''इस बार हिमालय में बाबा केदारनाथ जी की यात्रा.अब बाबा यहाँ हैं,वहां मंदिर में नही.''
तारीख..12 मई .2011 ..
'''जैसा की पिता श्री ''बाबा केदारनाथ जी'' का इक्षा था.की, ''मै'' इस बार मंदिर का कपाट खुलने के पूर्व ही केदारनाथ मंदिर क्षेत्र ,हिमालय में पहुँच जाऊ..''
इस बार 08 मई 2011 को मंदिर का कपाट खुलने का दिन मंदिर कमेटी द्वारा निश्चित किया था.
रूचि दीदी का स्वास्थ लगभग 8 -10 दिनों से ठीक नही चल रहा था.मै महीनो से ही सदा की तरह अपने समाधि भाव में ही स्थित रहा करता था.यहाँ दिल्ली में गर्मी बढती ही जा रहा थी .और उधर केदारनाथ क्षेत्र में लगातार रुक-रुक कर बर्फ गिरने से मौसम ख़राब होता जा रहा था.ऐसा गुप्त काशी से अमित ने फोन करके बतलाया था...
पर ,मिशन का कार्य कभी रुका है क्या..?..
''''विपरीत परिस्थितियों में ही अपने कार्य को सफलता से सम्पादित कर लेना ही तो ''शिवपुत्र;; का स्वभाव और मिशन का कार्य है.''
सदा की तरह ही दीदी ने अपने साहस से मेरा कार्य सरल कर दिया........
''''' पापा..!...बाबा का आदेश है,कुछ विशेष प्रक्रिया आपको करनी है केदारनाथ में जाकर.इसमे मेरे स्वस्थ का चिंता मत कीजिये.मै बिलकुल ठीक हूँ.आप अपने हिसाब से ठीक समय पर ही यहाँ से निकलिए.कार्य जरूरी है....आप अपने कार्य की तरफ ध्यान दीजिये.बाबा का कार्य जरूरी है..मै समझ नही पा रही,पर आप तो जानते हैं ना सब कुछ.ऐसा मुझे लगता है की आप केदारनाथ जी में जाकर अपना प्रक्रिया करके तुरंत ही वापस आ जायेंगे.इस बार वहां रुकने देने का मन बाबा का नही है.सीधे वापस आश्रम अपने आसन पर आपको आना है.बाकि तो आप और बाबा ही जानते हैं.'''''
.........अस्वस्थता के बावजूद भी दीदी ने चलने की मंजूरी दे दी.मै उसकी तरफ से थोडा उलझन में था.सड़क मार्ग दुर्गम पहाड़ी और कठिन है,केदारनाथ तक का.इसलिए मै चाहता था की दीदी सहमती दे दे तभी निकलूंगा.वैसे मैंने अपना दोनों कार तैयार करवा रखा था....
दीदी की सहमती मिलते ही हम लोग ( मै और दीदी) केदारनाथ जी मंदिर क्षेत्र के लिए हिमालय की ओर बढ़ चले.04 मई 2011 को प्रात: लगभग 8 .30 /09 .00 बजे हम लोग अपने आसन दिल्ली ( आश्रम) से निकल पड़े.रास्ते के सामान की तैयारी दीदी ने पहले ही कर रखी थी.शाम से पहले ही हम लोग हरिद्वार पहुँच गये और आराम करने के लिए धर्मशाल में कमरा लिया.अब दुसरे दिन की यात्रा हरिद्वार से गुप्त काशी के लिए करनी थी.कुछ अन्य जरूरी सामान और दवाइयां लेकर हम लोग दुसरे दिन 05 मई को हरिद्वार से निकल पड़े आगे की दुर्गम चढ़ाई वाली पहाड़ी यात्रा के लिए..
अगस्त मुनि में राजपाल रावत जी के यहाँ कुछ क्षण विश्राम करने के बाद हम लोग गुप्त काशी के लिए निकल पड़े रास्ते में भीरी में नीरू ( अमित का छोटा भाई नीरज) आ गया था.शाम होने के पूर्व ही हम लोग गुप्त काशी पहुँच गए.अनिल के पिता जी दुकान पर थे उनके घर पर ही हम लोगो के रात्री विश्राम की ब्यवस्था की गयी.रास्ते में भीषण बरसात का सामना करना पड़ा.मेरी कार और सड़क अपने आप बारिश में धुल गया.
उधर भगवान श्री केदारनाथ जी की डोली यात्रा उखीमठ ( जहाँ शेष छ: महीने बाबा की पूजा आदि मंदिर का कपाट बंद होने के बाद होती है.क्योकि दीपावली के बाद पड़ने वाले द्वितीया तिथि को अगले छ: महीने के लिए मंदिर का कपाट बंद कर दिया जाता है,आम भक्तो व् यात्रियों के लिए.)से निकल चुकी थी.दुसरे दिन अमित भी आ गया अब आगे की यात्रा के साथ-साथ करनी थी.06 मई को हम अर्थात अमित व् दीदी के साथ गौरी कुण्ड के लिए निकल पड़े.
रास्ते में फाटा से आगे कुछ दूर गौरी कुण्ड से काफी पहले ही,फाटा गौरी कुण्ड के बीच पड़ने वाले ''बढासु'' गाँव के पास में बाबा की पालकी जाती हुयी हमे मिली.जैसा की मैंने पहले ही अपने इस बार के मिशन के कार्य का संकेत करते हुए दीदी को बतला दिया था की इस बार मुख्य पुजारी के रूप में वही पुजारी नियुक्त होगा जिसने 01 सितम्बर 2009 को अपने घर पर ''शिवपुत्र'' को रोटी में भयानक बिष मिला कर खिलाया था.दूर से ही उसको हम लोगो ने देख लिया.आगे मेरी कार चल रही थी और पीछे मेरे अमित की गाड़ी.
पालकी के साथ अनेक साधू ,मंदिर कमिटी से नियुक्त सहायक पुजारी और कर्मचारियों के साथ अनेक भक्त गण पैदल साथ-साथ चल रहे थे.
जैसे ही हम लोग पालकी के पास पहुंचे,वैसे ही बाबा अपनी डोली से,पालकी से निकल कर हमारी कार में आकर बैठ गये .
.तारीख था 06 मई 2011 ...समय दोपहर के बाद का...
दीदी चौंकी ..! ..अपने पिछले सिट पर बाबा को पालकी से निकल कर बैठते हुए देख कर....और विस्मृत होकर बोल पड़ी..
''अच्छा..!..तो पापा यह बात है .बाबा आपके साथ जाना चाहते हैं डोली के साथ नही.बाबा तो यहाँ कार में आकर बैठ गये.और यह तो वही पुजारी है.आपने तो कहा ही था की इस बार वही पुजारी रहेगा केदारनाथ में मुख्य पुजारी के पद पर.'''
मैंने बोला ....''गंभीरता से चौकन्नी होकर चुपचाप सब देखती रहो और जो कुछ भी हो रहा है मुझे सब बताती रहो.होशियार रहो.किसी से कुछ ना कहना,जब तक की हम लोग इस बार केदारनाथ क्षेत्र में हैं.''
अब हमारे गाड़ी में मै ,दीदी और बाबा थे.बाबा अब हमारे पास अपनी उस डोली से निकल कर आ गये थे.जिसका मुख्य पुजारी वह था,जिसने बाबा के बेटे की हत्या की थी.अब बाबा हमारे साथ,अपने बेटे के साथ चल रहे थे न की डोली के साथ.हम लोग थोड़ी देर में गौरी कुण्ड पहुँच गये.
गौरी कुण्ड में हम लोग राजपाल जी की दुकान पर विश्राम करने लगे.कार निचे की पार्किंग में छोड़ दिया.अमित हमारे लिए आगे की पहाड़ी चढ़ाई वाले रास्ते के लिए खच्चरों का इंतजाम करने में ब्यस्त हो गया.अभी यात्रा शुरू नही होने से खच्चरों का अभाव था.दोपहर भी हो गया था.मुझे अपनी बेटी के साथ कैसे भी आज ही केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में पहुच जाना था.आगे मौसम भी ख़राब होता जा रहा था...
किसी भी तरह मुह मांगे दामो पर दो खच्चरों की ब्यवस्था हो सकी.क्योकि सारे खच्चर सुबह से ही पंडा लोगो और दुकानदारो का सामान ढ़ोने में लगे हुए थे.यात्रा की तैयारी में सभी अपनी-अपनी ब्यवस्था सुदृढ़ करने में लगे हुए थे.
फिर वापस आने का वादा लेकर राजपाल जी ने हम लोगो को आगे की यात्रा के लिये बिदा किया.हमारे साथ दो पंडा और थे.जिससे सुनसान रास्ते में थोडा सरल हो जाता है.रामबाड़ा पहुँचते -पहुँचते लगभग चार बज गये थे.जैसे ही हम लोग रामबाड़ा से आगे बढे अचानक बिगड़ते मौसम ने भयानक रूप लेना प्रारंभ कर दिया..बारिस शुरू हो गयी.जो धीरे-धीरे बर्फीले तूफान के रूप में परिवर्तित हो गया.तेज हवाओं और बर्फीले तूफान ने रास्ता और यात्रा और ज्यादा दुर्गम बना दिया.हम लोग उपरसे निचे तक पूरी तरह भीग चुके थे.अचानक हमारे सामने के दोनों खच्चर इस तूफान में अपना संतुलन खो दिए और बिदक गये और भागते हुए दिशाहीन होकर गिर पड़े.जिससे उसपर बैठे यात्री घायल हो गये..
हिमालय की दुर्गमता और प्रकृति की विपरीत असमान्य स्थितियां मुझे अत्यंत प्रिय हैं और मुझे अपनी ओर खींचती हैं.इससे मै यह महसूस करता हूँ की प्रकृति अपने साकार रूप से हमारे मेरे आसपास जीवंत उपस्थित और सक्रिय है.
साथ-साथ दीदी का खच्चर पकड़ कर चलने वाला मजदुर ठंढ में भीगने से कांपने लगा था.दीदी बर्फीली ठंढक से सुन्न हो रही थी.अत: एक उचित व् सुरक्षित स्थान तलाश कर मैंने कुछ समय ठहर कर बर्फीले तूफान के शांत होने का निश्चय किया.संयोग से चाय व् अग्नि की ब्यवस्था हो गयी.जिससे उन दोनों को थोडा रहत मिली..बर्फीले तूफान का वेग थोडा शांत होने पर आगे का शेष यात्रा पूरा करने के लिए पुन: बढ़ चले..
केदारनाथ जी की चढ़ाई की ओर.रास्ते में गरुणचट्टी में पता चला की वहां 27 वर्षो से रहने वाले एक महात्मा रामानंद जी का निधन पिछले जाड़े के मौसम में भयानक बर्फबारी में हो गया था.
हम लोग बाबा के साथ मंदिर की ओर बढ़ते बाद जा रहे थे.
खच्चरों ने भी अपनी थकान भूल कर यात्रा पूरी करने का संकल्प ले लिया था.
शाम को संध्या समय लगभग 6 /6 .30 बजे हम लोग केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में सकुशल पहुँच गये थे.वहा पहले से ही राहुल उपस्थित था,उस दुर्गम मौसम में.उसने मेरा कमरा साफ कर रखा था.गर्म अंगीठी और चाय की ब्यवस्था उसने कर रखा था.दीदी अंगीठी से जैसे चिपक गयी.
और मै आगे की कार्य योजना के लिए बाबा के संग वार्ता में ......
बाबा ने यही आश्रम में ही दीदी को बतला दिया था.की,
''इस बार ज्यादा दिन केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में रुकना नही है.बल्कि जिस विशेष प्रक्रिया को करने के लिए यह ( मेरा बेटा__-तुम्हारा पापा__शिवपुत्र) जा रहा है.उसको पूरा करके सीधे वापस यहीं दिल्ली आसन पर वापस आ जाना है.कुछ विशेष प्रक्रिया के तहत केदारनाथ गर्भगृह को यहाँ इस केंद्र से जोड़ना है ...''''
06 मई 2011 को हम केदारनाथ मंदिर खुलने से पूर्व ही पहुँच गये थे अब तीसरे दिन 08 मई को मंदिर का कपाट खुलना था.वैसे अगले दिन 07 मई को मंदिर के कपाट खुलने के पूर्व ही बाबा की उखीमठ से चली हुयी डोली केदारनाथ पहुँच जाती है.और दुसरे दिन बिधि बिधान से मंदिर के कपाट छ: माह तक बंद रहने के पश्चात भक्त जनों के लिए खोल दिए जाते हैं.
दुसरे दिन दोपहर बाद भगवान केदारनाथ बाबा की पालकी गाजे बजे के साथ मंदिर क्षेत्र में पहुंची.साथ में यात्री,साधू व् भक्त नाचते गाते चल रहे थे.और पुजारी खच्चर पर बैठा था.....
मेरे और बाबा के रूचि के साथ केदारनाथ मंदिर क्षेत्र में पहुँचने का तीसरा दिन तारीख 08 मई 2011 सुबह प्रात: से ही वैदिक मंत्रो की ध्वनि उच्चारित होनी प्रारंभ हो गयी.बिधान अनुसार मंदिर का कपाट भक्तो के लिए,जन सामान्य के लिए खोल दिया गया.
मै अपने स्वभाव अनुसार अपना केदारनाथ में स्थित कमंडल लेकर बाबा के गर्भ गृह में ज्योतिर्लिंग पर जल चढाने के लिए दीदी को साथ लेकर मंदिर पहुंचा.पालकी से निकल कर बाबा सशरीर मेरे साथ मेरे कमरे में ही रहने लगे थे.अब आगे कार्य संपादन करना था मुझे.जल ,वानस्पतिक औषधि और अपनी विशिस्ट अघोर मुद्राओं द्वारा बाबा का अभिषेक करके जैसे ही मैंने ज्योतिर्लिंग में देखा.
''एक भयानक और तेज आवाज के साथ एक कठोर बड़ा सा धधकता हुआ अग्नि का गोला निकल कर ज्योतिर्लिंग से मेरे शरीर में समा गया..
दीदी ने देखा और सुना...
''अब आगे के कार्य के लिए दिल्ली स्थित अपने आसन पर पहुँचो.मै वही आसन पर बैठ कर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ.''
और बाबा अपना बिध्युतीय शरीर धारण कर पैदल ही निचे उतरते चले गये.बाबा का आदेश हम लोगो को वापस लौटने का मिल चूका था.
बाबा उसी क्षण दिल्ली में मेरे अघोर आसन पर स्थित हो कर बैठे दिखे.
हमारे जाने के साथ ही रास्ते से ही बाबा हमारे साथ हो गये.जब तक हम वहां रहते हैं.वह उतना देर ही वहां उस क्षेत्र या मंदिर में रहते हैं.
दीदी को दिखा कर बाबा ने मंदिर के गर्भ गृह में हो रहे अशुद्धता व् गंदगी तथा अब्यवस्था से अपनी क्षुब्धता ब्यक्त की.बहुत नाराज थे बाबा.
कपाट खोल दिया गया.पूजा प्रारंभ हो गया था.दूर -दूर से आये बाबा के भक्त और यात्रीगण दर्शन पूजन कर रहे है.08 मई 2011 को रविवार के दिन मंदिर का कपाट खुला.मंगलवार को ऊपर पहाड़ी पर स्थित भैरव जी का पूजन करने के बाद ही बाबा का भोग लगेगा और संध्या आरती होगी.तब तक '' बाबा केदारनाथ जी '' को भूखे ही रखा गया है.और आरती नही की जा रही है.
सभी मंदिर से सम्बंधित,पूजन से सम्बंधित पुजारी,मुख्य पुजारी कर्मचारी और अधिकारी जी भर कर भरपेट खा-पि रहे रहे हैं.मंदिर से कमाई प्रारंभ हो चूका है.पर तब तक भगवान बाबा केदारनाथ जी को न तो कुछ खाने के लिए भोग दिया जायेगा और ना ही उनकी आरती की जाएगी..
यह किस बात की सजा है की उनके नाम पर सभी खा रहे हैं और उनको भूखा रखा जा रहा है.कपाट खोल कर बाबा को भूखा रख कर बाबा का पूजा किया जा रहा है.बाबा चिढ गये हैं.इसलिए अब नही रहना चाहते थे.ऊपर से इन अगले छ: महोनो में वो ब्यक्ति ही पुजारी के रूप में उनका पूजा करेगा और अपना पैर छुअवायेगा .जिसने 01 सितम्बर 2009 को बाबा केदारनाथ के अघोर बेटे शिवपुत्र की हत्या अपने घर पर खाने में जहर खिला कर कर दिया था.
कैसे एक बाप उसके हाथ से पूजा व् भोजन ग्रहण कर सकता है,जो उसके अपने बेटे का हत्यारा हो.?उस पुजारी के साथ जाना और अब उसके रहते उस मंदिर के मुख्य पुजारी के पद पर .बाबा उस क्षेत्र का त्याग करके यहाँ मेरे अपने आसन पर स्थित हो गये हैं.अब न तो मै अकेला हूँ और न ही बाबा.अब हमारे साथ मेरी आदि माँ कामख्या हैं.और हम सबकी प्यारी बेटी मेरी छोटी से दीदी भी है.
अब हमारा परिवार यहाँ पर एक साथ रहता है..
मै और दीदी थोडा टहलने एक लिए दोपहर बाद मंदिर के पीछे पहाड़ो की तरफ गये थे.वहा उपस्थित एक साधू चंद्रागिरी ने हम लोगो का स्वागत किया.व् चाय पिला कर सम्मानित किया.वापस आते समय अचानक उस पुजारी के सामने मै पड़ गया.एकदम से मेरी उपस्थिति से वह हडबडा गया.फिर मैंने ही अपने बातों से उसे सामान्य होने में मदद की..
उसको जो करना था वह कर चूका था.अब तो जो मुझे करना था वह मै कर ही रहा हूँ.बाबा केदारनाथ जी ने अपने पुत्र के हत्यारे से पूजा और भोग लेना त्याग दिया है और बाबा द्वारा त्यागे गये पुजारी द्वारा इस वर्ष अगले छ: महीने तक अब जो पूजा आरती व् भोग लगाया जायेगा,निरर्थक ही रहेगा.और इसका परिणाम भयानक...
जहाँ तक मै समझ पा रहा हूँ.की इस अनैतिक और ब्यभिचारी घटना से इस जगत में निकट भविष्य में जल्द ही कुछ भयानक घटना घटित होगा.पिछले वर्ष की तरह ही धरती ,हिमालय फिर हिलेगा.हिलकर धरती का पुरुष अपनी भाषा बोलेगा. प्रलय की शुरूआती घटना क्रम तो हो ही रही है.अब उसमे भयानक तीव्रता आएगा.
तत्वों के टकराहट और बिध्वन्सक बिस्फोटो के घटनाक्रम बढ़ते जायेंगे.अभी गर्मी का मौसम है .अग्नि तांडव करेगा.आगे बरसात के दिनों में जल अपना प्रचंड रूप लेकर धरती पर उतरेगा और धरती को डुबोयेगा.पर्वत टूटेंगे.बादल फटेंगे .वायु कुपित होकर तीव्र गति से धरती पर रमण करेंगे जिससे चक्रवात,तूफान ,आंधी व् वृस्टी का रेला लग जायेगा.धरती पर जगह-जगह प्राकृतिक आपदाएं आएँगी..
एक हत्यारा पुजारी जब पूजा करेगा,जब पूजा का ढोंग करेगा,तो,परमात्मा बिधाता और क्या करेगा....?
वैसे ऐसा लगता है की मुख्य पुजारी शायद ही अपना इस बार का पूरा पूजा का कार्य काल की नियुक्ति पूर्ण कर पाए..?.
उसके कर्मो का फल सारी धरती को मिलेगा.
यह सब देख कर मूल महाशक्तियां अपना ''युद्धनृत्य''प्रारम्भ करेंगी . .तांडव की मधुर संगीत एक बार पुन: इस धरा पर अपने मूल स्वरों के साथ झंकृत हो सुनाई और दिखलाई देंगी..
हम सब बाबा का ध्यान ,पूजन और घटनाओं का इंतजार करने के अलावा और क्या कर भी सकते हैं..?..
वापस आने का बाबा का आदेश पाकर हमने अगले ही दिन निचे उतरने का फैशला किया.बाबा मेरे साथ ही मंदिर गये थे और मेरे साथ ही वापस भी आ गये.सारा समय उस बिच बाबा मेरे कमरे में ही रहे तथा यहाँ आसन पर बाबा अपने विराट रूप में बैठ गये हैं.. 09 मई को हेलीकाप्टर की ब्यवस्था न होने पर हमने दीदी के साथ एक बार पुन: खच्चर पर ही उतरने का निश्चय किया.
अमित ने हम लोगो को निचे पुल के पास घोडा पड़ाव पर बिदा किया ..और हम लोग मै दीदी और बाबा मेरे पिता श्री केदारनाथ जी दिल्ली में स्थित अपने आसन के लिए वापसी यात्रा के लिए निकल पड़े.
केदारनाथ क्षेत्र में मंदिर है.चारो तरफ पहाड़ो से लेकर निचे जमीन तक बर्फ ही बर्फ है.भैरव बाबा का भोग मंगलवार को लग गया होगा.भैरव बाबा अत्यंत उग्र व् क्रोध में हैं.बाबा केदारनाथ जी वहां से यहाँ चले आये हैं..लोग पूजा अभिषेक आरती व् स्तुति कर रहे हैं.दुकानदार अपनी दुकानदारी चला रहे हैं.पण्डे लोग यात्रीयों की ब्यवस्था में जुट गये हैं पुजारी पूजा कर रहा है,भोग लग रहा है.सब कुछ पूर्व की ही भांति ही सुनियोजित चल रहा है...
09 मई को हम लोग दोपहर बाद गौरीकुंड राजपाल रावत जी के यहाँ पहुंचे और अपनी कार लेकर अपनी आगे निचे की यात्रा पर चल पड़े.देर रात में लगभग 10 / 10 .30 बजे देव प्रयाग पहुँच कर रात्रि विश्राम किया गया.और फिर 10 मई अर्थात मंदिर का कपाट खुलने के तीसरे दिन रात में हम लोग लगभग ग्यारह बजे अपने आश्रम दिल्ली आसन पर पहुंचे.
बाबा अपने बेटे व् मेरी माँ के संग इस छोटे से आसन पर आकर खुश हैं.शिवपुत्र का एक और मिशन पूरा हुआ..
बाबा मेरे साथ केदारनाथ क्षेत्र से मंदिर गये.परम्परा पूरा हुआ.परम्पराओं से उन्हें तिन दिन तक मंदिर में भूखा रखा और अब मेरे साथ वापस आ गये.
इस बार की अभी की मेरी हिमालय स्थित केदारनाथ जी की यात्रा सकुशल संपन्न हुआ.
सभी को धन्यवाद्.जगत के सभी प्राणियों को धन्यवाद.
आगे अपने जीवन में अपना -अपना कर्म करते हुए होने वाली जागतिक प्राकृतिक घटनाओं का स्वयं साक्षी बनने का थोडा इंतजार कीजिये.सबका कल्याण हो.और मै क्या कह सकता हूँ.आप की तरह सभी समझदार हैं ही.समझ ही जायेंगे.ना समझ बनने का ढोंग न करे तो बेहतर है..सब कुछ खुद ब खुद समझ में आता जायेगा.
कहीं परम्पराएँ हमे नपुंसक और बेहोश तो नही बनाती जा रही हैं.एक बार अन्दर झांक कर भी देख लिया करें...
. . ' ''धन्यवाद्'''॥