Tuesday, November 8, 2011

!!! सावधान...!!!...सावधान...!!!...सावधान...!!!.. मानव सभ्यता के इतिहास में यह प्रथम अवसर है.


Dt .08 .nov .2011

सतयुग में भगवान शिव की प्रथम अर्धनारी शक्ति (सती) के अपने पिता 'राजा दक्ष' के महायज्ञ में अपनी स्थूलशरीर की आहुति के पश्चात अब इस कलियुग में कामरूप (आसाम)से अपनी सभी दसों रूपों के साथ मुक्त हो चुकी माँ कामाख्या (सती-शक्ति) अपने 'परम पुरुष "भगवान शिव'' के संग एक साथ धरती पर भारत भूमि में अपने अस्थायी आसन -स्थान (दिल्ली वाले कोण-Aangle) से दक्षिण भारत की तरफ कुछ दिनों के लिए जा रही हैं.

यह यात्रा इस जगत के लिए अविश्मरणीय,अलौकिक,अतुलनीय और प्रथम दर्शनीय अवसर है.

जब ''बाबा और माँ '' अपने प्रथम मानव शरीरधारी अघोरपुत्र (शिवपुत्र) और अपनी 'अघोर पोती' के साथ इस धरती पर एक साथ चलेंगे.

मानव सभ्यता के इतिहास में यह प्रथम अवसर है.

धरती पर स्थिल 'जाग्रत त्रिकोण' जो ''केदारनाथ > काशी और दिल्ली' से जुड़कर अभी स्वतंत्र रूप से 'जीवित स्थित' है.तथा प्रकृति संतुलन का मूल केंद्र और कारण है .इनके चलने से धरती के अन्दर बिधाता 'शिव' द्वारा निर्मित 'अधोमुखी त्रिकोण' (अमेरिका-चीन और पाकिस्तान से जुडा उल्टा त्रिकोण )के Electromagnetic Field पर प्रचंड उर्जा का जन्म होने से प्रकृति पर दबाव बनेगा.

परमशक्तियों का अपने 'परमपुरुष' के साथ यह मूवमेंट ''विकृत प्रकृति" से 'मूलप्रकृति' में परिवर्तन के लिए और मानव जगत के रक्षा व् कल्याण के लिए निहायत जरूरी हो गया है.

यह 'विकृत प्रकृति' मानव सभ्यता में निरंतर हो रहे निम्नगति के जीवन ,सोच,आचरण,चारित्रिक पतन ,असामयिक जीव हत्या (भ्रूण हत्या),आसुरिक पूजापद्धति का व्यक्तिगत जीवन में कुटिलता व् चरमभोग से जन्मे तरंगो से निर्मित वातावरण का परिणाम है.

और इस 'विकृत प्रकृति' को निर्मित करने में आज इस वर्तमान कालखंड में अत्यंत विकसित मानव मस्तिष्क अत्याधुनिक बिज्ञान का बहुत बड़ा सक्रिय योगदान व् सहयोग है.

यह सभी मिलकर आज इस पवित्र धरती पर एक महाअसुर 'ग्लोबल वार्मिंग' का निर्माण कर चुके हैं.

'ग्लोबल वार्मिंग'....... के नाम से बहुप्रचारित यह सर्वभौमिक महान असुरदैत्य !

मानवों की अपनी व्यक्तिगत उपलब्धि है.जो इस धरती पर जीवन को निरंतर निगलता जा रहा है.

'भविष्यवक्ताओं व् बिज्ञान के पितामह 'नासा' द्वारा यह सुचना व् सन्देश पहले से ही संचार माध्यमो से सारी धरती पर प्रचारित किया जा रहा है की 2011 के बाद 2012 में बहुत कुछ भयानक होने वाला है.संभवत: 2012 के आखिरी दिनों में यह सृष्टी नस्ट होने की स्थिति में पहुँच रही है.
ग्लोबल वार्मिंग और ऐसे ही अन्य सभी स्थितियों को नजर में रखते हुए इस सृष्टी के 'बिधाता परमात्मा परम पुरुष 'शिव श्रीकेदारनाथ जी' ने अपने 'जाग्रत त्रिकोण' के एक सिरे दिल्ली से कुछ दिन के लिए दक्षिण दिशा में जाने का मन बनाया है.

ऐसी स्थिति में मुझे इस बात का गहरा अध्ययन करना है की 'जाग्रत त्रिकोण' के गतिमान होने से धरती के चुम्बकीय क्षेत्र व् प्रकृति परिस्थितियों पर कैसा असर पड़ता है.

जिससे जब यह धरती अपने अस्तित्व के आज तक के सबसे संकटकाल 2012 में से गुजरे तब 'अघोर शिवपुत्र' इस धरती और जीवन को बचाने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर इस जगत की रक्षा कर सके.

धरती के अन्दर और धरती पर स्थित इन दोनों त्रिकोणों के घर्षण से उत्पन्न स्थितियों को अपने संतुलन से नियंत्रण करने का अभ्यास 'अघोर शिवपुत्र' इस यात्रा में करेंगे.ताकि भविष्य में सृष्टीरक्षा के लिए समय पर काम आ सके.इसमे जीवन की आहुति है.वो देना ही पड़ेगा.

इस यात्रा के परिणाम में...

जब परमात्मा 'शिव ' अपनी समाधि (अपने आसन ) से उठकर अपने मूलशक्ति (कामाख्या व् सभी दसरूपों ) के साथ धरती पर चलेंगे.तो,प्रकृति ! जो मूल माँ शक्ति (कामाख्या )की शक्तियों का विस्तार रूप है और दसो दिशाओं में इस जगत में व्याप्त होकर व्यक्त है.वो भी साथ-साथ चलेंगी.

यहाँ यह भूलने वाली बात नही है कि पिछले कई युगों से सेकण्डखंड में बंधी हुयी शिव की अर्धनारी शक्ति माँ कामख्या अब अपनी पूर्वबंधन अवस्था से पूर्णतया मुक्त व् स्वतंत्र है.

प्रकृति में मूल पाँच तत्व सदा ही व्याप्त हैं.

ये तत्व पृथ्वी(धरती), जल,अग्नि,वायु और आकाश सहित कुल संख्या में पाँच हैं.प्रकृति में इन मूल तत्वों का कभी भी अभाव नही होता.बल्कि परिस्थितिजन्य अवस्था में ये आपस में टकराहट से अपनी अवस्था में परिवर्तन करते हैं.

मूल तत्वों के इस अवस्था परिवर्तन व् आपसी सम्भोग से धरती पर भूकंपीय घटनाये(Earth quike ) घटित होने लगती हैं.

जलतत्व का प्रकोप अपने चरम की तरफ बढ़ते हुये बरसात ,बाढ़(flood ) और बर्फ़बारी के रूप में प्रदर्शित करने लगते हैं.

अचानक अग्नि,ज्वालामुखी भड़क उठता है.हवाए प्रचंड रूप धारण कर भयानक परिणाम देने लगती है.

आकाश वज्रपात करने लगता है.

मार्ग में आने वाली वो सारी बाधाएँ, जो कुछ भी मानव निर्मित निर्माण होता है.सबका बिध्वंस करते हुए अपना पुनरनिर्माण का कार्य निरंतर जारी रखती हैं.

अगर विकृत प्रकृति अपने मूल प्रकृति में परिवर्तन के निर्माण से नही गुजती है.तब प्रकृति में विक्षिप्तता उत्पन्न होने लगती है.

प्रकृति की विक्षिप्तता को महामारी,अज्ञात बीमारी,भयानक मारकाट,रक्तरंजित ,रक्तपात भरा महायुद्ध, अविश्वास,अश्रद्धा,चरम स्वार्थ,आपसी गृहयुद्ध,अराजकता,भ्रटाचार,अकाल,अतिवृस्टी,असामान्य मौसम और असुरत्व प्रधानता वाली घटना कर्मो आदि से चारो तरफ हाहाकार और त्राहि-त्राहि मचने लगता है. बचने का कोई मार्ग जीवन में नही दिखलाई पड़ता है.

धर्म का प्रचार तो खूब जमकर होता है.लेकिन धर्मो के आपसी,पारस्परिक व् आंतरिक कलह से तथा आचरण में धर्म का अभाव होने से जीवन असामान्य होकर आत्मघाती हो जाया करता है.यह आत्मघात कभी व्यक्तिगत,तो कभी सामूहिक होने के साथ ही सामाजिक भी हो जाया करता है.

अहन्कारित व् अब्यावहारिक सत्ताओं का सत्ता पलट और ब्यवस्था परिवर्तन के लिए यह सूक्ष्म जगत की मूलप्राकृतिक शक्तियां खुलेआम अपना प्रदर्शन करती रहती हैं।यह विराट परिवर्तन सारे जगत में प्रमाणित होने लगता है.
परमात्मा-बिधाता शिव केदारनाथ जी के अपनी सभी मूल शक्तियों के साथ इस धरती पर चलने से जब जाग्रत त्रिकोण में कोणीय परिवर्तन होगा तब मुझे इसके संतुलन और नियंत्रण का परीक्षण करना होगा
.

जब बाबा चलते हैं,तब उनकी शक्तिया (माताएं) नृत्य करती हैं
.ये माताएं साकार में तो शक्ति रूप हैं पर धरती की प्रकृति में तत्व रूप से अपनी भावनाए व्यक्त करती हैं.इसलिए ऐसे अवस्था में हमे प्रकृति की तरफ से दृश्य घटनाक्रम रूप में साकार निर्मित होकर सुचना व सन्देश मिलने लगते हैं. यह मनोहारी व् परिवर्तनकारी नृत्य बहुप्रतीक्षित रोमांचकारी प्रतीक्षा का परिणाम होता है.

आज का बिज्ञान अत्याधुनिक है.वो प्रकृति द्वारा धरती पर भेजी जा रही इन संकेतो को मानवों के सामने सुचना रूप में प्रसारित करता है.हमे इस संकेतो और संदेशो पर अपनी नजर रखनी ही होगी.

दक्षिण दिशा की यात्रा निश्चित होते ही .धरती के अनेक हिस्सों से प्राकृतिक जगत से सूचनाएं आने लगी हैं.

भारत के उत्तरपश्चिम सींमा (कश्मीर -पाकिस्तान और अफगानिस्तान सीमा)पर अभी कल ही शाम को 6 की तीव्रता वाला भूकंप आया है.

और आज सुबह ताइवान में 6 .9 की तीव्रता का भूकंप आया है.वैसे भी भारत की हिमालय क्षेत्र की सीमाओं पर पूर्व से उत्तर पश्चिम तक लेकर छोटे-छोटे भूकंप निरंतर आने लगे हैं.इसमे कुछ तो दैवीय रहस्य होना ही चाहिए.?

अगर बिज्ञान फेल हो चूका है.तो कोई जरूरी नही की एक 'मानव ' भी फेल कर जाये.

इसलिए हमे अपनी शक्ति सामर्थ्य का प्रदर्शन करना ही होगा.

चुकी हम प्रथम मानव शरीर धारी अघोर हैं इसलिए हमारी इस धरती के रक्षा के प्रति जिम्मेदारी ज्यादा बनती है.

सभी अपने -अपने ज्ञान के सामर्थ्य का प्रदर्शन कर ही रहे हैं.चुकी हम जाग्रत त्रिकोण के एक सक्रिय कोण होने से सबकी तरह बेहोश नही हो सकते.

बिधाता--परमात्मा प्रथम पुरुष शिव के अपने परिवार के साथ दक्षिण दिशा की इस यात्रा में भगवान बद्रीनाथ जी,भगवान जगन्नाथ जी.माँ गायत्री,माँ दुर्गा ,श्री हनुमान जी,श्री गणेश जी आदि अनेक मुक्त मूल शक्तियां सामिल हैं.

इस जगत में यह प्रथम बार घटित होने से उत्पन्न परिणाम इस धरती पर उपस्थित सभी स्थूल शरीरधारी व् अशरीरी जीवो व् देवी- देवताओं द्वारा दर्शनीय है.

क्या आज अपने -अपने वैभव,सम्पन्नता और धर्म का अहंकार लिए अत्याधुनिक 'ज्ञानी' हो चूका 'मानव' इस 'यात्रा का अनुसन्धान' और अध्ययन कर सकता है.?

लेकिन 'सत्य को जानने वाला अत्याधुनिक बैज्ञानिक मानव क्या युगों पूर्व,आदिमकाल से चले आ रहे इस वर्तमान के 'यथार्थ' को स्वीकार कर पायेगा..?

''अघोर शिवपुत्र''

( इस बारे में जानने के लिए इस लिंक पर चलें... www.shivputraekmission.org

pl..e-mai... shivputra_ekmission@yahoo.co.in

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