Wednesday, September 1, 2010

....'' परमात्मा ''बाबा_ शिव जी ....मेरे पिता जी की .....''समाधी'' भंग होने से तांडव प्रारंभ हो गया है.''''

..और जैसा की मैंने बोला था कि उत्तर और उत्तर पश्चिम दिशा से बाबा के दो रूप वापस नीचे यहाँ मेरे पास आ गये थे.और उत्तर से एक प्रहार आया था भारत की ओर,जिसे मैंने भारतीय सीमा पर ही रोक दिया था.उत्तर में सीमा पर कुछ हो रहा था.परन्तु आधुनिक संचार माध्यमो से आने वाले समाचार का मै इंतजार कर रहा था.पिछले महीने में प्राप्त समाचार से पता चला कि हिमालय के उत्तर सीमा के पास ''भयानक ''जल प्रलय '' चीन ''में हुआ...तथा उत्तर पश्चिम और पश्चिम सीमा के पार के देश ''पाकिस्तान'' में भी भयानक ''जल प्रलय'' हुआ है...
.....हमने बोला था ना कि हमने जो ''अधोमुखी त्रिकोण'' '.' धरती के नीचे बनाया है,उससे पाकिस्तान __चीन रेखा पर भयानक दबाव पड़ा .जब मै अपने ''जाग्रत ट्राइंगल'' पर दिल्ली से बाहर काशी से अपना शक्ति त्रिशूल लाने गया था....
....जैसा कि पहले ही बताया जा चूका है कि
मेरे दिल्ली से बाहर जाने पर इन क्षेत्र में धरती का संतुलन में फर्क आएगा.धरती में कम्पन बढ़ता है,मेरे चलने फिरने से,प्रकृति में परिवर्तन में तीव्रता आती है.... ........तत्वों में जैसे धरती ..जल ...और अग्नि...तथा वायु तत्वों में भयानक रूप से टकराहट बढ़ जाता है.जो प्राकृतिक आपदा के रूप में जगत के सामने प्रकट होता है...
....आज -01सेप्तम्बर 2010 को श्री कृष्ण जन्मास्टमी है....
....आज ही के दिन पिछले साल केदार नाथ जी से वापस आते समय उखी मठ में मुझे जहर की रोटी खिला कर मेरी हत्या करने का कोशिश किया गया था.'....

'''मै''' मर गया था,
''देव प्रयाग '' [उत्तरा खंड --हिमालय] में थोडा देर के लिए.उस समय मेरे दो शिष्य और मेरी बेटी भी मेरे साथ थी.दोनों शिष्य डाक्टर थे.मेरी बेटी और दोनों शिष्यों ने अपने पिता / गुरु को अपनी आँखों से मरते हुए देखा है..20 -=40 मिनट तक मृत्यु में रहने के पश्चात फिर मैंने अपने ही मृत शरीर में ''स्व काया'' [ परकाया ]प्रवेश किया ..और मेरा मरा हुआ स्थूल शरीर पुनः जी उठा.....
.......अतः आप कह सकते हैं कि ,आज के दिन ही असुरो ने पिछले वर्ष मुझे मार डाला .पर मै ''बाबा'' भगवान शिव ,अपने पिता श्री के कार्य को पूरा करने के लिए फिर से जी उठा.अतः आज मुझे एक नया जन्म मिला.शिवपुत्र शुकदेव चैतन्य की हत्या कर दी गयी और
उस शरीर में ''अघोर'जन्मा.....जिसको ''बाबा'' की धारणाओं के अनुसार अपना काम पूरा करना था.;;
'''.एक ऐसा अघोर जो अपना कार्य,प्रकृति का परिवर्तन का कार्य ,धरती कि रक्षा और संतुलन का कार्य तथा नियंत्रण किसी भी हद तक जाकर करता है...

....
पिछले एक साल से सारे जगत में,धरती पर,प्रकृति में हो रहे घटनाएँ मेरे ''अघोर लीला '' का प्रदर्शित साकार कार्यक्रम है...
...मेरी मृत्यु की चाह से किये गये प्रयास से''' मेरी मातायें'' उग्र' हो गयी हैं..कोई माँ अपने पुत्र कि हत्या कैसे सहन कर सकती है...?...
एक वर्ष में 01 -sep 2009 से 01 sep 2010 तक के अन्तराल में तत्वों का प्रकोप उग्रता तथा आक्रोश में किया गया कार्य ,जो विकृत प्रकृति में सुधार के लिए किया गया है....आप सभी के सामने है...यह थमने वाला नही...
....क्योकि आज मानव सभ्यता अपने अहंकार में किये गये अविवेकी और आसुरिक कर्मो के कारण आत्म हत्या के कगार पर जगत को पहुंचा रहा है......
.
..मै धरती की रक्षा कर रहा हूँ.भारत को प्राकृतिक आपदाओं से बचा रहा हूँ. ..धरती पर प्रलय खंड प्रारंभ हो चूका है.बार- बार सुचना और सन्देश दे रहा हूँ..
..प्रलय में बिध्वंस होता है.यह बिध्वंस प्रकृति के मूल तत्वों और शक्तियों के आपसी टकराहट ,आकर्षण तथा विकर्षण के बिध्वन्सक परिणाम से प्रलय होता है.और यह सब प्रारंभ हो चूका है..
.सारे जगत में धरती पर हर एक देश में घटनाएँ घटित हो रहा है...
.....ये असुर इन घटनाओ के मूल कारण हैं....
....अभी तो यह शुरुआत भर है.प्रकृति में बिध्वन्सक घटनाएँ बढ़ती ही जाएँगी..
.क्योकि मै मूल शक्तियों को मुक्त कराता जा रहा हूँ.धरती की रक्षा के लिए
.जगत की भौगोलिक संरचना में परिवर्तन होगा ही होगा.युग का परिवर्तन हो रहा है. ''कलयुग के अंत का कार्य क्रम '' आपके सामने प्रस्तुत है....
...
....एक साल का कार्य क्रम प्रस्तुत है...
..एक
'''चेतावनी ''पुनः दे रहा हूँ.आसुरिक और बुद्धिजीवी जगत को...
...मेरे चलने फिरने से धरती में कम्पन बढ़ जाता है और प्रकृति में परिवर्तन तेजी से होता है ..
मातायें अपने पुत्र पर हो रहे आघात से उग्र हो रही हैं.शक्तियों का क्रोध बढ़ता ही जा रहा है....
.
.दुर्गाशप्त्पदी.....पुस्तक में आपने पढ़ा है.आप सबने .अब अपने जीवन में इसी वर्तमान में इस धरती पर घटित होते हुए भी देखिये.अभी सभ्यता,मानव चेतना बेहोश है.जबकि आज का धर्म ,आज का अध्यात्म और साइंस अपने चरमोत्कर्ष पर है.
..फिर भी प्रकृति अनियंत्रित है इनके लिए........
...
मै नियंत्रित करने का और ठीक ढंग से संचालित करने का प्रयास कर रहा हूँ.धरती को बचाना मेरा काम है..
.धरती के जीवों और आत्माओ को अपने आपको बचाने के लिए
अब खुद ''पुरुषार्थ करना होगा.'
'''अघोर शिवपुत्र '' को ईमानदारी से स्वीकार कर ध्यान करना ही होगा..शेष.आगे .......
.....जीवन में मर्जी आपकी......

.
.जब युग परिवर्तन में प्रलयंकारी घटना होता है तो अनेकानेको का बिध्वंस होता है.
..इस समय असुरो से भयानक युद्ध चल रहा है.मेरे पिता श्री परमात्मा भगवान ''शिव जी'' कि समाधि टूट गयी है.
..मातायें अपना विस्तार कर प्रदर्शन कर रही है...
..जगत में ''पगध्वनि गूंज रही है....
'''तांडव नृत्य'' का मनमोहक थाप सुनाई देने लगा है...
एक बार फिर ....
....''अघोर शिवपुत्र '' जितना चिंतित रहेगा,जगत में उतना ही तेजी और तीव्रता के साथ प्रलय में बिध्वन्सात्मक कार्यक्रम जगत में ,प्रकृति में प्रस्तुत होता रहेगा..
इसलिए ''अघोर शिवपुत्र '' से छेड़ छाड़ ठीक नही...

.......यह ''शब्द ''मात्र नही जो ब्लॉग में लिख कर ,अपना प्रचार किया जाये.यह ! हर ''शब्द जीवंत'' है और जीवित शब्द ,जाग्रत शब्द ,जाग्रत ट्राइंगल में बिस्फोट के परिणाम स्वरुप क्रियाशील और जीवंत है.कोई जल्द बाजी नही ,कोई घबराहट नही.हमे.
हम जगत को बचा रहे हैं....
प्रकृति अब मेरे इक्षा व् आदेशानुसार चलने लगी है... धीरे -धीरे प्रकृति पर मेरा नियंत्रण कायम होता जा रहा है....
..
भारत की सुरक्षा और भारत के शक्ति प्रदर्शन के लिए ''मै'' शत्रु देशो को अपनी प्रकृति में समेट रहा हूँ. ब्यक्ति हो या देश ! ...मैंने सभी को घेर कर अपने आगोश में ले लिया है.
''असुर तत्वों'' का सर्वनाश करना शिवपुत्र एक मिशन का प्राकृतिक जिम्मेदारी और कार्य है.
अपना-अपना जीवन जीते हुए देखते रहिये.प्रकृति में परिवर्तित हो रहे घटनाक्रम को..
एक साल का जगत में प्रस्तुत ''बाल अघोर'' का ''लीला__कार्य क्रम '' कैसा लगा..जरुर लिखें.
आप सभी का अपना रक्षक.. आप सभी को मेरे मृत्यु / जन्म के एक साल पूरा होने पर बहुत सारा प्यार.......
........................
'''''अघोर शिवपुत्र''''''''......................
....जन्म और मृत्यु पर अधिकार तो सिर्फ मेरे पिता श्री ''बाबा '' का है...
....कब ,किसको और क्यों ,कहाँ पर किसलिए जन्म लेने देना है और शरीर का अंत कर देना है....
.यह ''बिधाता'' का , ''बाबा '' का 'क्षेत्र 'है..
....
..सावधान.......
.....................इसलिए कर रहा हूँ.क्योकि उनका बेटा पिछले साल उनके पास,उनके घर से ही ,केदार नाथ से ही वापस आ रहा था..
मै जाग्रत त्रिकोण के एक सिरे केदारनाथ जी के यहाँ से चलकर वापस दिल्ली के लिए यात्रा कर रहा था.उसी यात्रा में अति सम्मान के साथ पुजारी ने अपने घर पर बुलाया और घर ले जाकर खाना में ''जहर की रोटी'' खिलाया.इस धारणा के साथ कि मै रास्ते में ही मर जाऊंगा.....
...
..बात मेरे मृत्यु की नही है और जन्म की भी नही है.
..बात सिर्फ यह है कि,यह घटना हुयी है.और जब कोई घटना मनुष्य द्वारा जानबूझ कर की जाती है,तो उस घटना का परिणाम भी जगत को भुगतना पड़ता है
.बाबा ने अपने पुत्र को भेजा है.संसार को बचाने और असुरो का सर्वनाश करने के लिए.तो असुरों का अपना स्वभाव है ,वो तो होगा ही.वो तो अपने स्वभाव अनुसार करेंगे ही.असुरो का स्वभाव ही होता है,अपने भोग वासना और स्वार्थ ,वैभव की प्राप्ति के लिए मार काट और छल करना...असुर किसी के हो ही नही सकते...उनका अपनापन सिर्फ अपनी स्वार्थ पूर्ति और भोग की पूर्ति तक ही सिमित रहता है.पर यह तो निर्विवाद सत्य है कि ,अंत उनका होता ही है....
...सामूहिक बिध्वंस तो असुरो का ही होता है और वह बिध्वंस वीभत्स होता है.....
.
जिसे युग याद करते है...और यह युग परिवर्तन का काळ खंड चल रहा है.
....अपने ''पुत्र'' के साथ यह हो रहे जगत में बर्ताव देख कर ''बाबा'' का समाधि टूट गया है.
परमात्मा अब दंडात्मक मुड में हैं...
.
..बाबा के समाधि टूटने से शक्तियां उग्र हो रही है..
.शक्तियों की उग्रता से प्रकृति मूल तत्वों में उग्रता ,आक्रोश और क्रोध बढ़ रहा है.....
...अभी भी मानव सभ्यता बेहोश है...

.''जल प्रलय''........''अग्नि का प्रकोप और प्रलय''.. तथा ''वायु का प्रहार'' बढ़ता ही जा रहा है.
...धरती जगह -जगह से फट रही है..
आसाम व् बंगाल से मुक्त व् स्वतंत्र करायी गयी मातायें ,शक्तियां,महाबिध्यायें..धरती पर चारो तरफ दशो दिशाओं में विचरण कर रही है
.इनके चलने फिरने से धरती के अन्दर और बाहर कम्पन बढ़ रहा है.जिससे एक संगीत ,एक पगध्वनि उत्पन्न हो रही है. .इस मनोरम संगीत और नृत्य को जगत के शास्त्रों में '''तांडव ''' के नाम से कहा गया है.
..इस ''तांडव नृत्य'' को जगत में उपस्थित सभी देवता ,देविया और दिब्य / साधारण सभी आत्माएं हतप्रभ और अवाक् हो ,स्तंभित हो कर देख रहे हैं.
सभी प्रलय के साक्षी बन रहे हैं.

''बहु प्रतीक्षित 'प्रलय' प्रारंभ हो चुक है.
परन्तु ''अभागा मानव'' अभी भी अपने अहंकार में तथा अपने भोग में बेहोश कर लिप्त अपना जीवन ढो रहा है...
....तो फिर चिंता ही किस बात कि है.....?...
...सभी को अपना -अपना कर्म भोगना ही पड़ता है.
परमात्मा ने '''न्याय और दंड '' के बिधान अनुसार अपनी उपस्थिति के प्रमाण का प्रदर्शन प्रारंभ कर दिया है....
आधुनिक साइंस अगर सम्हाल सकता है तो सम्हाल ले...
............फिल हाल ''मै'' पुनः एक बार दिल्ली से बाहर निकलने कि तैयारी कर रहा हूँ.स्वास्थ स्थूल शरीर का ठीक नही है.
फिर भी कार्य तो करना ही है ना..
...मिशन का काम पूरा किये बिना आराम कहाँ...????
..धरती के 'इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फिल्ड' को फिर चेक करने के लिए,इस धरती पर मुझे चलना फिरना तो पड़ेगा ही ना...
ध्यान रहे..
.जाग्रत ट्राइंगल में बिस्फोट बढ़ता ही जा रहा है...
चीन --पाकिस्तान के बाद अब अमेरिका का तथा उनके मित्र देखो को भी समेटने की बारी का प्रारंभ हो चूका है.
देखते हैं आधुनिक बिज्ञान कैसा समाचार पहुंचता है मुझ तक टी. वी के माध्यम से ,संचार माध्यम से .....
आप माने या ना माने ...आपकी मर्जी .....
....कहाँ समय है कि, मनवाया जाये और क्यों.......?
अगर कोई अभी नही मानेगा तो क्या फर्क पड़ता है....?
प्रकृति में प्रलय खंड में बिध्वंस का कार्य क्रम बिधाता द्वारा प्रस्तुत है .देखते रहिये और यह देखना ,जीव और आत्मा की विवशता है.क्योकि अपने -अपने अहंकार में सभी विवश हैं....
मनुष्य का मतलब ही है की ,कुछ भी हो जाये,मानेगा ही नही.
वही तो असुर है..मानव नही.....
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