Wednesday, November 17, 2010

''अघोर शिवपुत्र की स्वयं वार्ता'''

..तारीख..18 .nov.2010 ..
''दशहरे के तुरंत बाद ही हम लोग अपने घर कुछ दिन के लिए बाबा केदार नाथ जी ( हिमालय ) के लिए अपना कार लेकर निकल गये.अमित ने केदारनाथ जी से ही बताया था फोन पर कि वहा बर्फ गिरनी शुरू हो गयी है..हम कुछ लोग ही केदारनाथ पहुँच सके थे उस दिन..बाकि हजारो लोगो को रामबाड़ा से ही वापस आना पड़ा था..बर्फ काफी तेजी से लगातार पड़ता रहा.रास्ते में फिसलन काफी खतरनाक रूप से हो रहा था.भीड़ कम थी.जैसा मै चाहता था.शोरगुल के अभाव में एकदम शांत वातावरण मिला इस बार..ठंडक से रूचि की तबियत बिगड़ने लगी.कुछ दिन रह कर हमने बाबा से आज्ञा लेकर वापस अपने आश्रम दिल्ली के लिए निकले.सारे रास्ते इस बार बरसात में हुए जल की बारिस से ख़राब और खतरनाक हो चुके सड़को पर यात्रा करनी पड़ी...काफी सड़के टूटी हैं.पहाड़ धसते जा रहे हैं अभी भी .जगह -जगह रास्ते बंद हो जा रहे थे भू_स्खलन से..बाबा के अभी एक पैर उठा कर नृत्य की मुद्रा का परिणाम देख कर अत्यंत हर्षित हुआ.''मै''..
प्रकृति में हो रहे अपने पुनर्निर्माण के कार्यो का परिणाम देख कर किसे अच्छा नही लगेगा...???..
केदार नाथ जी के क्षेत्र में चारो तरफ बर्फ से ढका हुआ पहाड़ देख ,मुझे उन दिनों कि स्मरण जाग गयी जब मै ''माँ शक्ति के गर्भ''में गर्भस्थ होकर अपना स्थूल शरीर धारण का रहा था और ''माँ'' ही हत्या कर दी गयी थी ''राजा दक्ष'' के यज्ञ में जला कर..उस समय हिमालय का यह सारा क्षेत्र ऐसे ही चारो तरफ बर्फ की सफेद चादर से ढंका रहा करता था.
जिस दिन हम लोगो को हेलीकाप्टर से नीचे आना था.उस दिन केदार नाथ जी का मौसम एक दम साफ हो गया.और आकाश छूते सुमेरु पर्वत पर एक अदभुत और अविश्वस्नीय ,अवर्णनिय दृश्य दिखलाई दिया...
प्रातः हमने ''बाबा''पिता श्री केदार नाथ जी से नीचे जाने की आज्ञा मांगी तो बाबा ने बोला..
'''
यहाँ क्या कर रहा है...???..मै ( बाबा) यहाँ ( आश्रम दिल्ली में ) तेरा इंतजार कर रहा हूँ.''
मेरे पिता श्री केदारनाथ जी का चेहरा स्पस्ट रूप से पर्वत की छोटी पर स्थित होकर हमे वहा से बिदाई देने के लिए तब तक रहा जब तक की हम लोग हेलीकाप्टर में बैठ कर वापस नीचे की यात्रा पर मिशन के काम के लिए नही चल दिए..तस्वीर मैंने स्मृतियों में प्रमाण के लिए अपने पास के एक सामान्य कैमरे से लिया हुआ है.संलग्न है.इस ब्लॉग में.आप भी देखे....
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अभी मेरा स्वस्थ ठीक नही है.इतना कठोर प्रक्रिया करने से मेरे स्थूल शरीर पर इसका प्रभाव पड़ने लगा है.जिससे बाबा के आदेशानुसार थोडा समय मुझे अपनी कार्य की गति को धीमी करनी पड़ी...
जब ''मै'' आराम करता हूँ .तब मेरी तैयारी चलती रहती है,आगे के काम को पूरा करने के लिए...
...
संसार अभी मुझको झेलने के लिए तैयार नही है ना.इसलिए अभी संसार को बाबा तैयार कर रहे है ,कि ,संसार,बाबा के पुत्र को झेल सके...
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बैज्ञानिको ने मेरे प्रकृति के बारे में अपना अनुमान ब्यक्त कर भविष्यवाणी करनी शुरू कर दी है कि इस बार मौसम में ठंडक कम पड़ेगी.जाड़े में कम ठंडक रहेगी...संसार अपनी ही गति से भागा जा रहा है और ये अपनी-अपनी भविष्यवाणीया करते ही जा रहे हैं.अनुमान ही लगाना इनका ''काम'' बन गया है..
प्रकृति और जगत का साम्राज्य मेरा है .''मै''बाबा का उत्तराधिकारी हूँ..मै यहाँ का राजकुमार हूँ...सम्राट मेरे पिता श्री ''बाबा शिव श्री केदार नाथ जी महाराज जी '' हैं.और भविष्यवाणीया ये कर रहे हैं.इन्होने तो जगत को यहाँ तक पहुंचा दिया है कि संसार के लोग अब '''जगत के नस्ट'' होने तक की चर्चाये ही नही करने लगे हैं .बल्कि इंतजार भी करने लगे हैं....
नही.!. ऐसा नही चलेगा.मेरी प्रकृति में किसी का भी नही चलेगा .इस विकृत हो चुकी प्रकृति को इसके मूल स्वरुप में परिवर्तित करके ही रहना होगा..नही तो ये मानव नाम के जीव इस सारे जगत को ही अपनी भोग वासनाओं की तृप्ति के साधन के रूप में इस्तेमाल करते -करते नस्ट कर देंगे.मुझे सारी ब्यवस्थाएं बदलनी ही होंगी.कार्य का प्रारंभ हो ही चूका है.कौन रोकेगा इस परिवर्तन के कार्य को..?...???...समझ तो कोई पा ही नही रहा है...
जब मैंने पहले ही इस ब्लॉग में लिख कर सुचना और संदेश के रूप में आप सभी के सामने ब्यक्त कर दिया है कि,जब_जब जो-जो तत्व अपनी चरम की अवस्था में मौसम में होंगे,तो उन तत्वों का आपसी टकराव बढ़ता ही जायेगा...क्या तुम लोगो ने पिछले जाड़े और इस बरसात में देखा नही क्या....तत्वों का आपस में टकराना...????
चलो अब इस ठंडक के दिनों में भी देख लेना...जल्दबाजी क्या है.घबराओ मत.देखो..!..जाड़े का मौसम का शुरुआत हो ही गया है...चलो इस बार भी पिछले कुछ मौसम की तरह आनंद उठाते हैं....तुम भी मौज करो....
हम कुछ दिनों के लिए बहुत ही जरूरी कार्य से फिर एक बार दिल्ली से बाहर जा रहे है.इस बार हम कल निकलेंगे यहाँ से.और हैदराबाद में 4 -5 दिनों का प्रवास करेंगे.देखते हैं अबकी बार क्या होता है प्रकृति में ...? बाबा क्या करते हैं...???.
फिर भी सबको सावधान तो रहना ही होगा न.....
हम प्रथम मानव शरीरधारी ''अघोर'' ही तो हैं...




तारीख..10 oct 2010 ..रात में...
''धरती और यह जगत ''बाबा'' ही चलाते हैं.यह धरती बाबा का रथ है.यह रथ अग्निमय स्वर्णिम है,
गति हममे है.रथ में नही.फिर भी चल रही है प्रकृति.किसी को क्या पड़ी है.जगत में है ही क्या ...? सभी चला ही रहे हैं अपना- अपना जीवन ''रथ''...इनके मानव शरीर धारियों का क्या चल रहा है...? जीवन ! या ये खुद..!.बस भीड़ है ..मेला है.कोलाहल है.कोई चलने का प्रयास तक नही कर रहा है.बस भीड़ में ,भीड़ के धक्के से धकेलते या धकेलाते.. हुए चलते जा रहे हैं.
जब तुमको ,तुम्हारा ही जीवन और तुम्हारी ही प्रकृति नही मालूम.
तब तुम कैसे चलते हो....?..इस अपने शरीर रथ पर...

.मेरा मूलाधार यह तुम्हारी धरती है.मै ब्रह्माण्ड में रहता हूँ.
''
मै'' राम का सबूत देना चाहता हूँ.
अगर अदालत को राम की जरूरत हो,तो,राम अपना सबूत देना चाहते हैं.अदालत और पक्षकार जैसा कहे.राम देने का पूरा कोशिश करेंगे तथा उस कोशिश को परिणाम रूप में फलित होने तक के लिए,अपना पूरा शक्ति लगायेंगे.एक बार देख लो.!..इसमे घबराने की क्या बात है.सब बस हो ही गया है.,
बस साठ ही साल न लगा.हाई कोर्ट को फैशला सुनाने में.कुल लडाई है किस बात पर ..?.
...
कहिये तो सभ्यताओ तक को ख़त्म कर दे भगवान.
''''
जब राम सीता की परीक्षा ले सकते हैं तो राम की परीक्षा भी ली जानी ही चाहिए'''
.
कुछ अलग तरह से इस बार...........ताकि संसार मान ले परिणाम को.परिणाम जो भी आये..
''
पहले '' और पिछले बार भी ''मै'' ही था..इस बार भी ''मै'' ही हूँ...
सबकी तरह इस मानव शरीर धारी के पास भी एक अपना ही जाना परखा और पहचाना हुआ ''मै'' है.मै हूँ मेरा कोई रूप नही है.अगर देखना चाहो ,तो,अभी वाला देख लो.समय पड़ने पर सब दिखला दिया जायेगा...
अदालत / पक्षकार बतलाये की क्या करना है...?..
यह देश रक्षा का सवाल है.यह देश मैं,ने सम्हाला हुआ है.मै,ने अपने पैरो से दबाया हुआ है तो,यह बैलेंस है.मै,ने अपनी मूलाधार को समेट लिया है,धरती के चारो तरफ.....
...
अब मेरे आगोश में धरती बंधी हुयी है..
'''
हमारी / तुम्हारी तरह धरती में भी ''प्राण'' है.''
''
धरती में स्थित पुरुष का ध्यान टूट रहा है.कहो तो तेज कर दू.धरती की प्रकृति में परिवर्तन..''
इस धरती पर ''माँ'' जब तक है.तब तक यह धरती स्थिर है और बचा है.मेरे चलने फिरने से धरती में कम्पन होता है.प्रकृति परिवर्तन का कार्य और असुर बिध्वंस का कार्य तेज हो जाता है..

तारीख....11 .10 .2010 /

.....
अपने जीवन के बारे में और अब कुछ मत कहो.बाहर सुनता ही कौन है...?..और अभी आवश्यकता ही कहा पड़ी है ,अपने जीवन के बारे में,बाहर ब्यक्त करने की ...???..बाहर ब्यक्त करने से बाहरी हो जाता है.और बाहरी से क्या कहना,अपने जीवन की बाते....?
बाते कहनी ही हो जीवन के बारे में अपने,तो,बाहरी से क्यों कहना....?
समय खुद ही,अपना ही जीवन ''जी'' तो रहा है.फिर दूसरा तेरे जीवन और तेरे अनुसार,तेरे वो सत्य ! जो तुम बता रहे हो और जो चाहते हो वैसा जैसा सोच रहे हो,अपने जीवन में परिवर्तन,ग्रहण स्वीकार कैसे सकता है..???
सभी अपना जीवन ब्यतीत कर ''जी'' रहे हैं.
जीवन है जिन्दगी का कैश.
''''
मेरा स्वार्थ इस धरती को बचा रहा है....???
यह ''मै'' शरीर ,पृथ्वी से ब्यक्त हो रहा हूँ...
''
मै'' पृथ्वी बोल रही हूँ.
..
जब पिता श्री ''अघोर''! यहाँ दिल्ली में 124 सी में ठहरने के लिए आपरेशन के बाद अपने,आये थे.,तो,मैंने स्वागत में अपने पिता श्री के चरणों में,इस धरती ने फुल चढ़ाये और अपना एक रूप दिखाया था.मेरे शरीर (एक बूढी जर्जर गाय के शरीर) पर एक ही बाल बचा हुआ था अपना.अपने शरीर का देने के लिए एक ही बाल मुझ जर्जर हो गयी शरीर पर अपना देने के लिए ''कुछ'' के रूप में था.
....
मेरे पिता श्री की समाधि टूट गयी है.
उन्होंने अपने बंधन.के.घेरे में ,आगोश में मुझे अपने बांध लिया है.मेरी रक्षा मेरे पिता श्री कर रहे हैं.तुम क्या कर ही सकते हो..?.मारने के ,तोड़ने के,अपमानित और इंकार करने के....अतिरिक्त.....?
जीवन है क्या,बस बैठे रहना......!
समाधि में रह कर जीना ही जीवन है..शेष जिन्दगी..
जिन्दगी में कर्म करना पड़ता है.समाधि में जीवन होता है,जिंदगी नही.इस लिए जीवन में कर्म नही होता.कर्म का पूरा अभाव जीवन में बैठा रहता है.यह अभाव जिन्दगी का ,जीवन कर्म मुक्त कर देता है.परिस्थितिया ,समय और स्थान लोगो द्वारा तोड़ दी जाती हैं.कर भी क्या सकते हैं...?
मनुष्य माने !मानेगा ही नही.
सब कुछ जानने ,सुनने के बाद भी मानेगा ही नही.अस्वीकार योग तुम्हे घर्षण / जिन्दगी / मैथुन के रास्ते पर बांधता है.जबकिस्वीकार योग तुम्हे मुक्त करता है..
दो में से कोई भी एक चुन लेंने के निमित्त...
दो मार्ग हैं.....एक ''परमात्मिक मार्ग''.....
दूसरा ...........''भोगिक मार्ग''..
......................................
यह कागज पर मेरे शरीर के माध्यम से अंकित और ब्यक्त चित्रित यह अक्षर से निर्मित शब्दों का सुन्दर मनोहारी और बहुप्रतीक्षित नृत्य प्रस्तुत कर रहा हूँ....
पिछले कुछ महीनो में आप सबने देखा...बोलो कैसा लगा....अभी बाबा ने अपनी मुद्रा ठहरा ली है.पृथ्वी को मेरे बांधे हुए करेंट को अपने दोनों हाथ से पकड़ लिया है.मुझे अपने ब्यक्तिगत कार्यो से दिल्ली से बाहर निकलना था.खेल हो रहा है न.एक ही झटके में काफी अपमान हो गया देश का...
''
नवरात्र में मुझे यही रहना था.बाबा ने मेरे उर्ध त्रिकोण में हो रहा कम्पन अभी कम कर दिया है....
नवरात्र में माँ एक स्थान पर ठहरती है.इन दिनों ....यहाँ अभी बाबा का रथ चल रहा है.हम यहाँ ३०० गज ज़मीन पर ठहरे हुए हैं.
हम सब सदा से ही माँ से मांग कर खाते हैं...
...
माँ की नवरात्र पूजा और स्थापना के किये मुझे, बाबा को नृत्य ठहराना पड़ा.ठहरने से एक मूर्ति निर्मित साकार दीखता है.मुझे अपने कुछ ब्यक्तिगत कार्य से दिल्ली से बाहर निकलना था.मै,ने बोला था न .पहले ही तुमसे...
इसलिए कम्पन की गति थोडा धीमी रोकनी पड़ रही है.नवरात्र पूरा होता है/भारत को बचा तो लिया अभी.देखते हैं क्या होता है....?..हमे फिर एक दो बार जल्द ही दिल्ली से बाहर भी जाना है.देखते हैं क्या होता है...?
कुछ कारण वश हम दिल्ली में ही ठहर गये 300 गज के स्टेशन पर.सावन में प्रकृति आनंदित होकर मेरे पिता श्री केदारनाथ जी का जलाभिशेक किया ''मैं,ने'' ( मेरी) पांचो जटाये ( नदियाँ) जल से भरपुर हो गयी.नदी के गर्भ में जल होता है.नदिया पूरी तरह गर्भवती हो गयी.मेरा ध्यान भंग होने लगा.इस जगत के छेड़खानी से.समाधि टूटने लगा.तो ''हिमालय ''सहित सारी धरती पर और प्रकृति में हाहाकार फैलने लगा.इस धरती का पुरुष जागने लगा.
इस धरती के पुरुष का शिर हिमालय में है.इसी पुरुष से यह धरती गर्भवती है.कुछ भी डाल दो जिसमे जीवन का थोडा सा भी अंश हो.यह उसे पुनर्जन्म देती है....
जीवन क्या है...?...हमारा ही पुनर जन्म...!

प्रकृति में धरती पर शरीरो द्वारा निर्मित एक शरीर प्राप्त कर लेना...बस! और ''भोग'' की अतृप्त जगत में अनेको बिषयो रूपों में भोगते ही रह जाना.बस..! यही है न प्रसव आनंद..!
यही परम पीड़ा है.....जिससे...''मै'''' उत्पन्न होता है....
अगर अदालत को जरूरत हो तो,''मै'' राम का प्रमाण दू..अभी तो....अ...से अघोर हो रहा है.....फिर अ से ''मै'' की आ जाएगी....कहो तो,..! जरूरत हो तो..........!.......''राम'' की दे देता हूँ.....
Please email your opinion in Hindi using English font to shivputra_ekmission@yahoo.co.in

2 comments:

  1. Adbhut, aghore putra mera ek prashna hai, kya alag alag deshon ke liye parmatma alag alag hai. Shayad nahin phir hum log sampoorna vishwa ke kalyan ke baare mein blog per kyon nahi likhte

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  2. SHRIKRISHNA PANDEY ji pyar.....

    परमात्मा के लिए देश नही होता.धरती एक है परमात्मा एक है.देशो के रूप में विभक्त करना मनुष्यों के विवेक के आधीन है...मनुष्यों के कर्मो के आधार पर जब संसार में जिस तरह की डिमांड बढ़ जाती है.परमात्मा द्वारा वैसे ही आपूर्ति कर दी जाती है..परमात्मा अलग-अलग नही है बल्कि देश अलग-अलग है.और देश तो बहुत बड़ी चीज है,बल्कि एक -एक व्यक्ति की सोच ही अलग-अलग है. परमात्मा प्रकृति संतुलन के लिए कार्य करता है.जबकि व्यक्ति अपना व्यक्तिगत और सामूहिक कर्म.
    लोग किस लिए ब्लाग लिखते हैं.मै इस बारे में ज्यादा कुछ नही जानता.
    पर मेरे इस ब्लाग पर लिखना ....मेरे सिमित साधन का उच्चतम उपयोग है.यह सारे जगत के लिए सुचना का इस कम खर्चीला साधन और माध्यम है.यह इस जगत के सभ्यता के लिए एक सुचना और सन्देश मात्र है.ताकि भविष्य में परमात्मा द्वारा और प्रकृति द्वारा वर्तमान में किये जा रहे कार्यो का जब प्रमाण माँगा जाये.तब उसके सामने प्रमाण रूप में प्रस्तुत कर दिया जाये,की ,हमने तो वर्षो पहले से ही सुचना दी थी जब ,तब लोग परमात्मा का मजाक उड़ा रहे थे और शिवपुत्र को जी भरकर गाली दे रहे थे.
    यह ब्लाग जल्द ही अपनी सारी संदेशो के द्वारा एक वेबसाईट में परिवर्तित कर दिया जायेगा.
    मेरा यह ब्लाग लिखना मेरा शौक नही है ,बल्कि मेरा सिमित साधन में सन्देश का प्रसारण है.वर्तमान में घटित होने वाली घटनाओं के प्रति अँधा मानव सभ्यता विश्व शांति की सिर्फ बाते करके कदम -कदम पर अपनी स्वार्थ सिद्ध करता है.जीवन में पालन कितने लोग और देश करते हैं?
    इन चार युगों में तो मैंने कभी विश्व शांति की झलक नही देखि किसी भी सभ्यता में...

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