Monday, May 2, 2011

''8 May 2011 को हिमालय में ''बाबा केदारनाथ जी'' के मंदिर के ''पट'' खुल रहे हैं.''


..तारीख..2/3मई 2011
'''8 मई 2011 को मेरा घर का दरवाजा ''बाबा केदारनाथ जी ''के मंदिर का कपाट इस जगत के मनुष्यों के लिए अगले छ: महीने के लिए खुल रहा है.इस जगत के सभी ''बाबा'' के भक्तो का ''केदारनाथ मंदिर क्षेत्र'' में 'स्वागत' है.''
अभी 2 मार्च को बाबा का यहाँ अपने स्थान जाग्रत उर्ध त्रिकोण के एक कोण दिल्ली में अभिषेक किया. महाशिवरात्रि पर अभिषेक करके 3 मार्च को यहाँ पर एक छोटा सा भंडारा करके मार्च के दुसरे सप्ताह में हम काशी ''बनारस'' थोडा चहल कदमी करने चले गये,मिशन के एक विशेष कार्य के निमित्त.धरती के पूर्व दिशा से तुरंत खबर आई.सुबह ही 8.9 तीव्रता का भयानक भूकंप आया था.और फिर सुनामी से लगभग 28000 लोग लील लिए गये,प्रकृति द्वारा.मै उसी समय बस तुरंत ही मुगलसराय से ट्रेन में बैठ कर निकला ही था,वापस काशी 'बनारस'के कोण से यहाँ दिल्ली के लिए.लगातार महीनो तक भुकम्पनो का सिलसिला चलता रहा..
फिर तभी से मै और मेरी माताएं यही दिल्ली में मेरे अपने आसन ,आश्रम में ही रही.क्योकि पिछले महीने अप्रैल में ''नवरात्रि'' का समय आ गया और ऐसी स्थिति में माँ की पूजा आदि के लिए एक स्थान पर ठहरना जरूरी था.इसीलिए जबसे यहाँ माँ के ठहरने के लिए एक निवास का स्थान बाबा ने अपने देख रेख में बनवाया है.तबसे यही इसी स्थान पर नवरात्रों में ठहर कर ''कलश स्थापना'' व् ''नवरात्रि'' का काल ब्यतीत कर पूजा संपन्न किया जा रहा है.नवरात्र आने से मै यहाँ से अपनी माँ के संग दिल्ली से बाहर नही निकला,बल्कि,जबसे काशी से आया हूँ.यही दिल्ली में अपने आसन पर ही ठहर गया हूँ.
मेरे यहाँ अपने आसन पर एक स्थान पर ठहरने से धरती पर पूर्व के देशो में जो भूकम्पों अर्थात धरती के निरंतर हिलते रहने का सिलसिला भी धीरे -धीरे ठहरने लगा.अब सोच रहे हैं की 8 मई को बाबा केदारनाथ जी का हिमालय में स्थित इस जाग्रतत्रिकोण का प्रथम कोण पर स्थित अपने घर अपने स्थान पर मंदिर का कपाट खुलते समय कुछ दिन वही निवास करूं..
जितना समय ''मै'' जहाँ रहता हूँ.उतना देर ''बाबा''खुद वहां उस स्थान पर रहते हैं.अर्थात मेरे जाने से बाबा भी चलेंगे मंदिर कपाट खुलने पर और जब मै वापस आऊंगा तब बाबा भी मेरे साथ ही जायेंगे..ऐसा ही होता आया है अभी तक.जितने देर तक जितने दिन हम लोग केदारनाथ जी रहते हैं.उतने दिन बाबा वहां मंदिर में रहते हैं और फिर हमारे साथ ही वापस चले आते हैं.जबकि यहाँ आश्रम में भी बाबा उसी समय में भी उपस्थित रहते हैं..बिधाता हैं ना बाबा ,इसलिए एक समय में अनेको स्थानों पर उपस्थित हो जाया करते हैं.
माँ के चलने फिरने से धरती में कम्पन होता है.मै जब अपने स्थान से ,दिल्ली से बाहर निकलता हूँ.समझो की माँ अपने पुत्र के साथ चलती है और अन्य दसो माताएं पिछले -पीछे चलती हैं अपने पुत्र को देखते हुए,सम्हालते हुए.
यह यात्रा मै अपने त्रिकोण के एक सिरे पर करूंगा.
मेरे हिमालय में बाबा केदारनाथ क्षेत्र में जाने के लिए जब आगे बढूँगा तो धरती पर पड़ रहे बैलेंसिंग फिल्ड पर दबाव पड़ेगा.शक्तियों का स्थानांतरण होने से स्थान परिवर्तन करने से स्थूल जगत में ,भौतिक जगत में प्राकृतिक स्तर पर परिवर्तन पड़ेगा.
धरती के अन्दर जो अमेरिका,पाकिस्तान व चीन को जोड़ कर एक अधोमुखी त्रिकोण बना हुआ है.उस पर तीव्रता से दबाव पड़ेगा तथा वह अधोमुखी त्रिकोण अपने निचे की धुरी पर पड़ने वाले दबाव से उसकी रूप व् दशा में परिवर्तन होने लगता है.जिससे प्राकृतिक भूचाल आने लगता है.यह भूचाल और परिवर्तन सभी तरह की प्रकृति में दिखलाई देने लगता है.प्रकृति चाहे महाप्रकृति में,मूल प्रकृति में हो या जीव प्रकृति में ,चेतना में चाहे मानव प्रकृति में .सभी पर असर पड़ता है कोई भी प्रकृति इससे अछूता नही रह पाता.
इसीलिए धरती व् सभ्यताओं तथा प्रकृति की रक्षा के लिए मै अपने आसन से उठ कर जल्द कहीं नही जाता हूँ.मेरे अपने आसन पर स्थित रहने से इस धरती पर जाग्रत उर्ध त्रिकोण का बैलेंस यहाँ पर स्थित बाबा के अग्निस्तंभ से होता है..
आज के वर्तमान में धरती की रक्षा का यही एक मात्र स्थान व् उपाय बचा है.अब मेरा मूल निवास हिमालय में केदारनाथ में मंदिर क्षेत्र में है न.इस पिछले जाड़े के मौसम में पहले से बहुत ज्यादा बर्फ पड़ा है.नुकसान भौतिक का काफी हुआ है ऐसा वहां के लोग बता रहे हैं.पिछले बरसात में भी काफी पहाड़ टूट कर बिखर गये.
लोग प्रलय की चर्चा करते हैं.प्रकृति इसके संकेत प्रमाणित करती है.तत्व टकराते हैं.भूकंपन उत्पन्न होता है.जल प्रकोप से प्रलय जैसा स्थिति उत्पन्न होने लगता है.ज्वालामुखी अपना मुह खोल देती है.समुद्र अपना हाथ धरती की और बढ़ाने लगता है.
नवरात्रि की नवमी को ''यज्ञ'' के समय बाबा ने ''तांडव '' करने का आदेश दिया है.मानवीय जगत में असुरो,नकारात्मक व् विपरीत तत्वों,संस्थाओं,ब्यक्तियो व् देशो प्रदेशो का बिध्वन्सात्मक पर्दाफास अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचेगा.
भविष्य के दृश्य में दिख रहा है की जल्द ही समुद्र अनेक स्थानों पर धरती पर कब्ज़ा कर लेगा.जहाँ आज मनुष्यों ने अनाधिकार कब्ज़ा कर लिया है भूमि..जल उसे अपने कब्जे में वापस ले लेगी.अनेक नगरो को मनुष्यों को खाली करना पड़ेगा.अग्नि इस गर्मी में वायु के साथ मिल कर ज्वालाओं की वर्ष करेगी..
मै देख रहा हूँऔर महसूस कर रहा हूँ,की धरती के भीतर लगातार धमाके व् बिस्फोट के साथ कम्पन हो रहे हैं.अग्नि का फैलाव चारो तरफ हो रहा है वायु कुपित होकर घूर्णन कर रही है.शक्ति अपने प्रकृति में मूल तत्वों को खेलते हुए अपने आपको स्वतंत्रता व् क्रियाशीलता का प्रदर्शन करते हुए सक्रिय भूमिका निभा रही है.सभ्य समाज प्रमाण मांगता है.मानवीय समाज में स्थापित मर्यादाएं टूटने लगती हैं .सभ्यता ,अपनी असभ्यता का चरम छूने लगता है.लज्जा अपना बलात्कार खुद करने लगती है.सभ्य व् सम्मानित लोगो के अन्दर का छुपा असुरत्व जग जाहिर होने लगता है.जन साधारण मानस में आक्रोश और उग्रता बढ़ने लगती हैं.
शक्तिशाली सत्ताएं टूट -टूट कर बिध्वंस हो जाती हैं या परिवर्तित.जन हानी का भारी नुकसान होता है.
अभी यह 2011 चल रहा है.फिर आगे 2012 आएगा अगले वर्ष.तब तक चलो बाबा केदारनाथ जी के मंदिर में अपना सर झुका कर अपने को सभ्य बना कर आशीर्वाद लेलो.और अपना जीवन धन्य कर लो.स्वागत है सभी का.हिमालय में ,केदारनाथ जी के मंदिर में ..
जगत में आगे आने वाला समय और ज्यादा विकट त्राहि-त्राहि भरा और कठिन होता जायेगा.जीवन की असुरक्षा बढती जाएगी.न जाने आपके पैरो के निचे की धरती कब अपना गुस्सा प्रकट कर फट पड़े .कुछ निश्चित नही कह सकते आप.
इस जगत ,में मानवीय या प्राकृतिक रूप से जीवन की असुरक्षा बढती ही जा रही है.तत्व अपना शक्तिशाली प्रदर्शन कर रहे है.आपस में टकरा रहे हैं.
''तांडव नृत्य काल'' में आप सभी का हिमालय में केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में जोरदार स्वागत है.सभी बाबा का ध्यान धारण करे.जीवन धन्य हो जायेगा.यह सेकण्ड खंड से अपनी सुरक्षा के लिए भी मानवों के लिए जरूरी व् एकमात्र उपाय है.
हम जब-जब धरती पर अपने आसन से उठ कर चलेंगे ,प्रकृति हमारे चलने से प्रभावित होगी.धरती अपने जागे होने को प्रमाणित करेगी.प्रकृति अपने तत्वों के तेज हलचलों से मेरे चलने फिरने का प्रमाण देगी.जल ! आकाश और नदी तथा समुद्र से प्रमाण देगा.पर्वतों के हिमपात अपना दहाड़ सुनाकर जगत में प्रमाण देंगे...
अहंकारी असुर ब्यक्ति धर्म,सभ्यता का बिध्वन्सत्मक प्रदर्शन जग जाहिर होकर प्रमाण देगा की मूल शक्तियां स्वतंत्र है,मुक्त हैं तथा सौभाग्यवती व पुत्रवती भी हैं.
यह जाग्रत उर्ध्व त्रिकोण चलता फिरता भी है.
हम सबको बिधाता परमात्मा मेरे पिता श्री बाबा केदारनाथ जी का ध्यान ,स्तुति व् स्मृति करनी ही चाहिए.यह बिना मोल मिलता है.जो प्रलय कालीन हो रही बिध्वन्सक घटनाओं में हमारी सहायता व् रक्षा करता है...
सावधान..!..इस धरती का पुरुष जाग गया है.
पिछले एक वर्ष की घटनाएँ क्या कहती हैं.?..कार्य प्रगति पर है.सावधानी से अपने जीवन यात्रा में आगे बढे.खुश रहे.आनंद ले.ध्यान करें....
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अब जबसे माँ मुक्त हुयी हैं और इस स्थान पर निवास कर रही है अपने पुत्र के साथ.मै बाबा और माँ सब एक साथ अपने परिवार के साथ हम सब रहते हैं.और जब भी कहीं स्थूल शरीर से आते जाते हैं तो सभी एक साथ ही जाते हैं .एक प्रचंड शक्तियों का समूह इस धरती पर चलता फिरता है..इससे धरती के प्रकृति में परिवर्तन होने लगता है.हमारा आना जाना कही भी मिशन के कार्य से ही होता है बाबा के आदेश पर.यह धरती की रक्षा के लिए बहुत ही जरूरी होता है.अन्यथा जो कर्म मानव ने अपने औकात साइंस को बढ़ा कर प्राकृतिक व् सामाजिक अराजकता जन्मा है.ग्लोबल वार्मिंग जैसा भयानक स्थिति उत्पन्न कर दिया तथा रोज -रोज आविस्कार के नाम पर समस्याओं का अम्बार लगाते जा रहा है..जापान और जगत -जगह उत्पन्न प्राकृतिक बिध्वंस की विनाश लीला देख कर अपने समझदारी के हिसाब से खुद अपनी आँखों से देख लो क्या परिणाम हो रहा है मानवीय कृत्यों से .
सभी अपना -अपना कर्म कर ही रहे हैं .तो मै भी अपने से जो हो सकता है बाबा के आदेश अनुसार करता रहता हूँ प्रकृति में गन्दगी के सुधार के लिए .परिणाम भी अब आने लगे हैं.अब क्या है की मै बाबा का बेटा इस जगत का उत्तराधिकारी हूँ न.और माँ भी अब मुक्त हो गयी है. फिर मानव सभ्यता में आज कल प्रलय की भविष्यवाणियाँ होने लगी है तथा चर्चाओं का बाजार गर्म होता जा रहा है की 21 मई 2011 को प्रलय आने वाला है.नही तो 21 डिसेम्बर 2012 को निश्चित ही प्रलय आएगा ही आएगा ही.कैलेण्डर में कोई तारीख तक नही है.
तो किसी न किसी को तो सामने आकर इस धरती को बचाना ही पड़ेगा न.अब कोई मनुष्य नही कर सकता ,कोई साइंस नही कर सकता,कोई तुम्हारा भगवान भी तो ऐसा जिन्दा नही है शरीर धारण कर इस धरती पर ,की, इस जगत को प्रलय से बचा ले.यह जगत मनुष्यों के अपने ही कर्म से प्रलय खंड में प्रवेश कर चूका है.जगत में पिछले कुछ वर्षो से प्रकृति में बिनास,बिध्वंस बर्बादी तथा तबाही की घटनाएँ लगातर बढती ही जा रही है.धरती पर जगह-जगह रोज ही कुछ न कुछ भयानक ही सुनाई देने लगा है.हर ब्यक्ति अपने आपको असुरक्षित महसूस करने लगा है.सभी का दम कही न कही किसी न किसी कारण से घुट रहा है.भ्रस्टाचार और अराजकता इतनी ज्यादा बढ़ गयी है की धीरे-धीरे चारो तरफ त्राहि-त्राहि का विलाप होना शुरू हो गया है...
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