Friday, April 13, 2012

“माँ कामाख्या” की शंख ध्वनि न सुनने से “मूल प्राकृतिक शक्तियां” क्रुद्ध और उग्र होती जा रही हैं।





“माँ कामाख्या” (सती─भगवान् शिव की प्रथम अर्धनारी, शक्ति) की शंख ध्वनि न सुनने से “मूल प्राकृतिक शक्तियां” (दसों महाविद्द्याएं─माँ कामाख्या के दस रूप) क्रुद्ध और उग्र होती जा रही हैं।

सावधान ! सावधान !! सावधान !!!

हम पूर्व नियोजित कार्यक्रम अनुसार हैदराबाद (दक्षिण भारत) में अपना अल्प प्रवास पूरा कर 19 मार्च 2012 को ‘जाग्रत त्रिकोण’ के अपने केंद्र पर दिल्ली वापस आ गए।

जगत् में यह अलौकिक अवसर था, जब दूसरी बार जगत् के विधाता “बाबा” शिव अपनी प्रथम अर्धनारी शक्ति सती (कामाख्या) और अपने अघोर पुत्र के साथ धरती ऊपर जाग्रत त्रिकोण के बाहर हैदराबाद गए। इससे पूर्व जैसा कि मैंने हैदराबाद की पिछली यात्रा पर जाते समय मानव समाज को सूचित किया था, उसी प्रकार इस बार भी धरती के ध्रुवीय संतुलन पर झटका पड़ना ही था।

जाड़े के दिनों में कुछ समय के लिए की गई उस यात्रा से धरती पर काफी विशाल क्षेत्र बर्फ के आगोश में ढक कर सफेद चादर ओढ़े रहा। जो की आप सभी ने अपनी आँखों से देखा और स्वयं साक्षी भी बने। इसी तरह इस बार की यात्रा के उपरांत् भी कुछ विशेष प्राकृतिक घटनाक्रम अचानक घटित होने की संभावना बनने लगी थी।

वापस आने के दूसरे दिन 20 मार्च 2012 को अचानक ‘अघोर शिवपुत्र’ के स्थूल शरीर का स्वास्थ गंभीर रूप से बिगड़ने लगा।

अभी सम्हला भी नहीं था कि अगले दिन प्रात: काल से ही माँ कामाख्या ( सती के स्थूल मानव शरीर का.. ) का स्वास्थ्य भी बहुत गंभीर हो गया और निरंतर बिगड़ती दशा में उन्हें गहन चिकित्सा के लिए दिल्ली के एक प्रसिद्द प्राइवेट हास्पिटल में दाखिल करवाना पड़ा।

चिकित्सकों के समूह ने अत्यंत कठिन प्रयास से उन्हें सम्हालने में सफलता प्राप्त की, परन्तु लम्बे समय (लगभग 18 दिन) तक उन्हें अपने बिस्तर पर ही व्यतीत करना पड़ा। अभी भी उन्हें काफी कमजोरी है और औषधि चल रहा है।

इसी मध्य 23 मार्च 2012 से नवरात्र प्रारंभ हो गया, और हम लोग स्थूल कर्मकान्डिय पूजन से दूर रहे, कारण कि ‘अघोर शिवपुत्र’ पूरी तरह अपनी माँ कामाख्या की स्थूल शरीर की देख भालभाल में इतना मशगुल हो गए कि उन्हें बाहरी दुनिया की जरा सा भी होश नहीं रहा।

एक तरफ अघोर शिवपुत्र पहले से ही जहर के प्रभाव से जन्मे दुस्प्रभाव के कारण कुछ समय से शंख ध्वनि नहीं कर रहे थे, और अब स्थूल मानव शरीरधारी माँ सती (माँ कामाख्या) भी शंख ध्वनि करने में असमर्थ थीं, वहीँ दूसरी ओर पूरे नवरात्र “शिवपुत्र एक मिशन” ..अर्थात्…. “जाग्रत त्रिकोण के एक केंद्र दिल्ली” पर शंख ध्वनि नहीं हो सकी।

अपनी अस्वस्थता के कारण पहले शिवपुत्र ….और.. अब माँ कामाख्या के द्वारा मध्य दिन में की जा रही शंख ध्वनि अभी तक पूरी तरह बाधित है।

अचानक घटित इस अघटित घटना के बारे में अघोर शिवपुत्र रूचि दीदी के साथ वार्ता ही कर रहे थे कि एक दिन बोल पड़े—

“मैं प्रकृति में किसी बड़े घटना के घटित होने का इंतजार कर रहा हूँ। पूर्व दिशा से कुछ समाचार आना चाहिए।”

माँ के स्थूल शरीर के अस्वस्थ्य होने और जाग्रत त्रिकोण से शंख ध्वनि के निरंतर बाधित रहने से माँ की मूल प्राकृतिक शक्तियां निरंतर क्रुद्ध और आक्रोशित हो धरती के उपरी सतह पर भारत के पूर्वी क्षेत्र में प्राकृतिक तत्त्व अपनी रौद्रता निरंतर प्रकट कर रही थी, जिससे बंगाल क्षेत्र में असमय निरंतर आंधी, तूफान का आना बढ़ता ही जा रहा था कि माँ की मूल शक्तियां धरती के अन्दर की स्थिति को झकझोड़ने लगी और कल दिन में भारत के पूर्वी क्षेत्र इंडोनेशिया में 8 .7 तीव्रता का भयानक भूकंप आ गया।

यह स्मरण रहे कि पिछले वर्ष हिमालय से ”बाबा”… श्री केदारनाथ जी.. के मंदिर का कपाट खुलने के साथ ही जाग्रत त्रिकोण के अपने दिल्ली वाले केंद्र पर यहाँ आए हुए हैं और अभी यहीं हैं। जहाँ पर बाबा ने अपनी देखरेख में ”माँ सती-कामाख्या” को ठहरने के लिए एक छोटे से स्थान का निर्माण करवाया है और अपने पुत्र …….(प्रथम मानव शरीरधारी ‘अघोर’) को उनकी सुरक्षा व् देखभाल की अभेद्य जिम्मेदारी सौंपी है।

इस वर्ष 28 मार्च 2012 को हिमालय में बाबा केदारनाथ जी के मंदिर का कपाट हर वर्ष की माफिक परम्परागत् रूप से खुलेगा लेकिन बाबा केदारनाथ अपनी शक्ति सती माँ कामाख्या और शिवपुत्र के संग धरती पर हिमालय से नीचे ही रहेंगे।

अभी बाबा का आदेश धरती के बिगड़ते संतुलन को नियंत्रित करने के लिए है। इसके निमित्त हमें (अघोर शिवपुत्र और माँ कामाख्या को) शीघ्र ही भारत के पूर्वी क्षेत्र में जाने का आदेश मिला है।

पहले हम दिल्ली से आग्नेय दिशा में जाकर, फिर वहां से पूर्वी दिशा में स्थित बंगाल क्षेत्र में प्रवेश करेंगे।

इस योजना के तहत धरती पर एक अस्थाई त्रिकोण, दिल्ली केंद्र से निर्मित हुआ है, जो जमशेदपुर (टाटा नगर) होते हुए कोलकाता से जुड़ा है।

माँ कामाख्या और अघोर शिवपुत्र का स्थूल शरीर अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं है, पर जगत् की रक्षा और प्रकृति की संतुलन के लिए के लिए बाबा के आदेश पर हमें अपना यह मिशन किसी भी हद तक जाकर सफलता पूर्वक संपन्न करना ही है, क्योंकि माँ की मूल शक्तियां प्राकृतिक जगत् में प्रचंड रूप से उग्र होती जा रही हैं।

यह सूचना मानव कल्याण के लिए एक सन्देश मात्र है।

आगे अपनी निगाहे यदि खुली और ध्यान पूर्वक चौकन्नी रखी जाएँ, तो प्रकृति में हो रही रही हलचलों को सहजता से देखी-सुनी और समझी जा सकती हैं।

…..यह घटना क्रम …..

……...जगत के विधाता और आदि पुरुष शिव तथा आदि माता सती कामाख्या की अपने पुत्र के साथ इस धरती पर जीवित सशरीर उपस्थिति का प्रमाण है……कि….हम सब जाग्रत हैं और धरती पर चल फिर रहे हैं।

आप सबको प्यार और धन्यवाद् कि ”परमात्मा के इस अलौकिक उपस्थिति का साक्षी आप सभी मानव और जीव बन रहे हैं”।

”अघोर शिवपुत्र”

www.shivputraekmission.org