Sunday, July 19, 2009

Conversation with my Gurudev (Part III)

"Aghor"
"Shivputra Shukdev Chaitanya"

My Gurudev is currently in Kedar Nath, (Himalaya) and is in deep meditation (Samadhi)। But still I got an opportunity to talk to him today morning i.e. 9th July2009. The conversation is given below.

….तुमने किसी अनानिमस के कमेन्ट के बारे में बतलाया ....
उसको मेरा बहुत सारा प्यार और धन्यवाद् .वो जबसे मुझे देखा है .मेरा ही ध्यान कर रहा है और अपनी योग्यता अनुसार मेरा ही प्रचार कर रहा है .
जब भी कोई मेरे सामने या मेरी तस्वीर के सामने परता है .उसके अन्दर मेरा प्रवेश हो जाता है .मै उसमे प्रवेश कर सकू ,ऐसा किसी में सामर्थ्य ही नही है .अब वो मुझे कभी भी ,किसी भी उपाय से अपने अन्दर से निकल ही नही सकता है .क्योकि मुझे अपने अन्दर से निकल सकने की शक्ति तो मैंने उसको दी ही नही है .मैंने ''बाबा'' --''मेरे पिता''... ''श्री केदार नाथ जी''-[ ''भगवन शिव जी'' ] के आदेश के अनुसार ऐसा विधान की रचना कर दी है ,और अनेक तरह से मै महा प्रकृति से लेकर ब्यक्ति के ब्यक्तिगत प्रकृति [ सूक्षम प्रकृति ] तक में मै परिवर्तन कर रहा हूँ .
''''मै ''''''अघोर ''''' हूँ ना ----प्रथम मानव शरीर धारी '''''अघोर '''''....
इसीलिए तुमको भी तो दिखलाता रहता हूँ ,की ब्यक्ति का 2nd बॉडी कैसे 2nd खंड से संचालित हो कर तरह - तरह के ''कृत्या और कुकृत्य ''करने के लिए विवास रहता है ..मै हर एक को जन्मो जन्मो से जनता हूँ ,उसके सभी कर्मो को ,उसके स्वभाव को ,उसके वासनाओ के विषय को और उसकी सम्पूर्ण सामर्थ्य को भी ....
तुम और मेरे सभी शिष्य तो जानते है ना की ,मै सभी तरह की ''शक्तियों का संचालन नियंत्रण और संतुलन ''करता हूँ .तभी तो मै इस जगत की आदि माँ ----अपनी मेरी माँ ----शक्ति --[ सटी ]--माँ कामख्या को उनके दसो रूपों के साथ मुक्त और स्वतंत्र करा पाया हूँ ....यह मानवीय सोच की क्षमता के बाहर का विषय है ..
इसीलिए जब भी कोई भी मेरे पास आता है या मेरे तस्वीर को देखता है ,तो कुछ ही सेकंडो में उस ब्यक्ति के आंतरिक जगत की आंतरिक चेतना में हलचल उत्पन्न हो लगती है .यह चेतना धीरे - धीरे इतनी शक्ति शाली और प्रचंड हो जाती है की ब्यक्ति का अपनी ही हरकतों पर नियंत्रण नही रह पाता है .और उसकी सोच में से लेकर अपने चरित्र में ,ब्यवहार में ,वाणी में ,तथा अपने जीवन के स्थूल जगत में भी अभिब्यक्त होने लगता है .अब उस ब्यक्ति का वास्तविक आंतरिक जगत -जो जन्मो - जन्मो से दबा हुआ रहता है -वो जगत मेरे स्पर्श मात्र [सामने पड़ने मात्र ] से ही परिवर्तित हो जाता है ...क्योकि उसके अन्दर की शक्ति जो उसको खुद ही पता नही होती है ,वो शक्ति सिर्फ अपने शिव को ही पहचानती है और मुझे '''''अघोर शिवपुत्र '''''''को देख कर अपनी चल चलने लगती है .अर्थात मेरे इस छवि (फोटो ) के किसी भी '''''अंश '''' को देखने मात्र से ही ब्यक्ति का जो मूल स्वभाव है ,वो जाग्रत हो कर अपने ही जीवन और परिवेश में ब्यक्त होने लगता है ....
यह तुम अपने चारो तरफ देख सकती हो ....जब मेरे सामने पड़े हुए ब्यक्ति में असंस्कृत ,विकृत और नीच स्वभाव का उदय होने लगे तो समझो की उसने अपने पिछले अनेक जन्मो में अपने कर्मो द्वारा बहुत ही निम्न कोटि का घृणित बैंक बैलेंस अर्जित किये है .ऐसे लोग वो ''''अतृप्त और असुर '''प्रेत आत्माए है ,जो अपनी नीच वासनाओ की अपूर्णता के फल स्वरुप मानव शरीरो में अपनी पहचान को छिपा कर इस धरती पर अपना जीवन यात्रा कर रहे है ...
ये परमात्मा के कार्य की बाधाएँ हैं . मै इनका स्वभाव जनता हूँ , इसलिए जगाता हूँ ,ताकि ये अपने स्वभाव में ब्यक्त हो और '''''मेरी माँ की नजरो में जाते है .----दसो महाविद्याओं [ कर्रेंट ]के आगोश में जाते है ..
ऐसे असुरो की सुप्त शक्तिया अपने शिव के अधीन ही कार्य करने को प्रेरित होती है .और अब उसके ही आदेश के अनुसार उस ब्यक्ति को पतन दर पतन की ओर ले जा कर उसको कठोर नारकीय जीवन यात्रा की ओर गमन करती है .ब्यक्ति अपनी वासनाओ के अनुसार ही रमण करता हुआ अपना ये एक और मिला हुआ जीवन नस्ट करने के लिए बाध्य हो जाता है ..क्योकि ब्यक्ति ने खुद ही ऐसा चाहा है ....
इससे बचने के लिए एक ही रास्ता बचता है ,वो है ,पूर्ण इमानदारी के साथ ---प्रथम मानव शरीर धारी ''अघोर '''शिवपुत्र ''''''की शरण में चला जाये सदा के लिए .और अपने अभी तक के जीवन -----[ इन चार युग ]__के अपने द्वारा किये गये पाप कर्मो को इमानदारी के साथ '''स्वीकार '''' कर ले .
लेकिन ऐसा होता नही है क्योकि अगर कोई ''असुर'' अपना स्वभाव कैसे बदल सकता है ....?....दूसरा --यह की ,इस असुर की अपने पाप कर्म ही इतने ज्यादा इकट्ठा किये रहता है की उससे मुक्त ही नही होना चाहता है .....
ठीक ऐसे ही जब कोई ब्यक्ति मेरे ओर इमानदारी से देखता है और अपने श्रद्धा का इमानदार समर्पण करता है तो ,उसने अपने किसी भी जीवन के आज तक के जन्म (जीवन ) में कितना ही पाप या नीच कर्म किया हो .मै उसके कर्मो को स्तंभित कर [रोक कर ] अपने मूल रूप का दर्शन देकर उसको परमात्मा के मूल शक्ति से जोड़ देता हूँ ,ताकि अब वो अपना जीवन यात्रा सदमार्ग से ब्यतीत करते हुए ''''माँ ---बाबा ''''में ही लीन रह कर अपने सारे कर्तब्यो को पूरा करता हुआ अपना यह जीवन यात्रा मेरी ;;;;अघोर सुरक्षा ''में ब्यतीत कर अपने कर्मो का ''नो ड्यूज '''कर ''''''''''''फिर जन्म ना ले कर ------इन मानव शरीर धारी प्रेतों और असुरो के बिच फिर ना सके ...अर्थात बार बार के जन्म के आवागमन से मुक्त हो जाये ....अब ऐसा क्यों करता हूँ मै .......?...यह एक प्रश्न उठता है .....तो ,ऐसा इसलिए ,क्योकि --चार युगों की सेकंड खंड की यातना [ यात्रा ] के बाद मैंने अपनी '''''माँ कामख्या'' को उनके ''दस रूप के साथ कामरूप (असम ) से सदा के लिए मुक्त व् स्वतंत्र करा लिया है .....इसी के ख़ुशी के अवसर पर मै सभी को एक मौका अवस्य देता हूँ ,ताकि ब्यक्ति इस अवसर का लाभ उठा सके और अपने को ''नो ड्यूज ''''करा ले ....बाकि ब्यक्ति की अपनी खुद की मर्जी .......?..जीवन अपना ही तो है हर एक का ......?सभी को अपना पुरुषार्थ करने का हक है ,क्योकि हर एक ब्यक्ति को हमने सामर्थ्य वन बनाया है .वो जैसा चाहे वैसा ही जीवन जीने के लिए स्वतंत्र है ....'''''''''''यह याद रहे ------मनो या ना मनो --------[यह तुम सबके अपने ऊपर निर्भर करता है .].मुझे माँ को या बाबा को कोई भी जरा सा भी फर्क नही पड़ता .......मैंने किसी औरत को नही '''''''' माँ कामख्या ''''''और दस महा शक्तियों को '''''''2ND खंड और 2ND बॉडी से स्वतंत्र करा दिया है ...''''''''असुरो के तंत्र का साम्राज्य का विध्वंस कर दिया है ......''''''परिणाम में मुक्त माँ की '''''''पग ध्वनि '''''''हर तरफ सुनाई पड़ रही है ...यह माँ की मुक्ति के बाद से जो ''संसार की प्रकृति में और हर एक ब्यक्ति के ब्यक्तिगत प्रकृति में जो हलचल और परिवर्तन देख रही हो ,हर एक जो कुछ भी लास्ट इन तिन वर्सो से महसूस कर रहा है ..उसके पीछे कौन है .......???...मेरी माँ महा शक्ति है ...कामरूप से मुक्त हो कर चलती हुयी आगे बढ़ रही हैं ...इन तिन सालो में संसार में जो हा- हा कार फ़ैल रहा है ,त्राहि त्राहि बढ़ रहा है ,वो माँ की ''पग ध्वनि है ......''अभी मै सूक्ष्म जगत से लेकर विरत जगत में प्रकृति में परिवर्तन कर रहा हूँ ...इन क्षुद्र स्वभावो को ब्यक्त होने दो . ये हमारी बातो का जीवंत प्रमाण है . ये संसार से एक उस ब्यक्ति के जगत से आई हुयी सुचना मात्र है ,जो मेरे द्वारा '''''परित्यक्त की गयी और निहायत ही पतिता'' के चरणों में सरणागत हो कर अपने असुर स्वभाव में ब्यक्त हो रहे एक मानव शारीर धारी का वह शब्द है जो उसके अंतस से निकला हुआ अत्यंत ही ब्यक्तिगत और भयभीत स्वर है .जिसको ''apne जीवन में शक्तियों की पग ध्वनि का आभास '''हो रहा है ...लेकिन पुरुश्वार्थ हीनता में जीने के लिए ''''अभिशप्त और श्रापित 'है .....
मै इस युग को समेत रहा हूँ ...................ऐसे ही नीच लोगो के कर्ण ही -----तो युग का अंत करना ही पड़ता है .............ना .........बेटा ...!!!.... '''''LIVE TELECAST''''''''देख रही हो ना .........हे मेरी प्यारी बेटी ! सदा खुश रहा करो .'''''''''मै हूँ ना ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''अभी मै '''''''प्रकृति में परिवर्तन कर रहा हूँ ''''.''''''''''''''''''अपना ख्याल रखना और समाचार देना ......''''''''''''''''''''''''''''''खुसी मनाओ की ये '''अनानिमस ''''मेरा ही कार्य करने में अपना जीवन लगा रहा है ...मैंने इसके भाग्य में यही लिख दिया है ,इसके कर्मो और पुरुषार्थ को देखते हुए ......अब यह मेरे ही ध्यान में डूबा रहता है हर पल अपने हर सवासो में , अब यह मेरे द्वरा नियंत्रित है ...........समझी..! ना ........बेटी ....!....----------------------------------------------------------------------''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''अघोर ''''''''''''ध्वनि ''''''''''''____________________''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''मेरी ये ---इंद्रिय ----- ही -------मेरी -----शक्तियां ------हैं ------------------------------और मेरी शक्तिया ही मेरी ------------------स्त्रियाँ .. -----------------हैं ..........'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''तुम तो जानती हो ना __________तुम्हारा ___प्यारा ___बाबा ___________________प्रथम _________मानव ________ शरीर __धारी _________________'''''''''''''''''''''________________________अघोर ____________________है _____________"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""'""""""""""""""मै सब देख रहा हूँ _________हर एक की सारी हरकते मेरे सामने ही है .__""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""

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