Tuesday, May 18, 2010

'''''''प्रथम मानव शरीर धारी '''अघोर'' शिवपुत्र का उदघोस.''

'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''जीवन'''''''''''''''''''. और .''''''''''''''''''' जिन्दगी'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
[
एक साधक शिष्य ने msg करके गुरु जी से अपना जिज्ञासा का समाधान चाहा.........
.........................समय --05:05 am..दिन--05-09-2009......................

'''''श्री गुरु चरणों में समर्पित शिष्य..!...''
? ....'''' क्या जीवन नवीनता से परी पूर्ण आभास नही,जो कि बीते छरों { प्रत्येक पलो में } में असत्यता को दर्शाता है...?...
......
.क्यों.....?
...समस्त मानव जीवन छोर जिन्दगी कि ओर अग्रसर हो रहा है.......
....
.क्या ऐसा करना मानव भूल नही होगी.....???.....
...विचारो पर प्रकाशित दो चार शब्द........''''''
................................................................श .ल.शर्मा. ...................................................
''''''''''''''''''''''''''
......
.''''''''''अघोर शिवपुत्र का समाधान'''''''''''...........................................

''''''''''प्रथम मानव शरीर धारी '''aghor शिवपुत्र '''' ..................उदघोष .... .........
................................................................. [एक-दो दिन बाद...] ..................
.........................
'''बात सिर्फ इतनी सी ही है.........,कि ब्यक्ति अपने ही द्वारा निर्मित इक्छा और कल्पनाओ कि वासनाओ से खुद ही जिन्दगी से चिपका रहता है......और..........और क्या मानव कभी भूल करता है....?...
........और थोडा और पा लेने की इक्छा, ,और थोडा और भोग लेने की निर्बाध अतृप्त इक्षा और कर्म,
ना तो जिन्दगी ही जीने देते है और ना ही जीवन..और ब्यक्ति शब्दों में उलझ कर ''मर'' जाता है.'''
''''जीवन तो सदा से नविन ही होता है.इसलिए तो आगे अग्रसर होता है.पर पुराना तो ब्यक्ति खुद ही होता है....
जन्मो जन्मो से,जन्मो जन्मो तक.वही जो पीछे भी हो चूका है.अभी भी चल रहा है.....
.......जीवन परमात्मा देता है ,....जिन्दगी ब्यक्ति जीता है...जिन्दगी के लिए सब कुछ किया,और कर भी रहे है..करोगे ही जीवन के लिए...?...
...........................?.......जीवन देने वाले के लिए............
''....क्या.....''....किया....?....तुमने..?...
........................
['''जीवन जीने वाले''''].............?.....!......?......!.......
........''प्रिय...........''....
''''
सतसंग में किन और कितने ''सत''' लोग ''संग'' होते है...?
........
जीवन और जिन्दगी में....?
.............और चलता ही रहता है........''सम''बंध'' ....... ?.... ...
............................. है ना'' ...........
प्रिय....................[''. श .ल. स .......'']
'''''शब्द..!...
.....मेरे सामनेअपने मूल रूप और स्वभाव में कर्म कर रहे है.
....वो ना ही भोग , ना ही योग कर सकते है...
...
..भोग और योग तो ब्यक्ति कर रहा होता है.....
''''''''''''प्रति छन ........?....
..इसीलिए तो बंधन में है...........
'''''इसीलिए मुक्त नही है......... [''म उक्त नही है.]
...अभी तक...,,,,, खुद.....!.......... ?
''''वह क्या है जो जीवन में जीता है.............. ,या जिन्दगी में.......?...
.जी कौन रहा है......... ?
''शब्द''__''जिन्दगी''__जीवन ''''........या ब्यक्ति.......___तुम___ { सब }

''''''........''सिर्फ '''''मै'''' .........______
....हा रे पगले.........!..
''मै ही हूँ, सबका जानने wala .सबके साथ हर पल..
तब से अब तक .....
...बाकि मेरे अतिरिक्त अगर कुछ है तो..................?.......................
?
.........सिर्फ...................शब्द............. ?
............'''''''''ना जीवन...................''''ना जिन्दगी.............
.....................और ना ही कोई ब्यक्ति..........
..................समझे.....................
?
i
!
:
.
?..............................की .....................
?
.
_________
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