Monday, August 2, 2010

....''प्रकृति में ''मूल तत्वों'' का प्रकोप,उग्रता और प्रहार बढ़ रहा है''...

.''...........और हम लोग { मै, रूचि और कुमार } काशी क्षेत्र में -मऊ से अपना त्रिशूल लेने चल दिए.
हम अपने ही जाग्रत त्रिकोण के एक अन्य एंगल [ कोण ]की ओर यात्रा पर चल दिए.मौसम बिज्ञान की भविष्यवाणियाँ फेल हो रही थी.प्रकृति में परिवर्तन करने के लिए मै शक्तियों के साथ दिल्ली से काशी के लिए निकल चला था.
मुझे बंधन में पड़े हुए अपने ''बाबा '' के त्रिशूल को मुक्त करना था.और धरती के बिध्युतिया मैग्नेटिक फिल्ड को भी चेक करना था....लम्बे सूखे के बाद भयानक बारिश प्रारंभ हो चूका था. रात भर चलता रहा पुरे रास्ते,इलाहाबाद तक ...इलाहाबाद से थोडा रास्ते तक ही बारिस थी.आगे सारे रास्ते एक दम सुखा पड़ा हुआ था. दुसरे दिन शाम को हम लोग कार द्वारा मऊ पहुंचे और अपने घर से अपनी { बाबा की अपनी शक्ति} त्रिशूल को लेकर वापस दिल्ली की ओर चल पड़े. ०९ जुलाई की शाम को रात दस १० बजे.. ........
09 / 10 दस तारीख को प्रातः {रात में } 2 am पर NH -2 पर हमारी कार का एक्सीडेंट हो गया..
कार बुरी तरह छति ग्रस्त हो गया.हम तीनो लोगो को जरा सा भी चोट नही आया.बस हल्का सा दीदी को और कुमार को लगा....
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हम पर सेकण्ड खंड का भयानक हमला हुआ था.
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हम त्रिशूल लेकर काशी क्षेत्र से बाहर निकल रहे थे.
..सेकण्ड खंड के सामूहिक और छल से किये गये प्रहार से हम सुरक्षित बच गये थे..पर मेरा पुत्र समान कार बुरी तरह छतिग्रस्त हो गया .......
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.....जबसे हमने माँ कामख्या और दसो माँ के रूपों को आसाम से मुक्त करा कर सुप्त पड़े हुए अधोमुखी त्रिकोण को जाग्रत परिवर्तित कर उर्ध्मुखी त्रिकोण के रूप में स्थापित किया है.प्रकृति में परिवर्तन तभी से प्रारंभ हो गया है.अब प्राकृतिक शक्तिया अपना स्थान परिवर्तन करने लगी हैं.
.........पिछले साल 01 सेप्टेम्बर 2009 को केदार नाथ से निचे आते समय ऊखी मठ [ उत्तराखंड ] में पुजारी के यहाँ खाने में मुझे जहर की रोटी खिलाई गयी थी.तो
धरती की प्रकृति में तत्वों में आपसी टकराहट तथा उग्रता बढ़ गयी थी.मेरी माताये जो मूल तत्वों के द्वारा प्रकृति की आधार भुत शक्तिया हैं.उन्होंने जगत में अपनी उग्रता ब्यक्त करनी प्रारंभ कर दिया था.जहर के परिणाम से मेरे शरीर में बिस्फोट हो रहा था और मेरे अस्तित्व में स्थित चक्रों में उस बिस्फोट से तत्वों में बिस्फोट होने लगा था.
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''''मेरे शरीरस्थ चक्र अपने विराट अस्तित्व में मेरे पिता श्री ''बाबा जी ''परमात्मा शिव के साथ सतत युक्त होने से मेरे चक्रों की किसी भी क्रिया का असर प्रकृति में होने लगता है.''

...प्रक्रति तत्वों द्वारा ब्यक्त होता है .यह तत्व ही जगत के मूल आधार है जिससे दृश्य और सम्पूर्ण जगत साकार होकर ब्यक्त होता है...
.अतः ,
मेरे चक्रों में बिस्फोट के परिणाम स्वरुप .....
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..पृथ्वी तत्व .......
..............जल तत्व .......
...............अग्नि तत्व और वायु तत्व उग्र हो कर धरती पर तांडव करने लगे .जिसके संतुलन के लिए मुझे अपने वर्तमान स्थान दिल्ली से पश्चिम गुजरात की तरफ जाना पड़ा.और मेरे जाते ही दिल्ली में एक सप्ताह के अन्दर ४ / ५ भूकंप के झटके आये.जैसा की मैंने किसी स्थान पर बतलाया है कि मेरे चलने से धरती में कम्पन बढ़ जाता है और प्रकृति में परिवर्तन की प्रक्रिया बढ़ जाती है....और फिर मुझे इंदौर से होकर बोम्बे जाना पड़ा ..क्योकि संतुलन के इस खेल में जल तत्व का भयानक हमला भारत के समुद्री क्षेत्र से महारास्ट्र और गुजरात पर होने वाला है.. मेरे उधर जाने से सब कुछ शांत हो जाता है...और आधुनिक बिज्ञान की मौसम के प्रति की गयी भविष्य वाणियाँ और अनुमान फेल हो जाती है.
उसके बाद दिसंबर २००९ और जनवरी २०१० में मैंने '''माँ कामख्या '' की तिन मूल शक्तियों...... ''माँ काली...माँ तारा ....और ...माँ छिन्नमस्ता '' को भी मुक्त करा लिया.....
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.......अब इस घटना से जो 09 / 10 जुलाई को NH -- 2 पर ,रात 2 बजे, 2nd खंड का हमला हमारे ऊपर हुआ.
सके परिणाम स्वरुप प्रकृति के मूल तत्व उग्र हो रहे है और सारी धरती पर अपनी उग्रता का प्रदर्शन करने लगे है....

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..चुकी मै अपने ही जाग्रत त्रिकोण के समानांतर मार्ग पर यात्रा कर रहा था,इसलिए इसका दबाव धरती के निचे निर्मित अधोमुखी त्रिकोण पर पड़ेगा और इससे सम्बंधित ''''चीन .....पाकिस्तान......अमेरिका [ आदि ] देशो सहित सारे धरती पर तत्वों के क्रोध का ,तत्वों की उग्रता का प्रदर्शन होना प्रारंभ हो गया है...
........जैसा की पिछले साल से ही हो रहा है.अब यह सारी धरती पर बढ़ता ही जा रहा है.
.....
ऐसा ही परमात्मा का आदेश है..माताएं इस तरह की आघातों को सहन नही करेंगी इससे शक्तियों में उग्रता बढेगा ही बढेगा...
...जब जिस तत्व की प्रधानता होगी ,उस तत्व की उग्रता और प्रहारकता इस प्रकृति में धरती पर चारो तरफ प्रकट होगी.यह प्रकृति में परिवर्तन का ही हिस्सा है.....जैसे .....
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..बरसात में जल तत्व ,भयानक और उग्र प्रदर्शन करते हुए प्रहारक भाव में आएगी...
.....
.गर्मी के दिनों में ....अग्नि तत्व अपना उग्र प्रदर्शन करते हुए अपनी जीवन्तता का आभास कराएगा.ताप और गर्मी तथा भीषण अग्नि के द्वारा अपना क्रोध ''सूर्य '' प्रदर्शित करेगा...
.ऐसे ही जाड़े के दिनों में धरती को अपनी वायु और जल के घोर प्रदर्शन का सामना करना ही पड़ेगा.बर्फबारी,हिमपात और अति वृष्टि से ठंडक हाहाकार फैलाएगा...
पिछले ३-४ साल से समुद्र धरती पर प्रहार कर रहा है,जिससे भारत की रक्षा तो मै ही कर रहा हूँ.
सेकण्ड खंड के इस तरह से किसी भी हरकत का जो मेरे ऊपर घात के रूप में होगा,उसके बदले में मेरी माताएं ,ये मुक्त व् स्वतंत्र शक्तिया उग्रता से अपनी पग ध्वनि इस जगत में प्रमाणित करेंगी....
यह संसार के मानव समाज के जीवन में बिध्वंस , तत्वों के विघटन और आपसी टकराहट के रूप में बढ़ता ही जा रहा है.
फिर भी मै धरती को बचाने की कोशिश कर रहा हूँ.
.......बहुत जल्द ही मै इस जाग्रत त्रिकोण के क्रियाशीलता और और स्थान परिवर्तन के फल स्वरुप उत्पन्न स्थितियों के जाँच परख के लिए फिर जल्द ही दिल्ली से बाहर निकलूँगा.देखता हूँ कि क्या होता है...?
मेरे दिल्ली से बाहर जाने पर.धरती पर मेरे चलने फिरने से प्रकृति में परिवर्तन होता है. और धरती का केंद्रीय संतुलन प्रभावित होता है.
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.....''पाकिस्तान ---चीन -----अमेरिका {मित्र देशो सहित } सारे धरती की प्रकृति में प्राकृतिक मूल तत्वों के प्रदर्शन का आप हम सभी साक्षी और गवाह बन रहे है.देखते रहिये........
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.यह मजाक का विषय नही है.बल्कि होश में आने का समय है...
.....
...प्रथम मानव शरीर धारी अघोर का कार्य प्रारंभ हो चूका है...
......
.यही माताओ ,मूल शक्तियों का मूल प्रमाण भी है....
....यही प्रमाण तो जगत मांगता है,बार- बार मुझसे.

मेरे शरीर में या शरीर पर जब भी आघात होगा तो धरती पर प्रकृति में भी आघात ,बिस्फोट और बिध्वंस होगा.
पिछले वर्सो से यह प्रमाणित होता ही जा रहा है.यह लगातार बढ़ता ही जा रहा है.
........सेकण्ड खंड सुधरने के लिए तैयार नही है और इन्हे सुधरने और समझाने के लिए शिवपुत्र के पास समय नही है.
हमे धरती को बचाना है भले ही 2nd खंड के शरीरधारियो को कठोरता से दमित ही क्यों न करना पड़े...
विशेष .......
......................लगभग 8 -10 दिनों पूर्व ..
....''बाबा'' का दो रूप [शरीर ] हिमालय से वापस यहाँ निचे आ गया है...एक उत्तर पश्चिमी भारतीय सीमा ,अमरनाथ जी की तरफ से.दूसरा भारत के उत्तर हिमालय कैलाश की ओर से ....
.....चीन की ओर से कुछ प्रहार आ रहा था.जिसे भारतीय सीमा पर हिमालय के उस तरफ ही रोक दिया गया है.पूरा समाचार नही मिल पा रहा है ,समाचार माध्यम से, कि, 'हिमालय के उस तरफ क्या हो रहा है....?
लेकिन
उत्तर में हिमालय क्षेत्र के उस पार कुछ हो रहा है.जल्दी ही प्रकृति से समाचार आ जायेगा....
.....मेरी बातो को आप माने या न माने आपकी मर्जी....
परमात्मा का कार्य सदा से ही चलता रहता है.रोकने पर रुकता नही .
मानवीय क्षमता / साइंस अभी उतना समर्थ नही प्राप्त कर सका है.आगे -२ देखते रहिये,खुद ही समझ में आ जायेगा.क्या जल्दी है...?
अघोर शिवपुत्र मजाक का विषय नही है..
अपनी सुरक्षा के लिए इस प्रथम मानव शरीर धारी ''अघोर'' को सम्हाल कर सम्मान के साथ सुरक्षित रखिये.अपने- अपने जगत में.
आत्म रक्षा के लिए अघोर शिवपुत्र का ध्यान कीजिये.घटनाये खुद गवाही देंगी.प्राकृतिक हलचलों को देखते रहिये ..
.........'''''अघोर शिवपुत्र ''''........

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