Saturday, July 23, 2011

यथार्थ ...का कोई पूर्व में प्रमाण नही होता...


एक 'गृहस्थ'.. 'सांसारिक ',.. 'योगी जी' ....की अद्वितीय विलक्षण रहस्यमयी चित्र विचित्र आध्यात्मिक जिज्ञाषा...और उनकी जिज्ञाशाओं का ''प्रथम मानव शरीर धारी ''अघोर'' शिवपुत्र'''....... द्वारा ''समाधान'' .......



परमादरणीय अघोर शिव पुत्र जी !
सादर....सप्रेम हरिस्मरण....... आपके कथनानुसार .....यह बात जान कर किसी भी हिन्दु धर्म प्रेमी व्यक्ति के मन में अत्यन्त प्रसन्नता होगी... कि भगवान शिव के अंश स्वरुप, सती के गर्भ में ही उस समय अजन्मा रह गये....समस्त साधनाओं का सामर्थ्य लेकर, आप का अवतरण प्रथम बार मानव रुप में हिन्दु धर्म का उद्धार करने के लिये हुआ है..... अतएव गणनायक, करिवरवदन, गणेश जी एवं तारकोद्धारक, षटवदन, कार्तिकेय के भी अग्रज के रुप में सभी हिन्दु धर्मानुयायियों के लिये आप प्रणम्य हैं
आप के समक्ष एक विनम्र जिज्ञासा रखने की धृष्टता कर रहा हुँ.....कृपया आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे...
अहंकार, झूठ, असत्य, दम्भ, का आश्रय व आधार लेकर, सत्य को प्रकट रुप से नहीं व्यक्त कर पाने की भीरुता, कायरता, व प्रबल रुप से लोकेषणा के शिकार हुए व्यक्तित्व के द्वारा क्या किसी भी सत्कर्म की प्रतिष्ठा सम्भव है....? ???
क्यों कि शास्त्रावलोकन करने पर तपस्या, व ज्ञान की न्यूनता, कमी किन्हीं राक्षस, दैत्य, असुरों में भी दिखायी नहीं पड़ती है.......

शिवपुत्र द्वारा जिज्ञाषा ओं का समाधान....

''''अघोर''' कभी कायर नही होता.......बल्कि ............'''.योद्धा'''''..........होता है...........

....''
हे प्रिय..''योगी जी..'''....प्यार...
जैसा की आपने अपनी एक विनम्र जिज्ञाषा रखा...हमे बहुत ही अच्छा व जिज्ञाषाओं में अति उत्तम लगा ....जैसा की आपने लिखा ..इसके बारे में यही कहा जा सकता है की कभी नहीं.....कभी नही.........!......
.....
परन्तु जहा तक ''अघोर शिवपुत्र'' के संदर्श में अगर बात है तो संभवत: आपने ''अघोर शिवपुत्र'' से पहले प्रस्तुत किये गये उन वाक्यों पर अपने ज्ञान व् शब्द के रहस्यमय शास्त्रीय गहराई को लगभग अनदेखा कर दिया..अथवा वहा तक आपकी दृष्टी नही पहुंची.जहा पर यह भी कहा गया है की....
...'''प्रथम मानव शरीर धारी अघोर''''.....
जब बात प्रथम मानव शरीर धारी अघोर की आती है।
तो क्या आप यह भी बतलाने की कृपा करेंगे.कि। ...
..''प्रथम'' ... ''मानव'' .....का ''अर्थ'' आप क्या निकालते हैं ?जो ''अघोर'' हो....!
आप थोडा यह भी स्पस्ट करते तो आपकी जिज्ञाषा का समाधान करने में सरलता हो जाती. की ''माँ सती' के समय कालीन और उसके पूर्व के किस शास्त्र का आपने अवलोकन करके यह जिज्ञाषा अपने भीतर जन्मी...
...
प्रथम मानव शरीर धारी के पूर्व कौन था '''अघोर'''......मै उसी का पुत्र हूँ......''अघोर......
शास्त्र क्या अपने इस समूचे काल खंड की हर एक घटनाओ को अपने में वर्णित करते हैं....?... जब मेरी माँ सती के गर्भ में माँ के साथ ही मेरी मृत्यु हो गयी थी और मै ''अजन्मा'' ही रह गया था,,तब आप जैसे ज्ञानी और शास्त्र कहा थे...?क्या उस काल खंड की घटना का प्रत्यक्ष भी कुछ लिखा है.....?...
और हे प्रिय.... जहाँ तक सत्य और असत्य की बात है....मै क्या जानू सत्य ...जिस सत्य के सामने झूठ का प्रतिछाया सदा ही उपस्थित रहा करता है ॥मै उस कमजोर सत्य का साथी नही....

.... बल्कि 'मै' तो ''सत्य से मुक्त यथार्थ'' हूँ॥
जब सारे इतिहास ,सभ्यताए,शास्त्र और प्रमाण मिल कर भी ''सत्य और धर्म'' की स्थापना करने में असमर्थ हो जाते हैं ......तब मै यथार्थ रूप में सशरीर साकार उपस्थित होता हूँ....और उस परमात्मा के कार्य का संपादन करता हूँ.....प्रतिनिधि बन कर.... आप ने जिन--जिन मेरे ह्रदय प्रिय रूपों को नाम लेकर उदहारण देने का प्रयास किया ,उनमे से अनेको ने मानव शरीर धारण नही किया....जगत के कार्य के निमित्त जैसा बाबा की इक्षा होती है.हम सभी उनके आदेशानुसार बिना किसी तर्क के पालन करते हैं.शास्त्रों में और ज्ञानियों में उससे सम्बंधित प्रमाण नही खोजते ...
राम के समय में राम को बनवाश, अनेको असुरो का बध ,रावण का बध ,पूर्व में ही किस धर्म या शास्त्र में लिखा हुआ था...? महाभारत के पूर्व किस शास्त्र में महाभारत के युद्ध के विषय में वर्णित था.और कृष्ण का अर्जुन के पलायन की इक्षा और तर्क के प्रति उत्तर में किस शास्त्र को पढ़ कर भगवन श्री कृष्ण ने अध्ययन कर प्रमाण संगृहीत करके ''गीता'' का महान उपदेश देकर, एक नपुंसक बन रहे मानव को 'योद्धा' रूप में परिवर्तित किया था.....? यह तो कुछ उदहारण मात्र है...अनेको उदाहरण तो आपके शास्त्रों में ही भरे हुए हैं...
॥ ....तर्क,बहस ,कल्पित सत्य ,सिमित, क्षुद्र व् दुसरो के ज्ञान के अहंकार तथा स्व की अवस्था हीनता के आधार पर जिज्ञाषा
उत्पन्न कर ,अपने अन्दर की कटुता और कुंठा को तो बिद्वता पूर्ण शाब्दिक सभी रूप में ब्यक्त किया जा सकता है..कौन सी बड़ी बात है...? यहाँ तो भीड़ भरी पड़ी है.
जहा तक प्रमाण की बात है. तो, आप जैसे बिद्वान को इतना ब्यग्र होना शोभा नही देता...मानवीय स्वभाव है की अचानक ऐसी विलक्षण व् अद्वितीय घटनाए तुरंत नही पचती....
अगर कोई प्रथम मानव शरीर धारी होने का दावा करता है और अपने आपको बाबा तथा माँ सती ( कामख्या_ दसो शक्ति महा शक्ति रूपों ) के पुत्र होने की बाते करता है .तो स्वाभिक रूप से शास्त्रों पर आधारित ज्ञान तुरंत विश्वास नही कर पाता.क्योकि उसके पास तो ब्यतीत हो चुके घटनाओ का आंशिक वर्णन मात्र ही है.ना की वर्तमान और भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का कोई ज्ञान......और....बोध....और ..ना ही जानने का सामर्थ्य ही..
अभी मै भी आप लोगो की तरह एक मानव शरीर धारी मात्र ही हूँ...
वर्तमान में सारे संयोजन किये जा रहे हैं .प्राकृतिक और परमात्मिक जगत में अपनी ज्ञान चक्षु सदा खुले रखे जाये.तो जगत में होने वाली घटनाओ का प्रमाण भी मिल जायेगा.तथा आपको शास्त्र लिखने का मौक भी ...
। ''महाभारत'' और ''श्री गीता'' लिखने में तो महर्षि 'वेद ब्यास जी' ने भी जल्दीबाजी नही की थी.......

यथार्थ ...का कोई पूर्व में प्रमाण नही होता........
.घटनाये अपनी योजना अनुसार घटित होती हैं ,और प्रमाण उपलब्ध होते जाने से बुद्धिजीवी मानवों के हाथो से वही घटनाएँ शास्त्र बनते जाते हैं..
.अगर आपके शास्त्रों में कही प्रथम मानव शरीर धारी अघोर के बारे में वर्णन हो .तो हमे व समाज को भी जरुर सूचित कीजियेगा.....आपकी महती अनुकम्पा हम जैसे बच्चो पर होगी......
जब बाबा को राजा दक्ष ने इमानदार स्वीकार नही किया और अपने षडयन्त्रो से अपना ही सर्वनाश कर बैठे....जब मामा कंस ने ही कृष्ण को स्वीकार नही किया और अपना अंत कर बैठा..
....तो..............आज...........अभी तो हमने '''कलयुग की इक्षा अनुसार कलयुग के अंत'' की शुरुआत मात्र की है.आगे तो बहुत कुछ शेष है.....
जहा तक अहंकार की बात है,तो ''अ''...................से..........लेकर............'हं'''....................तक के ..............आकार............की भी बात आती है......कौन है जो इसके पूर्व भी है,इसके मध्य भी,और इसके अतिरिक्त भी.................''मै''.............तो.........मात्र अपने बाबा और माँ का पुत्र हूँ.....''शिवपुत्र''''''..............
॥ '' अघोर'''....
.......तो ''''अवस्था''' का प्रतिक है.........
..आपका शास्त्र ...........''अघोर'' के बारे में क्या कहता है..........???..........
बाबा के ......................''''अघोर'''.................'''रूप''.....के बारे में क्या कहता है.................?.........
.थोडा पता लगा कर हमे भी जरुर बतलाइएगा .........
......जहाँ तक संभव होगा.......
॥ इस जगत में प्रदर्शन कर हम आपकी सारी जिज्ञाशाओं की पूर्णाहुति करेंगे................
आप ने 'अ'...से ''अनार'''...पढ़ा है ना....!....
'''.मुझे'' .....''अपने पुत्र'' को .........''बाबा'' ने ,''बिधाता'' ने '''अ'' से '''अघोर'' पढाया है..
अनार बाहर से भले ही दीखता है , कि 'एक' है.पर अन्दर बहुत से दाने होते हैं........टुकड़ो -टुकडो में बंटा होता है.....
.''अघोर'''...........सिर्फ ''एक'' ही होता है........वह साकार स्थूल शरीर धारी मानव रूप में हो,तो, ''........पुत्र''..........या फिर निराकार शरीर धारी रूप में ...हो....''मेरे बाबा.......................'''''अघोर''''...................
...कह सकते हैं आप ..........अपने समझ के लिए..................''बिधाता''...............
और यह सदा स्मरण रखिये...''अघोर''' कभी कायर नही होता..............बल्कि ............'''.योद्धा'''''..........होता है...........
...देखिये ना बाबा के रूप को............ कैसे लगते हैं.....भला......
.''''समाधि''' और '''युद्ध''''''...................
.....यही प्रिय है....

..........किसी स्वयंभू ज्ञानी के द्वारा दी गयी ''स्थूल उपाधि'' नही....
हमे किसी के सम्मान का इंतजार नही .....बाबा के आदेश का इंतजार रहता है.....
आपकी जिज्ञाशाओं के लिए एक बार मेरा पुन: प्यार.....
वैसे मेरा मार्ग दर्शन करते रहिएगा .....आप सब लोगो के सामने बहुत जल्द ही सब कुछ परोस दिया जायेगा.......धैर्य रखिये...
जल्द बाजी से ''असमय'' जन्मता है.......
..........आगे भी जरुर पत्र लिखते रहियेगा.इससे मुझे जगत के बारे में तथा जगत की आवश्यकताओं व् सोच के बारे में समझने में सहायता होती है.आपके सहयोग व् जिज्ञाषा के लिए बारम्बार धन्यवाद्...विनम्रता से...हे मेरे प्रिय....

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Friday, July 22, 2011

मै '''शिवपुत्र '' बोल रहा हूँ..


Vinod Tiwari
Shivputra Chaitanya ji pranaam...आप जिन लोगों के बारेमें कह रहे हैं वो मेरे लिए सम्मानीय हैं , लेकिन सनातन धर्मं को उच्चता की तरफ ले जाने में जो भी बाधक हो वो मेरी दृष्टि में सम्मान के योग्य नहीं हो सकता ... आप जो करने का प्रयत्न कर रहे हैं , उसकी शुरुआत मैंने काफी पहले कर दी थी ॥लेकिन यहाँ सब बातों के धनी हैं , कर्म कोई नहीं करना चाहते ॥ अभी कुछ महीनो पहले मैंने इसी ग्रुप में एक धार्मिक सोशल नेट्वर्किंग वेबसाइट जिसमें वो सभी सुबिधायें हो जो हमें फेसबुक पर मिलती हैं.. तो सबने प्रशंसा की ...और उससे जुड़ने का वादा किया ...लेकिन जब मैंने मेहनत करके और अपना पैसा खर्चा करके ऐसी साईट बनायीं और लांच की ..तो थोड़े से लोग जुड़े ..ल बाकि यहाँ बैठ कर मजे से गप्पे मार रहे हैं...यह सब विदेशी चीजों के इतने अभ्यस्त हो गए हैं की इन्हें भारतीय और हिन्दू धर्मं से सम्बंधित चीजें अपनाने में शर्म आती है ... वह चाहे संचालक हैं या ग्रुप से जुदा आम आदमी .... सब यहाँ नाम के साथ महान लगवाने के लिए आते हैं.. एक दिन जब युट्यूब ने जैसे विष्णु पुराण को प्रतिबंधित कर दिया है , उसी तरह फेसबुक भी हिन्दुओं के ग्रुप पर रोक लगाएगा तब इनकी आँखें खुलेंगी... अभी यहाँ हिन्दुत्त्व की बड़ी बड़ी बातें करने पर कोई चार्ज तो देना नहीं पड़ता है ... इसलिए करते हैं ...अगर कुछ लगने लगे तो यह भी बंद ..खैर कोई बात नहीं .. मैं आपकी भावनाओं को समझता हूँ और आपका साथ दूंगा ... कहिये कहाँ से शुरुआत की जाए.. ...
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प्रिय विनोद तिवारी जी.प्यार..(....)..कैसे हैं आप...?...आप कभी यह मत सोचिये की आप जिस धर्म के प्रति इतने इमानदार हैं,वह इतना कमजोर है, की, उसका कोई अहित कर सकता है.आपका उत्तर आया बहुत अच्छा लगा..जितना आपने इस जगत को इस समाज के अंदर रह कर जो कुछ भी अनुभूति किया.उसका मै आदर करता हूँ..मैंने आपके इस पोस्ट में आपके अन्दर का आक्रोश देखा है...कभी भी जब भी आपके तरह एक जीवन का दम घुटता है,तो वो दर्द मुझ तक पहुँचती है..
आज हमारा ही नही बल्कि इस मानव सभ्यता में ही प्रत्येक धर्म को धार्मिको ने अपने कर्मो तथा चरित्र से घृणा का पात्र बना दिया है...हिदू धर्म में चुकी हर ब्यक्ति गुरु है,ज्ञानी है.क्योकि सभी को यह मालूम है की भारत जगत का गुरु है. और अपना काम निकालने के लिए इतने नए -नए धार्मिक व् अध्यात्मिक पुस्तके हैं.. जो ब्यक्ति भगवान का भक्त है वो श्रद्धा में डूबा हुआ उन लोगो की बातो को अक्षरश: पालन करने के लिए अपने स्वभाव से मजबूर है.आज अधिकांशत: ब्यक्ति खुद अपने को गुरु बन कर साबित करने के लिए बेचैन है.यही इस ''धर्म का आधारभूत दुर्भाग्य''' भी है.
हिमालय की गुफाओं से बाहर निकाल इस धरती पर मानवों के बिच भेजते समय ''मेरे पिता ''श्री बाबा केदारनाथ "शिव"" ने जिन कामो को सम्पादित करने के लिए मुझे बोला .उससे सम्बंधित मैंने कार्य पिछले कुछ वर्सो से प्रारंभ कर दिए हैं..मुझे अपना काम प्राकृतिक व् सूक्ष्म जगत { पर्मत्मिक जगत} में करने के लिए किसी स्थूल शरीर धारी की जरूरत नही होती.आपने खुद महसूस किया होगा की एक स्थूल शरीर धारी मानव की अपनी एक सीमा होती है .तथा पहले से ही उपलब्ध ठेकेदार अपना जाल ऐसा बिछाए रहते हैं, अपने संपन्न साधनों से, की, एक आम आदमी के पास इतना समय ही नही होता. की, किसी नए ब्यक्ति को नए तरह से मूल रूप में ''यथार्थ'' में सुन भी पाए..
स्वीकार करने की बात तो अलग है..
मै आपको ऐसा इसलिए कह रहा हूँ.की मै जानता हूँ की आज कितना भी हिन्दू धर्म पतित हो जाये.तब भी कोई धर्माधिकारी इस भारत भूमि पर अपनी कमाई संपत्ति और गुरु तथा ज्ञान पद छोड़ कर राम तथा कृष्ण के नाम को सरकारी स्तर पर बार-बार अपमान करने पर भी आन्दोलन नही करेगा.आपने राम सेतु के समय तथा बिना शादी के स्त्री पुरुष का एक साथ रहने पर कानून बनाने के समय देखा होगा..माननीय सुप्रीम अदालत द्वारा कहा गया की ''श्री कृष्ण'' और ''राधा'' का ''आपसी शारीरिक सम्बन्ध'' था. इसलिए आज ऐसे कानूनों को मान्यता देने में कोई हर्ज नही है...सभी राधा के भक्त और श्री कृष्ण के धर्म भक्त तब भी मस्त थे आज भी मस्त हैं.. क्योकि भक्तो के सहयोग से धंधा (धर्म प्रचार का...?...) निर्बाध गति से चल रहा है..
जब मै हिमालय से निचे आता हूँ तो बाबा के कार्य से ही....मै हिमालय की गुफा में सब कुछ भूल गया था...निचे मनुष्यों की भीड़ में मनुष्यों को खोजने में बहुत कस्ट और अपमान से गुजरना पड़ा.अनेको बार भगवान के भक्तो ने मुझे बिष खिलाया .मै बार -बार मर कर भी आज जिन्दा हूँ.मैंने इस सभ्यता में हर उस ब्यक्ति के हरेक शब्दों को अपने लिए एक शिक्षा के रूप में लिया.
जब भी कोई मुझसे कुछ कहता है या कोई जब अपने आपको धर्म के चिन्तक और अधिकारी के रूप में बोलता है ,तब मै उसे इस जगत का एक जीवित प्रतिनिधि समझ कर सुनता हूँ और देखता हूँ की आज ब्यक्ति की मानसिक सोच तथा डिमांड क्या है.....?..कारण यह है की मै सारे जगत के सामूहिक मांग की आपूर्ति करने के लिए सृष्टी की रचना करता हूँ.मनुष्यों ने अपनी प्रार्थनाओ से इतना कोलाहल मचा रखा था .की हमारा समाधी टूट गया...बाबा का समाधि टूट गया..
मैंने धार्मिको के और साधारण कहे जाने वाले ब्यक्तियो से लेकर अनेको ज्ञानियों तथा भगवान के रिश्तेदारों व् अपने को खास समझने वालो को देखा है तथा सहा व सुना है...पिछले दो वर्ष के लगभग हो गया होगा ...बाबा ने मुझे एक पुस्तक लिखने के लिए बोला.....मेरे पास पुस्तक का मूल शीर्षक तो था पर पुस्तक विषय से सम्बंधित सभी पात्रो को इस जगत में जीवित साकार मानव शरीर धारी रूप में इस जगत के सामने प्रस्तुत करना चाहता था.और मैंने इस जगत में परिवर्तन करना प्रारम्भ कर दिया...मैंने सतयुग से लेकर अभी कलयुग तक के अनेकानेक उन मुख्य पात्रो को खोज लिया,जिन लोगो के सहयोग से इस जगत में अधिकांशत: धर्म स्थापित हुए हैं.उन सभी मुख्य नायक ,खलनायक ,सहनायक तथा सम्बंधित पात्रो को मैंने इस बार सशरीर खोज लिया है. और लगभग जो भी मेरे समीप आये.मै उन सभी को अनेक मौके दिए अपने को धार्मिक बना लेने के .पर वो अपने ''द्वितीय खंड'' में ही आज भी रह कर अपनी आसुरिक स्वभाव में ही जीना चाहते हैं.मै उनके सेकण्ड खंड और सेकण्ड शरीर के बारे में जानता हूँ.वो भी मुझे पहचानते हैं.ऐसा मैंने उन्हें दिखलाया.उनकी आँखों से ही ध्यान में..
.ऐसे ही बहुत सारे है जिन्होंने इस ''महान सनातन धर्म'' को,जिसे आज शेष बचे हुए रूप में ''हिन्दू धर्म'' के नाम से लोग जानते हैं.उसकी पतन शीलता से तथा अधार्मिक तत्वों के मजबूत पकड़ से दुखी व् पीड़ित है..
मै अपनी बातो से ब्यक्ति की सोच की खोज करता हूँ तथा उसे ब्यक्त करने का मौका देता हूँ..
आप लोगो के सहयोग के रूप में बस इतना ही मै चाहता हूँ की आप जैसे कर्म निष्ठ तथा धर्म के प्रति इमानदार चिंतन व् सुधार वाले लोग अब परमात्मा से क्या कहते हैं ..?..तथा कैसा चाहते हैं....?..क्या चाहते हैं...?...ओर क्यों चाहते हैं...?...यही जानने के लिए मै अपने द्वारा शब्दों को ब्यक्त कर उन सोचो को अपनी ओर खींचता हूँ.जब कोई मुझे या मुझसे कुछ भी कहता है तो वह मेरे कार्य में सक्रीय सहयोग करता है..आप समाज में हैं तथा सक्रिय हैं.आप लोगो से मेरा विनम्र निवेदन है की जो कुछ भी आप लोग परमात्मा से धर्म के सम्बन्ध में, प्रकृति तथा इस मानव जगत के लिए चाहते हैं .कृपया बिना संकोच के समाज और धर्म के प्रति अपनी इक्षा को ब्यक्त करते रहे...मुझे किसी का भौतिक सहयोग नही चाहिए ...जब जरूरत होगा तब बतला दूंगा..बस मै यह जानना चाहता हूँ की अगर भगवान इस जगत के भाग्य में कुछ नया लिखे तो क्या लिखे.....?..अब कहा समय ही है किसी को समझाने का और सुधरने का...?....आपही बतलाइए न जीवन होता ही कितना है ....अगला पल सदा मौत का हो सकता है यही संभावना सबसे ज्यादा सम्भावित होती है.
वैसे एक शुभ सुचना यह है इस जगत के लिए ,की, ''''''संसार की मांग और धरती की रक्षा के लिए ''बिधाता'' ने अपने 'बिधान' में कुछ संशोधन'' कर दिया है..और अब यह जगत तथा यह प्रकृति पिछले तिन चार वर्षो उसी संशोधित संबिधान के अनुरूप से चलने भी लगी है....
इस सम्मानित ग्रुप व् आप सभी धार्मिक व् अध्यात्मिक लोगो के माध्यम से मेरी बातो के सन्दर्भ में जितना ज्यादा हो सके.मुझे इस जगत के भाग्य के परिवर्तन में ''धर्म'' को अवस्थित तथा मूल रूप में स्थापित करने के लिए जो भी हो ,अपनी सुझावों को अवस्य दे..तथा अपने संपर्को के लोगो से भी सुझाव संगृहीत करके मुझ तक पहुचने की कृपा करे ...यह निहायत ही जरूरी है.
यह परमात्मा के वर्तमान कार्यक्रम में आप सभी का अपना सहयोग होगा..
भूले नही इस मानव जीवन का समय बहुत कीमती है..मै आप सभी का ऋणी रहूँगा...परमात्मा के शक्ति का परिचय देने का मेरा वादा है इस जगत से..
यह जरुर याद रखिये '''''''''''''मै'''''''''''............................''''''''''''शिवपुत्र'''''''''''''''...................हू .......
मै '''शिवपुत्र '' बोल रहा हूँ..
E
..MAIL..shivputra_ekmission@yahoo.co.in.

Thursday, July 21, 2011

प्रथम मानव शरीर धारी 'अघोर'' शिवपुत्र ..के बारे ....''विपरीत परिस्थितियों में ही एक ''साधक'' का ''जन्म'' होता है.''...

''श्री श्री अघोर शिवपुत्र श्री..
प्रथम मानव शरीर धारी '''अघोर''......शिवपुत्र..

श्री प्रसाद.. ....Kripaya thora prakash dalen ki aap kis prakar ke aghor hain ? Aghor se apka kyaa tatparya hai ? ...... Samanya janta Aghor se Kashi ke shav-bhakshakon ko samajhti hai. ................ Isliye hamlog apki vichardhara ke baare me jaan_ne ko utsuk hain. .... Pranam//


[ hindi...श्री प्रसाद जी ..............कृपया थोडा प्रकाश डाले कि आप किस प्रकार के अघोर हैं....?....अघोर से आपका क्या तात्पर्य है...?...सामान्य जनता अघोर से काशी के शव -भक्षण को समझता है.....इसीलिए हम लोग आपकी विचारधारा के बारे में जानने को उत्सुक हैं......प्रणाम....]


Shivputra Chaitanya

खुस रहे .'''प्रथम मानव शरीरधारी ''अघोर'''..अभी यह इस जगत के सामने नही आया है.अभी हम जगत को तैयार कर रहे हैं ...काशी का अघोर...एक पंथ है ....हम किसी संप्रदाय और पंथ के आधीन नही जन्मे हैं.हम बिधाता.''शिव ...और माँ सती (कामख्या..दसो माताओं ) के पुत्र हैं ......जो माँ सती ( कामख्या) के गर्भ में 'अजन्मे ' ही रह गये थे ...इस बार मानव शरीर धारण कंरने पर ''अघोर ''...अवस्था को प्राप्त हुए हैं .

.यह बाबा का एक अत्यंत प्रचंड क्रियाशील अवस्था है....'''अघोर'''

प्रथम बार कोई मानव शरीर धारी ब्यक्ति ''अघोर'' पद को प्राप्त किया है.ऐसे अवस्था में
आकर ही कोई चेतना प्राकृतिक शक्तियों का सञ्चालन और नियंत्रण कर सकती है

अगर आपको बहुत कुछ जानने कि इक्षा है तो हमे किसी ''अघोरी'' शब्द से ना जोडीये .....


Shivputra Chaitanya जहा तक भक्षण की बात है तो..''मै''.....धर्म के कलंको और स्वयम्भू ज्ञानियों के आसुरिक 'अहंकार' का भक्षण करता हूँ..असुरो का समूल नाश करना मेरा स्वभाव है..धर्म के भीतर विकृति की सफाई कर उसे यथार्थ और मूल रूप में स्थापना करना मेरे काम का एक हिस्सा है.इसीलिए मेरे बात को पचाना बड़ा ही कठिन होता है..क्योकि इस जगत में पहले से ही हर ब्यक्ति के पास अपना एक ज्ञान होता है.भले ही वह अपने उस ज्ञान का केंद्र ही न जानता हो.ज्यादा जानने के लिए...आप इस ब्लॉग पर एक नजर जरुर डाले....कुछ सन्देश मिलेगा....http://shivputraekmission.​blogspot.com.....आपकी जिज्ञाषा के लिए आपको धन्यवाद् ...और मेरा प्यार .अगर कुछ इक्षा ,जिज्ञाषा उठती हो तो जरुर लिखे .


अभी मै इस मानव जगत के प्राकृतिक सिस्टम को बाबा के आदेश पर देख समझ रहा हूँ..

धर्म और धार्मिको के सोच को और आम मनुष्यों के भीतर के भूख को जानना बहुत ही जरूरी है..

.किसी भी तरह के भोजन से कोई धर्म से सम्बंधित हो जाता तो इस जगत में कोई धर्म ही नही रहता..क्योकि सभी धर्मो में शाक और मांस का भक्षण होता है...

यह जगत क्या कभी अपने ही परमात्मा को ,अपने ही भगवान को आज तक स्थूल शरीर रहते पहचान सका है.?पूर्व से निर्मित धारणाये तथा जन्म से मिले स्थूल संस्कार ब्यक्ति को धार्मिक होने ही कहा देते हैं......?.....जीवन में प्रायोगिकता और अपने चेतना के विस्तार से अलग क्या सिर्फ पुस्तकों पर छपे हुए ज्ञान से भूख भर सकती है......?

हम उसी शुन्यता की पूर्ति करते हैं.तथा जगत की मांग के अनुसार हम इस जगत में परिवर्तन तथा प्रकृति में परिवर्तन करते हैं...
इसके लिए हमे किसी शब्द और किसी के सहारे की जरूरत नही होती.....धर्म और अध्यात्म मात्र थ्योरी है जीवन की, मानव जीवन एक यथार्थ है.,जिसमे प्रायोगिकता तथा अपनी साधना के बिना मात्र शब्दों से अहंकार ही बढ़ता है.और हमे मिला हुआ यह अतुल्य मानव 'जीवन' सिर्फ संबंधो ,विषयो,वासनाओ,और बदले की भावना तथा थोडा और भोग लेने की आदिम अतृप्तटा लिए अपने को पुजवाने के लिए, एक ज्ञानी की भांति वस्त्रो तथा शब्दों और भाषा का भिन्न -भिन्न रंग ओढ़ अनायास ही मर जाता है..और मिलता भी क्या है....? एक समूचा अतृप्त ज्ञान भरा जीवन../..?...जो पुन: एक बार अपनी शेष वासना पूर्ति के लिए किसी न किसी एक योनी प्राप्त करने की लालसा लिए भटकता ही रहता है....

प्रिय प्रसाद जी प्यार...

पहली बार इस जगत में किसी ने कोई मुझसे सार्थक बात किया है....अन्यथा तो लोग इतने ज्ञानी हैं की श्री कृष्ण के समय में भी जीवन भर उन्हें गालिया ही देते रहते थे की वह एक ग्वाला है...अब तो वही लोग जिसे ग्वाला कहते थे ,उन्हें भगवान कहते नही थकते .और मात्र उनके नाम पर ही गुरु जैसे पद पर बैठ कर ज्ञान का प्रचार करते हैं.किसे किस बात का ज्ञान है.?..अगर ज्ञानी के हाथ से पूर्व के मानवों के छोड़े गये शब्द शास्त्र ज्ञान को ले लिया जाये तो फिर कौन सा ज्ञान है.....?....वह जगत की प्रकृति में प्रमाणित करे.......!

जब ऐसी परिस्थितिया उत्पन्न हो जाये,की ज्ञान ही रह जाये शब्दों में सिमट कर कर,यथार्थ का अभाव हो जाये ....लोगो का इन सबसे दम घुटने लगे.धार्मिको की भीड़ के बावजूद भी भगवान के भक्तो का दम घुटने लगे .तब मुझे आना पड़ता है.
मेरा एक काम यह भी है की परमात्मा के प्रत्येक शक्तियों का प्रमाण इस सारी धरती पर इस जगत में सामूहिक रूप से प्रदर्शित करू...

.मुझे खुद को पुजवाने का कोई शौक नही है....जीवन के सारे भौतिक ऐश्वर्या मैंने अपने आज तक के अपने जीवन में देखा है.मै आम आदमी के 'तड़प' को जानता हूँ ....
.''''.मै '''''''कोई बाबा......या शब्द, नाम,वेश धारी ब्यापारी और उपदेशक नही.इन सबका जगत के सञ्चालन में और प्रकृति के परिवर्तन में क्या काम...?...

.कलयुग के अंतिम काल खंड में जब जगत अपने सद्कर्मो से इन धार्मिको की भीड़ के संग अपने अंत की तरफ ( सामूहिक आत्महत्या की तरफ) बढ़ चूका है.तब क्या ये मात्र ज्ञान भरे शब्द मानव जीवन की रक्षा करेंगे ..?....
कौन ज्ञानी जानता है, कि,उसका ही भगवान आज क्या कर रहा है....?..

.क्या ऐसा कोई इस जगत में है आज .जिससे बिना सामने मिले ही और सामने मिल कर ही ,आपको आपके भगवान के अस्तित्व से मुलाकात करवा सके या आपको अनुभूति करा सके.आपके अस्तित्व का ही....?

अगर ब्यक्ति अपने परमात्मा को अपने सामने पा ले तो क्या करेगा....? ईमानदारी से बतलाये ......सिर्फ मांगना और सिर्फ अपने लिए भौतिक ऐश्वर्यों कि मांग के अतिरिक क्या इमानदार भूख है ....?
आज कल भगवान क्या कर रहा है.....?....
''''''.मै'''''''''शिवपुत्र'''''...आज इस आपके माध्यम से और जगत उन सभी लोगो के आध्यात्मिक व् धार्मिक ग्रुप के मानव शरीर धारियों से पूछ रहा हूँ......?....

..हाँ ......''''मै''.....इस ''जगत के बिधाता 'शिव''का मूलाधार हूँ.

और प्रमाणित कर रहा हूँ.सभी पिछले कुछ वर्षो से जगत की प्रकृति में तथा अपनी ब्यक्तिगत प्रकृति में अचानक हो रहे परिवर्तन से..
इस जगत के भाग्य के लिए इस प्रश्न का उत्तर देने का मुझ पर कृपा करे......प्लीज कमेन्ट करे..जीवन आपका है और जीना आपको ही है इसी जगत में॥

कमेन्ट.E mail .shivputra_ekmission@yahoo.co.in.

Sunday, July 3, 2011

"Suggest right path to utilise life............"यह घबराहट,यह बेचैनी तुम्हे होश में लाने के लिए है.

'''श्री श्री अघोर शिवपुत्र श्री''''''

Dt... o4 july..2011...समय...10.00 am से 11.26 am..

'''प्रिय .'''.........''' प्यार....'''
पिछले वर्ष आपके घर में शिवपुत्र के बिताये हुए दो रात और दो दिन में आपको क्या मिला ..?..
.और आपने उनके द्वारा ब्यक्त शब्दों में से अपने लिए कितना तथा क्या रखा..?.
यह सदा याद रखिये ..! जब तक ब्यक्ति ज्ञानी है...तब तक जीवन के सरल रास्ते बंद हैं.
अपने ही हाथो से अपने मार्ग के हर रास्ते बंद कर ब्यक्ति कितना और कैसे अपनी जीवन की यात्रा की दुरी तय कर सकेगा...?...
ब्यक्ति कुछ चाहता भी है किसी से और स्वीकार भी नही करता.
चाहना अलग बात है और स्वीकार करना बहुत बड़ी बात है..
..जब तक ब्यक्ति खुद न स्वीकार करे,तब तक जिसे आप भगवान या प्रकृति कहते हैं वह भी कुछ नही कर सकती.हाँ ..!..अपने अतुलनीय ज्ञान से अपना जीवन नस्ट कर लेना निहायत ही सहज है.
मुझे हिमालय की गुफाओं से निकाल कर मेरे पिता श्री भगवान शिव केदारनाथ जी ने निचे की इस धरती पर मानव समाज के बिच भेजते समय ''बाबा'' ने बहुत सारी बातो को बताने के बाद जगत के लिए एक बहुत ही बहुमूल्य सन्देश दिया था....और यह सन्देश इस धरती पर उपस्थित हर मानव शरीरधारी तथा अशरीरी ब्यक्ति व् आत्मा के लिए है......
''पुत्र...!...इस जगत में जीवन के रास्ते पर आगे बढ़ना बड़ा सरल है.पर जीवन के यात्रा पर एक बार चलने के बाद वापस मुड़ना संभव नही..वापस पीछे लौटना असंभव है....और जीवन यात्रा में बनियागीरी नही चलती है..और तू...तो जानता ही है ना पुत्र की प्रत्येक ब्यक्ति आत्म हत्या करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है....''''
मैंने निचे की इस मानव सभ्यता के जगत में ,इसे पूरी तरह प्रति पल लोगो के जीवन में घटित होते हुए पाया,और देखा...कैसे लोग अपनी ही जीवन की यात्रा में अपने लिए ही समस्याए जन्म देते रहते हैं .तथा एक दिन जब अपने सारे सामर्थ्य से टूट जाते हैं,निराश हो कर थक जाते हैं.अपनी सारी तिकड़मो के बावजूद भी अपना मन चाहा नही पा पाते .तो सारा दोष परमात्मा या भगवान पर लगाते नही थकते हैं.
भगवान पर लान्क्षन लगाना ,परमात्मा पर दोष का आरोपण करना सरल भी तो बहुत है.

कोई प्रत्युत्तर देने वाला तथा प्रतिरोध करने वाला साकार में सामने नही है..
और इससे मिलता भी क्या है ब्यक्ति को .? बस अपने मन की भड़ास निकाल कर कुछ पलों के लिए अपने आप से भाग सकता है.लेकिन अपना अब आगे का जीवन भी तो ब्यक्ति को खुद ही जीना होता है..ब्यक्ति अपने से भाग कर कहाँ जायेगा.? अगर अपना जीवन हमे खुद ही जीना है.अगर हमारा जीवन कोई अन्य नही जीने आने वाला है तो हमे अपने वर्तमान परिवेश में उत्पन्न परिस्थितियों की तरफ ध्यान पूर्वक एकाग्रता से होश पूर्वक देखना होगा...
कल कोलकाता से एक ब्यक्ति मेरे पास मुझसे मिलने आया था......
बहुत अध्यात्मिक स्वभाव का ब्यक्ति था.सारा काम अपने अनुसार ठीक ही करता था.और उसके अनुसार आज भी करता ही है ,सारे कार्य अच्छे से.
पिछले कुछ महीनो से मैंने बात नही किया था फोन आदि पर उससे .....कारण की ..! सभी की तरह मै भी '''अ'पने'' कार्य में ब्यस्त रहता हूँ. उसने मुझसे पूछा.....''गुरू जी ...मेरे अन्दर बेचैनी बहुत आ गयी है अचानक ....'''
मुझे ऐसे प्रश्न और ऐसे प्रश्न पूछने वाले ब्यक्तियो पर कभी -कभी मुस्कराहट आने लगती है..अब आप ही बतलाये की मै मुस्कराने के अतिरिक्त और कर भी क्या सकता हूँ.एक ब्यक्ति बेचैन हो रहा है अपने कर्मो से.और मै मुस्करा रहा हूँ इस जगत को देख कर.तो क्या कोई गलती है..? नही ना...अगर मै उसकी बातो को सुन कर मुस्कराऊंगा नही, तो, उसकी घबराहट तो और बढ़ जाएगी ना...!..घबराने का काम तो वह ब्यक्ति खुद कर ही रहा है.मुस्कराना वह नही कर पा रहा है.क्यों की उसने ऐसे कृत्य ही किये हैं की उसके भीतर ही घबराहट और बेचैनी जायज है..
मैंने उससे बोला......
''बेटा तू बड़ा ही भाग्यशाली है.की तू घबरा रहा है और बेचैन भी हो रहा है....घबराने वाला ब्यक्ति कभी बेहोश नही हो सकता.
क्या कभी किसी को बेचैनी व् घबराहट में बेहोश होते देखा है.?
घबराहट और बेचैनी में तो बेहोशी आ ही नही सकती .बल्कि होश आती है.......बेहोशी के लिए तो शांति चाहिए.देखो ना बेहोशी में ब्यक्ति कितना शांत
दीखता है.
यह घबराहट,यह बेचैनी तुम्हे होश में लाने के लिए है.

अब तुम्हारे जीवन में बहुत हो गया था कि बेचैन हो जाओ अपने किये हुए कृत्यों से.अब जो भी अपने जीवन में कर्म और कृत्य करोगे होश में करोगे. शांति से करोगे.यह बेचैनी तुमको होश पूर्ण बनाये रखेगी.इस घबराहट और बेचैनी से तुम अब आगे
अपने ही जीवन में बेहोश होने कि संभावना से सुरक्षित रह सकते हो.'''
''अब तुम बेहोशी व् बेचैनी में ऐसा कोई कृत्य नही करोगे .जिससे कि तुम्हारा अपना खुद का ही जीवन ,जिसे तुम आज जी रहे हो ,वह आत्महत्या के आत्मघाती मार्ग पर दृढ़ता से बढ़ जाये..
... '''
आप तो जानते ही हैं की मेरे पास प्रश्नों का तथा उससे सम्बंधित उत्तरों का एकदम पूरी तरह सौ फीसदी अभाव है...मेरे पास अगर कुछ है तो इस जगत को देने के लिए समाधान है.अब लेने वाले के ऊपर यह पूरी तरह निर्भर है की वह उत्तर ही खोज रहा है,जिसमे से एक प्रश्न और खड़ा कर सके.या अपने ही जीवन में कुछ अपने लिए अपने जन्मे प्रश्नों का समाधान भी खोज रहा है .
जो जैसा और जो विषय अपने लिए खोजता है ,उसके जीवन की प्रकृति में बिधाता के बिधान अनुसार वैसा ही उसे प्राप्त होता है...
सर्व प्रथम ब्यक्ति अपना निजी खोज देख ले ,समझ ले,तो उसके ही जीवन में समाधान के लिए ज्यादा अच्छा रहेगा..इससे बार -बार लगातार व् निरंतर उठने वाली बेचैनी और घबराहट से ब्यक्ति को मुक्ति मिलने की संभावना बनने लगी है .
अपनी खोज को जान कर अपने खोज के प्रति इमानदार होना निहायत ही आवश्यक है.
"Suggest right path to utilise life."
अगर शिवपुत्र के सानिध्य में कई दिन रह कर भी ब्यक्ति के अन्दर अभी ऐसे प्रश्न बाकि हैं, तो, ऐसे ब्यक्ति को शिवपुत्र द्वारा रचित होने वाले पुस्तक का एकाग्रता से इतजार करना चाहिए..तब तक संभव है की अपने कृत्यों से अन्य नये-नये घबराहट और बेचैनी से भी सौभाग्यशाली सामना हो जाये और अपने जीवन में प्रश्न -उत्तर से अलग कुछ समाधान पाने की इमानदार संभावना जन्म लेने लगे..
जब समाधान प्राप्त करने की तीव्र इक्षा अपने ही भीतर जन्मने लगती है. तभी बाहर से किसी का अपने अन्दर प्रवेश हो पाता है.
प्रश्न ..!..आपके बाहरी ब्यक्तिगत,पारिवारिक व् सामाजिक कारण से जन्मने के कारण बाहरी होते हैं.उत्तर भी जो आपको मिलता है ,या आप चाहते हैं .वह भी मात्र शाब्दिक होकर बाहरी ही होते हैं.जो आपके प्रश्न के चारो तरफ घूमते हैं......
अघोर शिवपुत्र द्वारा ब्यक्त शब्द मात्र शाब्दिक शब्द रचना मात्र ही ना हो कर. इस जीवन व् जगत का ''समाधानिक तत्व'' के रूप में होता है.जो प्रश्न कर्ता की वर्तमान परिस्थितियों,पारिवारिक परिवेश तथा परिस्थिति जन्य अवस्था में उठाये गये कदम और उन कदमो को सामने रख कर देखा गया है.. तथा ब्यक्ति के अपने सेकण्ड खंड के अपने सेकण्ड बॉडी की लिप्तता को देख कर किया गया समाधान है..
समाधान थोडा शब्दों में कठिन और ब्यवहार में कठोर होता है.....
यह शब्दों के विलासिता भरे वर्तमान के धार्मिक व् आध्यात्मिकता से कोसो दूर जीवन के यथार्थ पर स्थायी मजबूती से खड़ा होता है.
....क्योकि हर हाल में अपना जीवन हमे ही जीना होता है.हमारा जीवन कोई और न जियेगा.कितना भी प्यार हो जाये. पर कोई भी ब्यक्ति किसी का भी ब्यक्तिगत या सामाजिक जीवन नही जी सकता .
बाते हैं ,बातों का क्या....
शब्दों से अपने आपको ब्यक्त कर देने से , ब्यक्ति की अपनी अन्दर छटपटा रही भडासे निकल जाती हैं.और होता ही क्या है...?
मैंने देखा और पाया की हर ब्यक्ति इस जगत का समझदार,ज्ञानी और सर्वथा उचित,नेक व् सद्कर्मो को करने वाला है...
कोई गलती करने वाला मुझे तो आज तक मिला ही नही.उन दो दिनों में आपने भी देखा .
शिवपुत्र के साथ आपने अपना जीवन जिया है.एक ब्यक्ति के साथ गुजारे गये वो दिन याद रखिये....
। जिसने इस संसार में रह कर भी वर्षो तक किसी मानव से मिला ही ना हो... देखा ही ना हो, मनुष्यों को.अपने कपड़ो के बारे में भी जिसे ज्ञान ना हो.भूख भी जिसकी दासी बन ठहर जाये सेवा में अपने जिस स्वामी के .
एकांत मृत्यु समान हिमालय में अपनी उपस्थिति में मस्त ''अघोर शिवपुत्र'' ....... .इस मानव जगत का भविष्य है..
जो वर्तमान में इन असुरो से भरे जगत में भी मुस्कराता हुआ अपना जीवन भी जी रहा है तथा समाधान भी कर रहा है,निःस्वार्थ.....!...
और मेरे मुह से निकले हुए उन शब्दों को सुन कर कोलकाता से आया हुआ वह बेचैन ब्यक्ति. घबराहटो से भरा हुआ वह बुद्धिजीवी ,समझदार और ज्ञानी ब्यक्ति की आँखों से निकल रहे अटूट आशुओं की श्रृंखला वाले ब्यक्ति को मै मुस्कराता हुआ अब भी देख रहा था..
। यह था उस ब्यक्ति का सुनना मेरे द्वारा ब्यक्त शब्दों को ....
जब कोई पूछता है कुछ .तो उसे सुनने के लिए भी पूरी तरह तैयार रहना चाहिए.अन्यथा प्रश्न पूछने का अधिकारी जैसे गुण वाला ब्यक्ति
'वह' नही है...जिसको अपने जीवन में समाधान की तलाश व् जरूरत है...
''क्या अपने घर बुला कर उन दो दिन और दो रातो में कभी ईमानदारी से अपने प्रश्नों के समाधान रूप में कभी सुना..''
कभी आपने यह सोचा की अपने को '''प्रथम मानव शरीर धारी '''अघोर'' होने का दावा करने वाला ब्यक्ति आपके घर आपके निवेदन पर क्यों ठहरा.....?....
जो अपने को बिधाता परमात्मा भगवान शिव {केदारनाथ जी}का पुत्र और माँ कामख्या {दस महा शक्तियों } का एकलौता पुत्र होकर इस जगत की मूल शक्ति ,मूल प्रकृति को मुक्त करा लेने की दावा करने वाला एक साधारण सा दिखने वाला ब्यक्ति { मानव} आपके यहाँ ठहर कर क्या दिया.....?...आपने उससे क्या लिया......?...आप शिवपुत्र से क्या पाए.....?...
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''बस आज इतना ही........'''




श्री केदारनाथ मंदिर.....हिमालय..

..e.mail..
..............shivputra_ekmission@yahoo.co.in...................
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English translated by.. S.R...
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Suggest right path to utilize life…….

.Being upset, nervous all the time is to make one conscious.

Date 4th July Time 10 am to 11.26am

Dear... ''…….'' pyar..,

Last year Shivputra had spent 2 days and 2 nights at your residence. What did you gain out of it? And what did you understand by his words? Do remember that being an extremely knowledgeable human being, all the simple ways is closed.

People in their own hands close all the ways of their life. How far can they go in their life and complete their journey of life? People want something in their life but do not accept it. Wanting is something else but acceptance is bigger than that. Unless and until human beings accept, even God and Nature cannot help them. By gaining more and more knowledge people destroy their lives very easily.

When my father The Almighty God Lord Shiva, brought me out of the cave to come and stay here in the world within the society, my father told me a lot of things. He also sent a message for the world as well. This message is for all human bodies and souls in this Universe. “Son! Going ahead in life is easy. But while going ahead in life one cannot look back while making the journey. While going through the journey of life one cannot make business deals all the time. And you must be aware son that all human beings are extremely suicide pro.

Down below in this human society, the several moments happening in their life, I have found that people in their journey create their own problems only…..they break down due to their problems, they take a back seat in their life, then they tirelessly blame it to God only. It is very easy and simple to blame it on God.

No one is answerable or protest against this. I do not know what a human being gains by doing this. But brings out his or her grievance like this and flee for the time being from his or her own self. But one has to go ahead and lead his own life if only one has to lead his or her own life. But if one flees from his or her own self, where will that human being land if I have to lead my own life. If there is no one to lead my own life then I have to concentrate and watch my current situation and the situations which might crop up.

Yesterday, someone came to meet me from Kolkata. The person was spiritual. According to the capabilities, he used to perform his duties well. Till now also he performs well. Last few months I was not in touch with this person over phone etc. because even I was performing my duties in my own world. He told me “Guruji, Suddenly, I have become extremely nervous inside me. “ I smiled to those to these questions and to those who asks such questions. Now you tell me, do I have anything to say rather than smiling to this? One person has become nervous due to his work. And I am smiling by watching this world. Is it a mistake? If I do not smile by listening to his question then his nervousness will increase, isn’t it? Being nervous is his job. He cannot smile because he has not done anything to smile but yes, he is eligible for his being nervous and upset. I told him “You are lucky because you are nervous and upset at the same time. Being nervous and upset does not make a person faint. Have you seen anyone fainting being nervous and upset? Being upset and nervous, once cannot faint but one can come back to normalcy. This nervousness and being upset is to make you conscious.

It is for your own deeds only that you had become nervous and upset. From now on whatever work and activities you do will do consciously. Will do peacefully. This upset and nervousness will always make you conscious. Now you can be enough protective about your day to day life which has make you conscious against your being upset and nervous. “

“Right now onwards you will not perform in being nervous or being upset so that your life becomes full of mistakes and you become suicide pro.”

See, you know that, to me, there is dearth of questions and its answers. What I have with me is solutions to offer to this Universe. Now it depends on the receiver whether he is looking for the answer from where he can make out a question. Or he has questions of being himself?

Whatever a human being is looking for him or her own self, the Almighty according to his orders provides him with that. Firstly let human beings find out what they are searching, and understand it, so that it will be easy for solution providing. Due to this if there is any upset or nervousness happening, and then it will be minimized. To find out one’s search should be honest about it.

“Suggest right path to utilize life”

If someone is in constant touch with Shivputra and then also these questions arise, then such people should wait to read the book written by Shivputra. Till then such human beings might find out more questions on being more upset and nervous and get some solutions honestly. Whenever there is a desire to find solutions then only one allows external entrance to his own self.

Question – Your reason of birth is personal and social as well. The answers which you get are what you want. They are full of words and are external only or it surrounds your question only. The words of Aghor Shivputra are words which speak about itself. They are solutions only. The solutions are provided seeing the current situation, family conditions, under which circumstances the steps have been taken to arise this questions and what steps are taken to seek solutions. It is also seen whether the second khand has been blending with the second body or not and then the solution is provided. A solution in word is difficult and in behavior is tough. Currently spirituality or religion stands on the luxury of words and is far from being real. Because at any cost we have to live our own lives. Our lives won’t be lived by others however we are in love with others. Any person cannot live others personal or social life. These are words only. What are words for!! Through words one can breathe out its frustrations clearly or else what happens!! I have seen that people in this world always think and does the right things only. I have never seen people doing any faults actually. Those two days you must have seen also. You have lived your life with Shivputra. Do remember those days that you have spent with Shivputra. The person though living in this society only have not met and seen people. Not even conscious about the clothing of himself. Even hunger seems to wait and become a slave. Eternally living on the peak of the death i.e. Himalaya, is “Aghor Shivputra” who is the solution of this Universe. In this Universe, full of Demons around, the “solution” is living with a smiling face and providing solutions selflessly.

Listening to my words, the person from Kolkata, who is in the state of being nervous and upset, is an intellectual, understanding, knowledgeable and disciplined person whose tears were rolling down from his eyes can be seen and I am still smiling. Till now I said what I heard about him. If someone says something then one needs to be ready all the time. Otherwise then he does not have the goodness of questioning as well. Whoever is in search of his life should have this. “In those two days and two nights did you ever honestly listen to the solutions provided to your questions”? Did you ever think that why “Aghor Shivputra”, claiming to be the first human body, had stayed with you in your house to your request? This person who is the only son of the Almighty Lord Shiva and Ma Kamakhaya who has freed Ma along with Dus Mahavidya, the main Nature, the main strength, who looks like a normal human being had stayed at your house…What did he give you? What did you receive from him? What did you get from Shivputra?

That’s it till today……..

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