी कलयुग तक के अनेकानेक उन मुख्य पात्रो को खोज लिया,जिन लोगो के सहयोग से इस जगत में अधिकांशत: धर्म स्थापित हुए हैं.

मै अपनी बातो से ब्यक्ति की सोच की खोज करता हूँ तथा उसे ब्यक्त करने का मौका देता हूँ..

अभी मै इस मानव जगत के प्राकृतिक सिस्टम को बाबा के आदेश पर देख समझ रहा हूँ..धर्म और धार्मिको के सोच को और आम मनुष्यों के भीतर के भूख को जानना बहुत ही जरूरी है..
यह जगत क्या कभी अपने ही परमात्मा
को ,अपने ही भगवान को आज तक स्थूल शरीर रहते पहचान सका है.?
पूर्व से निर्मित धारणाये तथा जन्म से मिले स्थूल संस्कार ब्यक्ति को धार्मिक होने ही कहा देते हैं......?....
.जीवन में प्रायोगिकता और अपने चेतना के विस्तार से अलग क्या सिर्फ पुस्तकों पर छपे हुए ज्ञान से भूख भर सकती है......?
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हम उसी शुन्यता की पूर्ति करते हैं.तथा जगत की मांग के अनुसार हम इस जगत में परिवर्तन तथा प्रकृति में परिवर्तन करते हैं...इसके लिए हमे किसी शब्द और किसी के सहारे की जरूरत नही होती.....धर्म और अध्यात्म मात्र थ्योरी है जीवन की, मानव जीवन एक यथार्थ है.,जिसमे प्रायोगिकता तथा अपनी साधना के बिना मात्र शब्दों से अहंकार ही बढ़ता है.और हमे मिला हुआ यह अतुल्य मानव 'जीवन' सिर्फ संबंधो ,विषयो,वासनाओ,और बदले की भावना तथा थोडा और भोग लेने की आदिम अतृप्तटा लिए अपने को पुजवाने के लिए, एक ज्ञानी की भांति वस्त्रो तथा शब्दों और भाषा का भिन्न -भिन्न रंग ओढ़ अनायास ही मर जाता है..और मिलता भी क्या है....? एक समूचा अतृप्त ज्ञान भरा जीवन../..?...जो पुन: एक बार अपनी शेष वासना पूर्ति के लिए किसी न किसी एक योनी प्राप्त करने की लालसा लिए भटकता ही रहता है....

किसे किस बात का ज्ञान है.?..अगर ज्ञानी के हाथ से पूर्व के मानवों के छोड़े गये शब्द शास्त्र ज्ञान को ले लिया जाये तो फिर कौन सा ज्ञान है.....?....वह जगत की प्रकृति में प्रमाणित करे.......!

जब ऐसी परिस्थितिया उत्पन्न हो जाये,की ज्ञान ही रह जाये शब्दों में सिमट कर कर,यथार्थ का अभाव हो जाये ....लोगो का इन सबसे दम घुटने लगे.धार्मिको की भीड़ के बावजूद भी भगवान के भक्तो का दम घुटने लगे .तब मुझे आना पड़ता है.
मेरा एक काम यह भी है की परमात्मा के प्रत्येक शक्तियों का प्रमाण इस सारी धरती पर इस जगत में सामूहिक रूप से प्रदर्शित करू...

..हाँ ......''''मै''.....इस ''जगत के बिधाता 'शिव''का मूलाधार हूँ.

यह सदा याद रखिये ..! जब तक ब्यक्ति ज्ञानी है...तब तक जीवन के सरल रास्ते बंद हैं.
अपने ही हाथो से अपने मार्ग के हर रास्ते बंद कर ब्यक्ति कितना और कैसे अपनी जीवन की यात्रा की दुरी तय कर सकेगा...?...
ब्यक्ति कुछ चाहता भी है किसी से और स्वीकार भी नही करता.
चाहना अलग बात है और स्वीकार करना बहुत बड़ी बात है..
..
जब तक ब्यक्ति खुद न स्वीकार करे,तब तक जिसे आप भगवान या प्रकृति कहते हैं वह भी कुछ नही कर सकती.

हाँ ..!..अपने अतुलनीय ज्ञान से अपना जीवन नस्ट कर लेना निहायत ही सहज है.

यह सन्देश इस धरती पर उपस्थित हर मानव शरीरधारी तथा अशरीरी ब्यक्ति व् आत्मा के लिए है......
''
पुत्र...!...इस जगत में जीवन के रास्ते पर आगे बढ़ना बड़ा सरल है.पर जीवन के यात्रा पर एक बार चलने के बाद वापस मुड़ना संभव नही..वापस पीछे लौटना असंभव है....और जीवन यात्रा में बनियागीरी नही चलती है..और तू...तो जानता ही है ना पुत्र की प्रत्येक ब्यक्ति आत्म हत्या करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है....''''

कोई प्रत्युत्तर देने वाला तथा प्रतिरोध करने वाला साकार में सामने नही है..
और इससे मिलता भी क्या है ब्यक्ति को .? बस अपने मन की भड़ास निकाल कर कुछ पलों के लिए अपने आप से भाग सकता है.लेकिन अपना अब आगे का जीवन भी तो ब्यक्ति को खुद ही जीना होता है..ब्यक्ति अपने से भाग कर कहाँ जायेगा.? अगर अपना जीवन हमे खुद ही जीना है.अगर हमारा जीवन कोई अन्य नही जीने आने वाला है तो हमे अपने वर्तमान परिवेश में उत्पन्न परिस्थितियों की तरफ ध्यान पूर्वक एकाग्रता से होश पूर्वक देखना ही होगा...

एक ब्यक्ति बेचैन हो रहा है अपने कर्मो से.और मै मुस्करा रहा हूँ इस जगत को देख कर.

तो क्या कोई गलती है..? नही ना...अगर मै उसकी बातो को सुन कर मुस्कराऊंगा नही, तो, उसकी घबराहट तो और बढ़ जाएगी ना...!..घबराने का काम तो वह ब्यक्ति खुद कर ही रहा है.मुस्कराना वह नही कर पा रहा है.क्यों की उसने ऐसे कृत्य ही किये हैं की उसके भीतर ही घबराहट और बेचैनी जायज है..
मैंने उससे बोला......
''
बेटा तू बड़ा ही भाग्यशाली है.की तू घबरा रहा है और बेचैन भी हो रहा है....घबराने वाला ब्यक्ति कभी बेहोश नही हो सकता.
क्या कभी किसी को बेचैनी व् घबराहट में बेहोश होते देखा है.?
घबराहट और बेचैनी में तो बेहोशी आ ही नही सकती .बल्कि होश आती है.......बेहोशी के लिए तो शांति चाहिए.देखो ना बेहोशी में ब्यक्ति कितना शांत दीखता है.
यह घबराहट,यह बेचैनी तुम्हे होश में लाने के लिए है.

अब तुम्हारे जीवन में बहुत हो गया था कि बेचैन हो जाओ अपने किये हुए कृत्यों से.अब जो भी अपने जीवन में कर्म और कृत्य करोगे होश में करोगे. शांति से करोगे.यह बेचैनी तुमको होश पूर्ण बनाये रखेगी.इस घबराहट और बेचैनी से तुम अब आगे अपने ही जीवन में बेहोश होने कि संभावना से सुरक्षित रह सकते हो.'''
''
अब तुम बेहोशी व् बेचैनी में ऐसा कोई कृत्य नही करोगे .जिससे कि तुम्हारा अपना खुद का ही जीवन ,जिसे तुम आज जी रहे हो ,वह आत्महत्या के आत्मघाती मार्ग पर दृढ़ता से बढ़ जाये.. ... '''

मेरे पास प्रश्नों का तथा उससे सम्बंधित उत्तरों का एकदम पूरी तरह सौ फीसदी अभाव है...मेरे पास अगर कुछ है तो इस जगत को देने के लिए समाधान है.अब लेने वाले के ऊपर यह पूरी तरह निर्भर है की वह उत्तर ही खोज रहा है,जिसमे से एक प्रश्न और खड़ा कर सके.या अपने ही जीवन में कुछ अपने लिए अपने जन्मे प्रश्नों का समाधान भी खोज रहा है .
जो जैसा और जो विषय अपने लिए खोजता है ,उसके जीवन की प्रकृति में बिधाता के बिधान अनुसार वैसा ही उसे प्राप्त होता है...
सर्व प्रथम ब्यक्ति अपना निजी खोज देख ले ,समझ ले,तो उसके ही जीवन में समाधान के लिए ज्यादा अच्छा रहेगा..इससे बार -बार लगातार व् निरंतर उठने वाली बेचैनी और घबराहट से ब्यक्ति को मुक्ति मिलने की संभावना बनने लगी है .अपनी खोज को जान कर अपने खोज के प्रति इमानदार होना निहायत ही आवश्यक है.

समाधान थोडा शब्दों में कठिन और ब्यवहार में कठोर होता है.....
यह शब्दों के विलासिता भरे वर्तमान के धार्मिक व् आध्यात्मिकता से कोसो दूर जीवन के यथार्थ पर
स्थायी मजबूती से खड़ा होता है.
....
क्योकि हर हाल में अपना जीवन हमे ही जीना होता है.हमारा जीवन कोई और न जियेगा.कितना भी प्यार हो जाये. पर कोई भी ब्यक्ति किसी का भी ब्यक्तिगत या सामाजिक जीवन नही जी सकता .
बाते हैं ,बातों का क्या....
शब्दों से अपने आपको ब्यक्त कर देने से , ब्यक्ति की अपनी अन्दर छटपटा रही भडासे निकल जाती हैं.और होता ही क्या है...?

एकांत मृत्यु समान हिमालय में अपनी उपस्थिति में मस्त ''अघोर शिवपुत्र'' ....... .इस मानव जगत का भविष्य है..
जो वर्तमान में इन असुरो से भरे जगत में भी मुस्कराता हुआ अपना जीवन भी जी रहा है तथा समाधान भी कर रहा है,निःस्वार्थ....

जब कोई पूछता है कुछ .तो उसे सुनने के लिए भी पूरी तरह तैयार रहना चाहिए.अन्यथा प्रश्न पूछने का अधिकारी जैसे गुण वाला ब्यक्ति 'वह' नही है...जिसको अपने जीवन में समाधान की तलाश व् जरूरत है...

हम कौन होते हैं किसी को भी दंड देने वाले..?
सभी बिधाता के बिधान से बंधे हैं.असुर प्रवित्ति के लोगो को ही मानव सभ्यता व् इस जगत का शत्रु कहते हैं.दंड का अधिकारी वह खुद ही बन जाता है,जो असुर तत्व होता है.और अधिकारों की आपूर्ति बिधाता खुद ही करता है,प्रत्यक्ष होकर.युगों से धर्म ,शास्त्र ,इतिहास व् घटनाएँ खुद स्व-प्रमाणित हैं..
अब अन्य कोई मार्ग खोजने का समय नही होता.फिर भी बिधाता अंत तक मौके पर मौके देता है.पर असुर अपने अंत तक अपना स्वभाव नही छोड़ता.तथा मिले हुए अवसरों तथा मौके को भी अपने अतृप्त तथा विनाशकारी वृत्तियों को पूरा करने ही लगता है.और फिर यह प्रकृति उन्हें अपने में समेट कर उन असुरो के अस्तित्व को समूल मिटा देती है.

हम तो उनके ही सिखाये गये अहिंसा को शांति से लागु करवाते हैं.हम बस उनके भविष्य में मिलने वाले परिणाम के बारे में सोच कर आज वर्तमान में उनसे कार्य करवाने की प्रेरणा को जन्मते हैं.

हम तो अभी '''बाल अघोर''' हैं..

हमने तो माँ की मुक्ति के ख़ुशी में सभी को वचन दिया हुआ है,की,कलयुग के अंतिम काल खंड में सभी को एक अंतिम मौका और एक उपहार अवस्य ही देंगे.और देते भी हैं.ब्यक्ति या देश निभाता कैसे है , इस प्राप्त अवसर को..?..प्रकृति की ओर से बिधाता की चेतावनी को ...यह तो उसके निर्भर करता है..

अब सबसे बड़ा सवाल यह तुम्हारे ऊपर मै छोड़ता हूँ की तुम अपने अध्यात्म का क्या अर्थ निकालते हो..?.
....
अपने अध्यात्म का ठीक -ठीक अर्थ निकालते ही तुम बिधाता ''बाबा '' (परमात्मा -बिधाता )के शक्ति का अंदाजा लगा लोगे .अन्यथा शब्दों में घुट-घुट कर जीवन जीने वाली सभ्यता प्रलय कालखंड में यूँ ही बेमौत मर जाती है सदा के लिए.
मै सनातन सभ्यता का एक मात्र जीवित साकार मानव रूप में प्रतिनिधि हूँ.बोलो क्या बात है..?
यह घटनाएँ मेरा परिचय है..
और अभी तो मेरे परिचय की शुरुआत भर है.बिधाता के परिवर्तित बिधान के अनुसार यह जगत चलने के लिए तैयार हो रहा है.घटना क्रमों पर सचेत रहो..
अगर होश जैसा कुछ है तो होश में रहो..

यह तो सुचना मात्र है मेरा लेखन.बाकि सन्देश और दृश्य प्रकृति में लिख कर सामने परोसकर दिखला दी जाती रहेगी .सदा की तरह.हर युग की माफिक इस बार भी..बस इतना ध्यान रहे.

यह शब्दों का नृत्य नही बल्कि कलयुग का अंतिम काल खंड में प्रवेश है,इस जगत का...

सबकी तरह मै भी एक साधारण ब्यक्ति हूँ.हमे भी अपने स्वाभिमान पर जब चोट लगता है.मेरा तपस्वी होना,मेरा शिवपुत्र होना,मेरा प्रथम मानव शरीर धारी ''अघोर''' होना ,हमे भी अपने कर्तब्य और अपने भारतीय धर्म की यादे दिलाता है.तथा अपनी सुरक्षा करते हुए अपना जीवन प्रदर्शित करने का अधिकार देता है.

हम सन्यासी व् तपस्वी हैं.तथा अघोर शिवपुत्र हैं.हमारा देश अहिंसा का पुजारी है.मै एक साधारण मानव हूँ.अत: हमने अपने पुराने अहिंसा वादी परम्पराओं को आगे भी निरंतर पालन करते हुए इस देश के अस्तित्व व् पहचान को जीवित रखने के लिए बिधाता के बिधान में थोडा बहुत आवश्यकतानुसार कुछ फेर बदल कर दिया .और प्रकृति में कुछ विशेष परिवर्तन करने का सोचा .तथा मेरे इस सोच व् आदेश का पालन करने के लिए धरती पर चारो तरफ शक्तियां फ़ैल गयी.हमने इस देश की सुरक्षा के लिए इस धरती और धरती की प्रकृति को अपने आगोश में लेकर घेरना प्रारंभ कर दिया..
हम अध्यात्मिक हैं.हमारे पास आध्यात्मिक शक्तियां हैं.हमे हमारे हमारे पास जो भी शक्तियां हैं वो सभी अध्यात्मिक है तथा मूल प्रकृति की शक्तियां हैं.हमे हमारे जैसे को अपनी अध्यात्मिक शक्तियों से अपना परिचय देना है.तथा ब्यवस्था को शांति के साथ परिवर्तित करना पड़ता है.

यह एक ब्यक्ति की अध्यात्मिक शक्तियों का अहिंसात्मक ब्यक्तिकरण है.ताकि उन हिंसक तथा ब्याभिचारी देशो में भी दीर्घ कालीन शांति ब्याप्त हो सके.याद रहे हम प्रथम मानव शरीर धारी अघोर होने के साथ एक अहिंसक देश के देशभक्त नागरिक भी हैं.सभी देशवासियों के संग मेरी भी जिम्मेदारी बनती है कि अपने देश की रक्षा के लिए जितना और जो संभव हो.वो करे...
एक जिम्मेदार भारतीय देशभक्त नागरिक की तरह अपने तपस्वी व् रास्ट्रधर्म का पालन करने के लिए अपनी धरती पर उपस्थित इस जगत के इन देशो तथा ब्यक्तियो ने मुझे अपनी अध्यात्मिक शक्तियों का परिचय ब्यक्त करने के लिए प्रेरणा दी है.
हम आभारी हैं.अपने असुर व् शत्रु देशो के जिन्होंने मुझे अपना 'अघोर रूप' को प्रदर्शित करने का अवसर दिया है.

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