Saturday, June 4, 2011

''बाबा'' के हिमालय में नही बल्कि यहाँ अपने शक्ति ''माँ'' और ''अघोर'' शिवपुत्र'' के साथ होने से आसुरिक सत्ताये टूट कर बिखर जाएँगी.


''अघोर शिवपुत्र का सन्देश.'''
तारीख..04 .जून 2011 ....1.30 pm..
जबसे हम लोगो के संग बाबा केदारनाथ से यहाँ आये हैं.कभी मेरे तथा कभी दीदी के आसन पर लेट कर आराम करते हैं.एकदम थक कर जैसे चूर हो गया ब्यक्ति शिथिल होकर आराम करता है..वैसे ही...
माँ अपने विराट ब्रह्मांडीय रूप में वस्त्र मुक्त उग्र भाव में बाबा के ह्रदय से निकलती है.माँ के दोनों नेत्रों से अग्नि की धधकती हुयी ज्वालाए निकलती रहती हैं..अभी इस समय माँ ही धरती पर चल फिर रही है.मै और बाबा अभी थोडा यहाँ ठहर कर आराम कर रहे हैं..माँ ही मूल प्रकृति हैं.तथा मुक्त दसो रूप दिशाए हैं उनकी.और मुक्त हुयी शक्तिया ही प्रकृति के मूल स्वरुप हैं.जो तरंग रूप में सर्व ब्यापी सत्ता है इस धरती की प्रकृति रूप में..
माँ के चलने पर दसो दिशाएं चलती हैं.देखो.! सारी धरती पर प्रत्येक देश और दिशाओं पर माँ अपने शक्तिशाली चहल कदमी की पगध्वनि से अनेकानेक स्थानों पर बिध्वंस कारी आंधी,तूफान,चक्रवात तथा असमय अचानक उत्पन्न व्रिस्टी से जगत में अपने जीवंत होने तथा जीवित होकर सक्रियता के साथ अपनी उपस्थिति का प्रमाण प्रकृति में जागतिक रूप से सहज ही ब्यक्त कर रही है...
इस जगत में विकृत प्रकृति जब मूल प्रकृति में परिवर्तित होगी.तब यह मामूली सा परिवर्तन होगा ही..
विकृत सेकण्ड खंड द्वारा उत्पन्न बाधाएँ,रुकावट तथा अहंकार टूटेंगी ही.तथा मानव निर्मित क्षुद्र कृत्य का नाश होगा ही होगा.असुरो से इस जगत की मुक्ति के लिए यह आवश्यक भी तो है..
मेरी माताओं के चलने फिरने से प्रकृति के मूल तत्वों में आपस में टकराहट होने लगती है.वो प्रकृति जन्य टकराहट हो या मानव जन्य.यह जागतिक हो,सामाजिक हो,आसुरिक हो या ज्ञान का या फिर ब्यवस्था का ही क्यों ना हो...
इस मूल प्राकृतिक परिवर्तन से जगत में तत्वों का टकराहट तथा कम्पन होना तो स्वाभाविक ही है..
तत्वों का यही प्राकृतिक और बैधानिक धर्म भी है.तथा कर्तब्य भी बनता है.मनुष्य कितना भी जोर लगा ले.पर प्राकृतिक ,शक्ति,दिशाएं,तरंगे,मेरी माताये ,मेरी जननी पर किसी का भी वश नही..हम इस जगत के मूल त्रिकोण हैं ना.हम स्वयमेव से ही निर्मित होकर अपना प्रदर्शन स्वयमेव ही करते हैं..
अभी बाबा आराम कर रहे हैं.. और माँ गतिशील है,क्रियाशील हैं...
मै और दीदी सूर्य के यौवन अवस्था में अपने पास होने पर शंख ध्वनि करते हैं.जाग्रत त्रिकोण पर इस समय ''मै'' काशी क्षेत्र से,''माँ कामख्या '' कामरूप क्षेत्र से तथा ''बाबा '' मेरे पिता श्री केदार खंड हिमालय से आकर अपने परिवार में एक साथ रह रहे हैं.
अभी उर्ध्व त्रिकोण के सभी तीनो शरीर धारी एक स्थान पर जाग्रत त्रिकोण के एक कोण दिल्ली में विराजमान हैं.
तुम तो जानते ही हो की मेरे तथा माँ के इस धरती पर मिशन के कार्य के निमित्त निकलने पर धरती डावाडोल होने लगती है .. और भूकंप तथा ज्वालामुखियों के धरती के अन्दर फटने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है.तत्व घबरा जाते हैं.सेकण्ड खंड पर दबाव बढ़ने लगता है.असुरो का बिध्वन्सत्मक विनाश तीव्र हो जाता है.जगत में कोलाहल तथा त्राहि -त्राहि मचना प्रारंभ हो जाता है..
जब माँ स्वतंत्र रूप में चलती है.तो धरती की प्रकृति में धरती के उपरी सतह से सम्बन्धित तत्वों में उपस्थित तत्वों के साथ निरंतर टकराहट बढ़ जता है.प्राकृतिक जगत में अचानक उत्पन्न आपदाएं जन्म लेने लगती हैं..
जब पुरुष तत्व चलता है,तब उस पुरुष के साथ उस पुरुष की शक्ति के चलने स धरती के भीतर और धरती के ऊपर स्थित दोनों त्रिकोण सक्रिय होकर दोनों तल पर आपस में टकराने लगते हैं..
हम भी अभी समझो आराम कर रहे हैं.अभी तैयारी चल रही है.आगे के मिशन के कार्य की.
हमारे यहाँ उपस्थिति से वो सारी सत्ताएं चरमरा जाएँगी जो आसुरिक स्तर पर अपनी शासन कायम किये हुए हैं..
सिस्टम अर्थात प्रत्येक ब्यवस्था तथा तकनिकी का सिस्टम चरमरा कर कुछ टूट जायेंगे तथा अनेको फेल हो जायेंगे.जिससे लम्बी अवधि का परिवर्तन प्राप्त होगा..
वैकल्पिक तथा मानव कल्पित गड़ना ध्वंस हो जायेगा...
किसी की भी जीवन हत्या ! ...भले ही वो चाहे किसी भी दैवीय सत्ता के लिए बलि की ही क्यों न हो.या फिर चाहे गर्भ में अजन्मे शिशु की..बिधाता ने अपने बिधान में परिवर्तन करते हुए. उस बलि का बदला उसके ही देवताओं को लेने के लिए आदेश पारित कर लागु कर दिया है.जगत में अब स्वाभाविक रूप से धीरे-धीरे बलि आदि द्वारा शक्ति प्राप्ति की चाह लिए लोग सेकण्ड खंड के सेकण्ड शरीर धारियों से स्वयमेव ही घिरते चले जायेंगे ..
ब्यक्ति देश या सभ्यताओं का अनैतिक और ब्यभिचारी घमंड चूर-चूर होकर धरती की धुल में बिखर कर मिल जायेंगा ..
सावधान..उर्ध जाग्रत त्रिकोण के एक कोण पर ही इस समय हम तीनो कामरूप से कामख्या,केदार नाथ से बाबा श्री तथा काशी से आया हुआ ''मै'' अघोर धरती,सृस्ती तथा सभ्यता और धर्म की रक्षा के लिए अभी यही निवास कर रहे हैं.
कभी-कभी आसन पर यहाँ बैठ कर माँ को तथा जगत को बाबा कुछ -कुछ आदेश देते हैं.
सावधान ....धरती के भीतर और धरती के ऊपर प्रकृति में कुछ विशिस्ट व् गोपनीय परिवर्तन हो रहा है.
यह उर्ध्व जाग्रत त्रिकोण चलता फिरता भी है.आराम के बाद हो सकता है की इस धुरी से कुछ दिनों के लिए हम लोग दिल्ली [ उर्ध जाग्रत त्रिकोण के एक कोण दिल्ली ] से बाहर मिशन के विशेष काम से निकले.देखते रहना होगा की अब क्या-क्या होता है जगत में....?
अब जब हम निकलेंगे मिशन के काम के लिए तो हम सब एक निकलेंगे.
कितना शुभ समाचार और अलौकिक घटना होगी .की, हम लोग अब एक साथ धरती पर चलेंगे.
हिमालय में बाबा के केदारनाथ से चले आने से हिमालय सहित सारी धरती पर प्रकृति कुपित है...
एक शक्तिशाली क्षेत्र में एक गलत ब्यक्ति द्वारा की जा रही पूजा का दुस्परिनाम सारा जगत को भोगना पड़ेगा...
एक पुजारी जिसका पूजा करता है.उसके देव के सामने झुकने पर उतनी प्रसन्नता नही होती .जितना की पुजारी का खुद का अपना पैर किसी ब्यक्ति के द्वारा छूने पर प्रसन्नता होती है.उस वक्त जब पुजारी का पैर भगवान का कोई भक्त छूता है तो पुजारी को बहुत अच्छा लगता है.और खुद को इस जगत का गुरु मानने का अभिसप्त तथा श्रापित अहंकार पाल लेता है.
एक यह पुजारी भगवान के भक्त की भक्ति का तथा श्रद्धा का बलात्कार करता है और ऐसे दुराचरण का परिणाम देश काल तथा परिस्थितियों तक को भोगना पड़ता है....

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