तारीख...22..dec.2010..
'''हिमालय की गुफा से ''बाबा'' के आदेशानुसार निकल कर जब नीचे के मानवों के सभ्य समाज में आया ,तो,मुझे दो-तीन बाते एकदम नई और शक्तिशाली रूप से दिखलाई दी...
..मानव सभ्यता के सभ्य बुद्धिजीवी और वैज्ञानिकों द्वारा आम आदमी को दिया गया एक अति भयानक शब्द..''ग्लोबल वार्मिंग''
'''''GLOBAL WARMING'''''
..पिछले जन्मो के महान असुरो द्वारा मानव शरीर में छुप कर अपनी वासनाओं और साजिशों द्वारा सारे धरती पर ''धर्म'' और ''विकास''तथा 'मानवाधिकार' तथा सभ्यता के नाम पर अपनी ब्यभिचारी आविष्कारों द्वारा नरक की साक्षात् रचना कर दी गयी.अहंकार इतना,कि ,आम आदमी ''बेचारा ''बन कर जीने के लिए मजबूर..
सामान्य मनुष्यों को सामान के नाम पर ,''सामान '' जैसा समझ कर किया जा रहा ब्यवहार तथा बर्ताब.आधुनिकता के नाम पर विश्व स्तर पर फैलाया हुआ सुनियोजित आतंक जो सभ्य देश तथा अत्याधुनिक समाज द्वारा इस जगत पर परोस दिया गया..
...मेरी जन्मदायिनी माँ ''अम्मा'' की मृत्यु के पश्चात ''मै''...''अपने पिता ''बाबा'' श्री केदारनाथ जी ,देवाधिदेव भगवान शिव जी'' के पास ''हिमालय '' में वापस चला गया था.अपना स्थूल शरीर का भी त्याग करने के लिए.क्युकी सारी इक्षाओं और वादों का अंत अपने ''मै '' कर चूका था...अपनी समस्त जागतिक शारीरिक ,मानसिक और अध्यात्मिक और साधनात्मक वासनाओ तथा इक्षाओं से बहुत पहले ही ''मै'' बाहर निकल कर इनसे मुक्त हो चूका था.अब इस शरीर से कोई भी ''काम'' मेरी नजरो में शेष ना रह गया था..
घटनाक्रमानुसार ''बाबा '' ने शरीर बिखंडन की प्रक्रिया के दरम्यान ही ''मुझे '' ''मेरे जन्म का मूल मकसद बताया''..और वापस मुझे धरती पर निचे की दुनिया में भेजा....
''सर्व प्रथम...मुझे अपनी ''मूल माँ''....''शक्ति'' को ,आसाम कामरूप से माँ कामख्या नाम से जगत बिख्यात ''सती'' को ,''सतयुग'' से तब तक बंधन में पड़े उनके ''सेकण्ड बॉडी'' को ''सेकण्ड खंड'' से मुक्त करा कर सदा के लिए वापस ले आना था...और माँ की मुक्ति का प्रमाण जगत के लोगो तक साबित हो,उसके लिए,माँ की शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए आगे बढ़ना था...''
''जगत और संसार ..!..जो सदा से ही अपने को सभ्य और आधुनिक मानता है.उसे हर बात के प्रमाण की जरूरत सदा से ही रहा करती है..
'''परमात्मा और दैवीय सत्ता'' का प्रमाण बार_बार प्रमाणित करने के बावजूद भी ये अहंकारी मानव शरीरधारी असुरो ने सदा से ही माँगा है और जगत पर अत्याचार किया है...
...अपनी इस यात्रा में मुझे शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए ''माँ''की शक्तियों, (मूल प्राकृतिक शक्तियों) का प्रदर्शन करते हुए प्रमाण साबित करना था....
माँ ( शक्ति _ सती ) और मेरी ( गर्भस्थ शिशु )की मृत्यु के पश्चात से ही निरंतर विकृत हो रही प्रकृति को सम्हालते हुए,मुझे विकृति हो चुकी प्रकृति,विनास के कगार पर पहुंचाई जा चुकी प्रकृति को ,उसके '''मूल स्वरुप'',''मूल प्रकृति''में स्थापित करना था...
'''मै'',ने आधुनिक बिज्ञान और बैज्ञानिको के मुह से संचार माध्यम के द्वारा एक अति भयावह ''शब्द''सुना....
वो शब्द है.......''''ग्लोबल वार्मिंग '''( ''''GLOBAL WARMING'''') ....
''मै'' आधुनिक भाषा और शब्द नही जानता.इसलिए लोगो ने बतलाया की ''धरती गर्म '' हो रही है और वातावरण गर्म हो रहा है...जल की कमी हो रही है.बर्फ के ग्लेशियर ख़त्म होते जा रहे हैं..'''
सन 2005/6 के आसाम प्रवास के दौरान मै,ने ''माँ'' को उनके सभी दसो रूपों के सहित सदा के लिए चार युगों से बंधन में पड़ी ''अपनी माँ कामख्या को स्वतंत्र करा लिया...युगों से बंधन में रहने से,मुक्ति के बाद ,महीनो तक ''माँ'' एक नन्ही बच्ची के रूप में ''बाबा श्री'' के गोद में सो कर आराम करती रही..इधर स्थूल जगत में मानव शरीर धारी असुर लोग हमारे रास्ते में तरह-तरह से बाधाएँ पैदा करते रहे....
मेरे हिमालय से निकलने के पश्चात की दुनिया में मानव शरीरधारी असुरो ने अपने स्वभाव और कर्म के अनुसार फिर इस बार मुझे यातनाएं तथा वेदनाएं दी तथा मेरी हत्या तक की...
...दिल्ली आने पर यहाँ की धरती ने अपनी सुरक्षा की गुहार मेरा पैर छूकर लगायी.और मुझे अपने पिता रूप में संबोधित किया..
...लोग कहते रहते हैं की धरती गर्म हो रही है..
'''GLOBAL WARMING '' हो रहा है.बैज्ञानिक और बिज्ञान तरह-तरह से उपाय कर रहे हैं तथा धन कमा रहे हैं.गरीब लोगो का जीवन निचोड़ कर तरह-तरह की योजनायें बनाना तथा मीटिंग करना इनका स्वभाव तथा फैशन और शौक बनते हुए सारा संसार और जगत के लोग देख रहे हैं.इनके पास धन है,इनके पास यंत्रो,मशीनों की शक्ति है,इनका स्वार्थ किसी भी तरह पूरा करने के लिए इनके पास विभिन्न तरह के हथियार और कानून हैं.ये जो चाहे कर सकते हैं.ये अत्याधुनिक हैं.इनके पास साइंस है...यह सब कुछ देखना संसार के अधिकांश बेकसूर लोगो की विवशता है.आज जगत के लोग इनसे लाचार हो चुके हैं..
''धरती ''..गर्म हो रहा है.GLOBAL WARMING चल रहा है.सभी का कारण ..!..साइंस यही तो कहता है ना..!....
...''मै'',ने 2009 के दिसंबर और जनवरी 2010 में ''अपनी ''माँ कामख्या''के तीन मूल शक्तियों ''को भी बंगाल क्षेत्र से मुक्त कराया.क्योकि धरती की गर्मी को ठंडा करना था.इसलिए आप देखेंगे की पिछले डेढ़ - दो वर्ष से मै सारी धरती पर जल और बर्फ की चादर बिछा कर इनके ग्लोबल वार्मिंग के गर्मी को ठंडा कर रहा हूँ..ताकि धरती की गर्मी कुछ कम हो सके...
''आप लोगो को ''प्रथम मानव शरीरधारी ''अघोर शिवपुत्र''' का काम कैसा लग रहा है..???''
हमारा स्वभाव है...''अहंकार और घमंड का बिध्वंस कर देना'''....
तीन- चार साल से किये जा रहे शासक ,देश,संस्थान तथा ब्यक्ति और धर्म आदि के दूषित तथा पाखंडी अहंकार तथा घमंड का दमन कर यह साबित कर दिया जा रहा है,कि ''शक्तियां स्वतंत्र हैं''...और मुक्त चहल कदमी कर रही हैं इस धरती पर चारो तरफ..
''मै''ने धरती की प्रकृति पर पूरी तरह अधिकार कर लिया है....
सावधानी से चलो प्रकृति को मै तीव्रता से परिवर्तित कर रहा हूँ.प्रकृति अब मेरी इक्षा अनुसार चलने लगी है.
''यह महान देश ''भारत वर्ष '' में ''मै'' स्थित हूँ और इसकी रक्षा कर रहा .विश्व स्तर पर परिवर्तन कर ''मै'' ने साबित कर प्रमाण देना प्रारंभ कर दिया है....मित्रता का पाखंड मै जानता हूँ...इसीलिए धरती के निचे एक अधोमुखी त्रिकोण निर्मित कर ''मै'' ने शत्रु देशो को घेर कर अपने आगोस में लेना शुरू कर दिया है..''
जो ''असुर ''जिस शक्ति और साधन तथा छल और चाल पर अहंकार करेगा.उसे प्राकृतिक रूप से समूल दमित कर नस्ट कर दिया जायेगा.आप सभी देख ही रहे है.आप सभी अपने -अपने जीवन में इसी धरती पर देखते चलने के लिए प्राकृतिक रूप से बाध्य हैं...
हम प्रकृति में उत्पन्न हो गयी विकृति की सफाई कर रहे हैं तथा सजा रहे हैं.
...अभी थोडा GLOBAL WARMING को ठंडा कर रहा हूँ...
अत्याधुनिक बैज्ञानिक और बिज्ञान रोक सके तो रोक कर दिखलाये...
..प्रकृति में परिवर्तन और मूल प्राकृतिक शक्तियों का प्रदर्शन तथा कार्यक्रम चालू है.आप सभी भी आमंत्रित हैं.इस खेल का ,इस अघोर कृत्य,इस अघोर लीला में आप सभी सहभागी तथा सहयोगी हैं..आनंद लीजिये और अपना-अपना जीवन ब्यतीत कीजिये...
''धर्म और अध्यात्म तथा बिज्ञान क्या है.....?????'''
सिर्फ ''शब्द'' ही तो......!...
और मै इन शब्दों में बिस्फोट करना जानता हूँ.कार्यक्रम आपके सामने प्रस्तुत है.कैसा लगा ...?..कैसा लग रहा है.?..जरुर लिखे...?..और अपना जीवन जीते रहें..चलिए चलते हैं.अभी..!...ग्लोबल वार्मिंग की अभी थोडा ठंडा कर लेने दीजिये...
'''GLOBAL WARMING'' के मुह पर अभी ''मै'',ने ठण्ड ( जल /बर्फ )का एक कस कर ''थप्पड़'' भर मारा है''''
सबकी गर्मी को ठंडा करने का एक मात्र उपाय..?....
''अघोर शिवपुत्र '' तथा ''शिवपुत्र एक मिशन''....
यही तो मिशन है अपने आप में,शिवपुत्र का...
.अपने अघोर अवस्था का अघोर प्रदर्शन करना हमारा जन्म -जन्मान्तर का स्वभाव तथा अधिकार है...
''अघोर शिवपुत्र द्वारा पहले ही इस ब्लॉग में दो मैप ,नक्शे जिसमे त्रिकोण बना कर ब्याख्या और उससे प्रभाव का सूक्ष्म संकेत खुलेआम दिया गया है..'''
हमारे द्वारा आज कही जा रही बातों को ठीक से समझने के लिए आप पिछले ब्लॉग पोस्ट को भी पढ़ते तथा समझते रहे.आज घटित हो रही घटनाओ की सुचना पूर्व में ही दे दिया गया है ,अनेक जगहों पर.जैसे -जैसे मौसम में तत्वों की अधिकता से वातावरण प्रभावित होगा.उस समय बैज्ञानिक भविष्यवाणियो को पूरी तरह दमित करके उन -उन तत्वों का बिस्फोट कर उनका बिध्वंसक रूप प्रस्तुत कर दिया जायेगा....
हमारे जाग्रत उर्ध्व त्रिकोण में प्रारम्भ किया गया बिस्फोट रोका नही गया है.बंद नही किया गया है.बस थोडा धीमा कर दिया गया था.क्योकि मेरा स्थूल शरीर जहर के प्रभाव से काफी कमजोर हो गया है,पहले से.परन्तु इसका मतलब यह कत्तई ना निकला जाये कि कार्य रुक जायेगा.जब ''मै'' आराम करता हूँ ,तो,यह आराम भी एक तैयारी होती है.आगे के किसी विराट प्राकृतिक कार्य के निमित्त..
हमे मालूम है की ''अघोर शिवपुत्र'' के बातो को लोग मजाक उड़ाते हैं.और लोगो को इतना भी अँधा नही होना चाहिए की उनके ही जगत में घटित हो रही घटनाओ को भी ना देख सके.वैसे तो सभी का अपना-अपना जीवन है.और अपने -अपने ब्यक्तिगत जीवन में हर ब्यक्ति आत्महत्या करने के लिए स्वतंत्र है.और जैसे आज मेरी माताएं स्वतंत्र है,वैसे ही ब्यक्ति भी स्वतंत्र है.कुछ भी करने के लिए अपने जीवन के साथ......!....
लोग नही मानेंगे तो क्या प्रकृति में परिवर्तन का कार्य रुक जायेगा...?...ये सिर्फ एक शरीरधारी जीव हैं.मानव हैं भी की नही..!..पहले यह सुनिश्चित कर लिया जाये.यह अपने मानव होने का प्रमाण सुनिश्चित करवाने के लिए अत्याधुनिक बिज्ञान के माध्यम से अपना D.N.A.Test करवा कर देख ले.!..
''आधुनिक बिज्ञान !..तो,प्रमाणों तथा तथ्यों पर आधारित ज्ञान है ना...?..तो,पहले मनुष्य जो अपने आपको बुद्धिजीवी प्राणी और आधुनिक समझ रहा है.वो उपलब्ध बिज्ञान द्वारा अपना D.N.A. परीक्षण करवा कर देख ले,की ,वो मनुष्य कितना प्रतिशत है...???
अगर अभी तक अपना टेस्ट नही करवाया तो फिर वो प्रथम मानव शरीरधारी ''अघोर''की बातो और किये जा रहे कार्यो तथा कृत्यों को कैसे समझ सकेगा..?...देखो...???....बेटा ....सब सामर्थ्य की बात है...!...है ना...!...
,,जितना और जैसा सामर्थ्य होगा,वैसा ही तो काम करेगा...आज की सभ्यता के पास भविष्यवाणियाँ हैं,अटकले हैं,अनुमान है,शब्दों का नाटक है,अत्याधुनिक बिज्ञान है,शास्त्र है,धर्म और अध्यात्म है.समृद्धि और सुबिधाओं के साथ साधन भी है.फिर भी वो ''GLOBAL WARMING ''का ठंडा होना नही समझ पा रहा है.???...तो,इसमे इनकी यही ''अयोग्यता'' है ,यही इनका सामर्थ्य है...???.....फिर .....
मै,ने पहले ही कहा है,की यह धरती और यहाँ का प्राकृतिक जगत का ''मै'' राजकुमार'' हूँ.मै उत्तराधिकारी हूँ,''बाबा '' का....सम्राट और बिधाता ,परमात्मा तो ''बाबा'' हैं....मेरे पिता श्री.और माँ के साथ हम सभी स्वतंत्र रूप से क्रियाशील हैं.इस धरती पर हम अपने शरीरो के साथ उपस्थित और क्रियाशील होकर जगत और प्रकृति का सञ्चालन कर रहे हैं.
यह मेरे सभी शिष्य जो आज भी इमानदार हैं या मानव शरीर धारी ''असुर'' हैं,स्वीकार करते हैं....
यही तो है ''स्वीकार योग की शक्ति और सामर्थ्य'''...''सामर्थ'' सिर्फ पुरुष का ही होता है.औरत और मर्द का नही ....और 'शक्ति' सिर्फ 'पुरुष' के पास ही रहती है.औरत और मर्द के पास नही......
और ''मै'' तो मात्र हूँ......एक ''पुत्र''....
'''शिवपुत्र''''''..........''''अघोर शिवपुत्र''......
''''सभी अपनी -अपनी दुनिया में जी रहे हैं.तुम्हारी दुनिया में कोई नही जियेगा बेटा..!..यह जो मै कह रहा हूँ.यह मेरी अपनी दुनिया की घटनाएँ तथा सूचनाएं हैं...''''
देखते रहो....
''GLOBAL WARMING '' के मुह पर ठण्ड का जोरदार थप्पड़ ....!....
कैसा लगा .......???
जरुर लिखना ..आगे --आगे भी भी देखते रहो .सब परोस दिया जायेगा,तुम्हारे अपने ही सामने,इसी जीवन में ही..
..मानव सभ्यता के सभ्य बुद्धिजीवी और वैज्ञानिकों द्वारा आम आदमी को दिया गया एक अति भयानक शब्द..''ग्लोबल वार्मिंग''
'''''GLOBAL WARMING'''''
..पिछले जन्मो के महान असुरो द्वारा मानव शरीर में छुप कर अपनी वासनाओं और साजिशों द्वारा सारे धरती पर ''धर्म'' और ''विकास''तथा 'मानवाधिकार' तथा सभ्यता के नाम पर अपनी ब्यभिचारी आविष्कारों द्वारा नरक की साक्षात् रचना कर दी गयी.अहंकार इतना,कि ,आम आदमी ''बेचारा ''बन कर जीने के लिए मजबूर..
सामान्य मनुष्यों को सामान के नाम पर ,''सामान '' जैसा समझ कर किया जा रहा ब्यवहार तथा बर्ताब.आधुनिकता के नाम पर विश्व स्तर पर फैलाया हुआ सुनियोजित आतंक जो सभ्य देश तथा अत्याधुनिक समाज द्वारा इस जगत पर परोस दिया गया..
...मेरी जन्मदायिनी माँ ''अम्मा'' की मृत्यु के पश्चात ''मै''...''अपने पिता ''बाबा'' श्री केदारनाथ जी ,देवाधिदेव भगवान शिव जी'' के पास ''हिमालय '' में वापस चला गया था.अपना स्थूल शरीर का भी त्याग करने के लिए.क्युकी सारी इक्षाओं और वादों का अंत अपने ''मै '' कर चूका था...अपनी समस्त जागतिक शारीरिक ,मानसिक और अध्यात्मिक और साधनात्मक वासनाओ तथा इक्षाओं से बहुत पहले ही ''मै'' बाहर निकल कर इनसे मुक्त हो चूका था.अब इस शरीर से कोई भी ''काम'' मेरी नजरो में शेष ना रह गया था..
घटनाक्रमानुसार ''बाबा '' ने शरीर बिखंडन की प्रक्रिया के दरम्यान ही ''मुझे '' ''मेरे जन्म का मूल मकसद बताया''..और वापस मुझे धरती पर निचे की दुनिया में भेजा....
''सर्व प्रथम...मुझे अपनी ''मूल माँ''....''शक्ति'' को ,आसाम कामरूप से माँ कामख्या नाम से जगत बिख्यात ''सती'' को ,''सतयुग'' से तब तक बंधन में पड़े उनके ''सेकण्ड बॉडी'' को ''सेकण्ड खंड'' से मुक्त करा कर सदा के लिए वापस ले आना था...और माँ की मुक्ति का प्रमाण जगत के लोगो तक साबित हो,उसके लिए,माँ की शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए आगे बढ़ना था...''
''जगत और संसार ..!..जो सदा से ही अपने को सभ्य और आधुनिक मानता है.उसे हर बात के प्रमाण की जरूरत सदा से ही रहा करती है..
'''परमात्मा और दैवीय सत्ता'' का प्रमाण बार_बार प्रमाणित करने के बावजूद भी ये अहंकारी मानव शरीरधारी असुरो ने सदा से ही माँगा है और जगत पर अत्याचार किया है...
...अपनी इस यात्रा में मुझे शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए ''माँ''की शक्तियों, (मूल प्राकृतिक शक्तियों) का प्रदर्शन करते हुए प्रमाण साबित करना था....
माँ ( शक्ति _ सती ) और मेरी ( गर्भस्थ शिशु )की मृत्यु के पश्चात से ही निरंतर विकृत हो रही प्रकृति को सम्हालते हुए,मुझे विकृति हो चुकी प्रकृति,विनास के कगार पर पहुंचाई जा चुकी प्रकृति को ,उसके '''मूल स्वरुप'',''मूल प्रकृति''में स्थापित करना था...
'''मै'',ने आधुनिक बिज्ञान और बैज्ञानिको के मुह से संचार माध्यम के द्वारा एक अति भयावह ''शब्द''सुना....
वो शब्द है.......''''ग्लोबल वार्मिंग '''( ''''GLOBAL WARMING'''') ....
''मै'' आधुनिक भाषा और शब्द नही जानता.इसलिए लोगो ने बतलाया की ''धरती गर्म '' हो रही है और वातावरण गर्म हो रहा है...जल की कमी हो रही है.बर्फ के ग्लेशियर ख़त्म होते जा रहे हैं..'''
सन 2005/6 के आसाम प्रवास के दौरान मै,ने ''माँ'' को उनके सभी दसो रूपों के सहित सदा के लिए चार युगों से बंधन में पड़ी ''अपनी माँ कामख्या को स्वतंत्र करा लिया...युगों से बंधन में रहने से,मुक्ति के बाद ,महीनो तक ''माँ'' एक नन्ही बच्ची के रूप में ''बाबा श्री'' के गोद में सो कर आराम करती रही..इधर स्थूल जगत में मानव शरीर धारी असुर लोग हमारे रास्ते में तरह-तरह से बाधाएँ पैदा करते रहे....
मेरे हिमालय से निकलने के पश्चात की दुनिया में मानव शरीरधारी असुरो ने अपने स्वभाव और कर्म के अनुसार फिर इस बार मुझे यातनाएं तथा वेदनाएं दी तथा मेरी हत्या तक की...
...दिल्ली आने पर यहाँ की धरती ने अपनी सुरक्षा की गुहार मेरा पैर छूकर लगायी.और मुझे अपने पिता रूप में संबोधित किया..
...लोग कहते रहते हैं की धरती गर्म हो रही है..
'''GLOBAL WARMING '' हो रहा है.बैज्ञानिक और बिज्ञान तरह-तरह से उपाय कर रहे हैं तथा धन कमा रहे हैं.गरीब लोगो का जीवन निचोड़ कर तरह-तरह की योजनायें बनाना तथा मीटिंग करना इनका स्वभाव तथा फैशन और शौक बनते हुए सारा संसार और जगत के लोग देख रहे हैं.इनके पास धन है,इनके पास यंत्रो,मशीनों की शक्ति है,इनका स्वार्थ किसी भी तरह पूरा करने के लिए इनके पास विभिन्न तरह के हथियार और कानून हैं.ये जो चाहे कर सकते हैं.ये अत्याधुनिक हैं.इनके पास साइंस है...यह सब कुछ देखना संसार के अधिकांश बेकसूर लोगो की विवशता है.आज जगत के लोग इनसे लाचार हो चुके हैं..
''धरती ''..गर्म हो रहा है.GLOBAL WARMING चल रहा है.सभी का कारण ..!..साइंस यही तो कहता है ना..!....
...''मै'',ने 2009 के दिसंबर और जनवरी 2010 में ''अपनी ''माँ कामख्या''के तीन मूल शक्तियों ''को भी बंगाल क्षेत्र से मुक्त कराया.क्योकि धरती की गर्मी को ठंडा करना था.इसलिए आप देखेंगे की पिछले डेढ़ - दो वर्ष से मै सारी धरती पर जल और बर्फ की चादर बिछा कर इनके ग्लोबल वार्मिंग के गर्मी को ठंडा कर रहा हूँ..ताकि धरती की गर्मी कुछ कम हो सके...
''आप लोगो को ''प्रथम मानव शरीरधारी ''अघोर शिवपुत्र''' का काम कैसा लग रहा है..???''
हमारा स्वभाव है...''अहंकार और घमंड का बिध्वंस कर देना'''....
तीन- चार साल से किये जा रहे शासक ,देश,संस्थान तथा ब्यक्ति और धर्म आदि के दूषित तथा पाखंडी अहंकार तथा घमंड का दमन कर यह साबित कर दिया जा रहा है,कि ''शक्तियां स्वतंत्र हैं''...और मुक्त चहल कदमी कर रही हैं इस धरती पर चारो तरफ..
''मै''ने धरती की प्रकृति पर पूरी तरह अधिकार कर लिया है....
सावधानी से चलो प्रकृति को मै तीव्रता से परिवर्तित कर रहा हूँ.प्रकृति अब मेरी इक्षा अनुसार चलने लगी है.
''यह महान देश ''भारत वर्ष '' में ''मै'' स्थित हूँ और इसकी रक्षा कर रहा .विश्व स्तर पर परिवर्तन कर ''मै'' ने साबित कर प्रमाण देना प्रारंभ कर दिया है....मित्रता का पाखंड मै जानता हूँ...इसीलिए धरती के निचे एक अधोमुखी त्रिकोण निर्मित कर ''मै'' ने शत्रु देशो को घेर कर अपने आगोस में लेना शुरू कर दिया है..''
जो ''असुर ''जिस शक्ति और साधन तथा छल और चाल पर अहंकार करेगा.उसे प्राकृतिक रूप से समूल दमित कर नस्ट कर दिया जायेगा.आप सभी देख ही रहे है.आप सभी अपने -अपने जीवन में इसी धरती पर देखते चलने के लिए प्राकृतिक रूप से बाध्य हैं...
हम प्रकृति में उत्पन्न हो गयी विकृति की सफाई कर रहे हैं तथा सजा रहे हैं.
...अभी थोडा GLOBAL WARMING को ठंडा कर रहा हूँ...
अत्याधुनिक बैज्ञानिक और बिज्ञान रोक सके तो रोक कर दिखलाये...
..प्रकृति में परिवर्तन और मूल प्राकृतिक शक्तियों का प्रदर्शन तथा कार्यक्रम चालू है.आप सभी भी आमंत्रित हैं.इस खेल का ,इस अघोर कृत्य,इस अघोर लीला में आप सभी सहभागी तथा सहयोगी हैं..आनंद लीजिये और अपना-अपना जीवन ब्यतीत कीजिये...
''धर्म और अध्यात्म तथा बिज्ञान क्या है.....?????'''
सिर्फ ''शब्द'' ही तो......!...
और मै इन शब्दों में बिस्फोट करना जानता हूँ.कार्यक्रम आपके सामने प्रस्तुत है.कैसा लगा ...?..कैसा लग रहा है.?..जरुर लिखे...?..और अपना जीवन जीते रहें..चलिए चलते हैं.अभी..!...ग्लोबल वार्मिंग की अभी थोडा ठंडा कर लेने दीजिये...
'''GLOBAL WARMING'' के मुह पर अभी ''मै'',ने ठण्ड ( जल /बर्फ )का एक कस कर ''थप्पड़'' भर मारा है''''
सबकी गर्मी को ठंडा करने का एक मात्र उपाय..?....
''अघोर शिवपुत्र '' तथा ''शिवपुत्र एक मिशन''....
यही तो मिशन है अपने आप में,शिवपुत्र का...
.अपने अघोर अवस्था का अघोर प्रदर्शन करना हमारा जन्म -जन्मान्तर का स्वभाव तथा अधिकार है...
''अघोर शिवपुत्र द्वारा पहले ही इस ब्लॉग में दो मैप ,नक्शे जिसमे त्रिकोण बना कर ब्याख्या और उससे प्रभाव का सूक्ष्म संकेत खुलेआम दिया गया है..'''
हमारे द्वारा आज कही जा रही बातों को ठीक से समझने के लिए आप पिछले ब्लॉग पोस्ट को भी पढ़ते तथा समझते रहे.आज घटित हो रही घटनाओ की सुचना पूर्व में ही दे दिया गया है ,अनेक जगहों पर.जैसे -जैसे मौसम में तत्वों की अधिकता से वातावरण प्रभावित होगा.उस समय बैज्ञानिक भविष्यवाणियो को पूरी तरह दमित करके उन -उन तत्वों का बिस्फोट कर उनका बिध्वंसक रूप प्रस्तुत कर दिया जायेगा....
हमारे जाग्रत उर्ध्व त्रिकोण में प्रारम्भ किया गया बिस्फोट रोका नही गया है.बंद नही किया गया है.बस थोडा धीमा कर दिया गया था.क्योकि मेरा स्थूल शरीर जहर के प्रभाव से काफी कमजोर हो गया है,पहले से.परन्तु इसका मतलब यह कत्तई ना निकला जाये कि कार्य रुक जायेगा.जब ''मै'' आराम करता हूँ ,तो,यह आराम भी एक तैयारी होती है.आगे के किसी विराट प्राकृतिक कार्य के निमित्त..
हमे मालूम है की ''अघोर शिवपुत्र'' के बातो को लोग मजाक उड़ाते हैं.और लोगो को इतना भी अँधा नही होना चाहिए की उनके ही जगत में घटित हो रही घटनाओ को भी ना देख सके.वैसे तो सभी का अपना-अपना जीवन है.और अपने -अपने ब्यक्तिगत जीवन में हर ब्यक्ति आत्महत्या करने के लिए स्वतंत्र है.और जैसे आज मेरी माताएं स्वतंत्र है,वैसे ही ब्यक्ति भी स्वतंत्र है.कुछ भी करने के लिए अपने जीवन के साथ......!....
लोग नही मानेंगे तो क्या प्रकृति में परिवर्तन का कार्य रुक जायेगा...?...ये सिर्फ एक शरीरधारी जीव हैं.मानव हैं भी की नही..!..पहले यह सुनिश्चित कर लिया जाये.यह अपने मानव होने का प्रमाण सुनिश्चित करवाने के लिए अत्याधुनिक बिज्ञान के माध्यम से अपना D.N.A.Test करवा कर देख ले.!..
''आधुनिक बिज्ञान !..तो,प्रमाणों तथा तथ्यों पर आधारित ज्ञान है ना...?..तो,पहले मनुष्य जो अपने आपको बुद्धिजीवी प्राणी और आधुनिक समझ रहा है.वो उपलब्ध बिज्ञान द्वारा अपना D.N.A. परीक्षण करवा कर देख ले,की ,वो मनुष्य कितना प्रतिशत है...???
अगर अभी तक अपना टेस्ट नही करवाया तो फिर वो प्रथम मानव शरीरधारी ''अघोर''की बातो और किये जा रहे कार्यो तथा कृत्यों को कैसे समझ सकेगा..?...देखो...???....बेटा ....सब सामर्थ्य की बात है...!...है ना...!...
,,जितना और जैसा सामर्थ्य होगा,वैसा ही तो काम करेगा...आज की सभ्यता के पास भविष्यवाणियाँ हैं,अटकले हैं,अनुमान है,शब्दों का नाटक है,अत्याधुनिक बिज्ञान है,शास्त्र है,धर्म और अध्यात्म है.समृद्धि और सुबिधाओं के साथ साधन भी है.फिर भी वो ''GLOBAL WARMING ''का ठंडा होना नही समझ पा रहा है.???...तो,इसमे इनकी यही ''अयोग्यता'' है ,यही इनका सामर्थ्य है...???.....फिर .....
मै,ने पहले ही कहा है,की यह धरती और यहाँ का प्राकृतिक जगत का ''मै'' राजकुमार'' हूँ.मै उत्तराधिकारी हूँ,''बाबा '' का....सम्राट और बिधाता ,परमात्मा तो ''बाबा'' हैं....मेरे पिता श्री.और माँ के साथ हम सभी स्वतंत्र रूप से क्रियाशील हैं.इस धरती पर हम अपने शरीरो के साथ उपस्थित और क्रियाशील होकर जगत और प्रकृति का सञ्चालन कर रहे हैं.
यह मेरे सभी शिष्य जो आज भी इमानदार हैं या मानव शरीर धारी ''असुर'' हैं,स्वीकार करते हैं....
यही तो है ''स्वीकार योग की शक्ति और सामर्थ्य'''...''सामर्थ'' सिर्फ पुरुष का ही होता है.औरत और मर्द का नही ....और 'शक्ति' सिर्फ 'पुरुष' के पास ही रहती है.औरत और मर्द के पास नही......
और ''मै'' तो मात्र हूँ......एक ''पुत्र''....
'''शिवपुत्र''''''..........'''
''''सभी अपनी -अपनी दुनिया में जी रहे हैं.तुम्हारी दुनिया में कोई नही जियेगा बेटा..!..यह जो मै कह रहा हूँ.यह मेरी अपनी दुनिया की घटनाएँ तथा सूचनाएं हैं...''''
देखते रहो....
''GLOBAL WARMING '' के मुह पर ठण्ड का जोरदार थप्पड़ ....!....
कैसा लगा .......???
जरुर लिखना ..आगे --आगे भी भी देखते रहो .सब परोस दिया जायेगा,तुम्हारे अपने ही सामने,इसी जीवन में ही..
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